Solution:इन चारों में से किसी भी अधिकार का उल्लेख अलग से अथवा स्पष्टतया मूल अधिकारों में से नहीं हुआ है, किंतु उच्चतम न्यायालय ने अपने सृजनात्मक निर्वचन द्वारा इन चारों अधिकारों को मूल अधिकारों में अंतर्निहित माना है। विशेषकर अनुच्छेद 21 के प्राण और दैहिक स्वतंत्रता के संरक्षण (प्रोटेक्शन ऑफ लाइफ एंड पर्सनल लिबर्टी) के अधिकार के अंदर इन चारों अधिकारों को भी विभिन्न निर्णयों के द्वारा शामिल माना गया है।गोविंद बनाम मध्य प्रदेश राज्य वाद (1975) तथा मलक सिंह एवं अन्य बनाम पंजाब एवं हरियाणा वाद (1980) आदि में सर्वोच्च न्यायालय द्वारा यह अभिनिर्धारित किया गया कि संविधान के अनुच्छेद 19(1)(d) (भारत के राज्य क्षेत्र में सर्वत्र अबाध संचरण का अधिकार) को अनुच्छेद 21 (जीवन का अधिकार) से मिलाकर पढ़ने पर एकांतता या निजता का अधिकार (Right to Privacy) प्राप्त होता है। उल्लेखनीय है कि जस्टिस के. एस. पुट्टास्वामी बनाम भारत संघ वाद ('आधार' मामले) में भी अगस्त, 2017 में सर्वोच्च न्यायालय की 9-सदस्यीय संविधान पीठ ने 'निजता के अधिकार' (Right to Privacy) को संविधान के अनुच्छेद 21 में अंतर्निहित तथा संविधान के भाग III द्वारा गारंटीकृत स्वतंत्रताओं का भाग मानते हुए इसे स्पष्टतः संवैधानिक संरक्षण प्रदान किया है। उच्चतम न्यायालय ने विकल्पों में दिए गए उपर्युक्त 4 अधिकारों के अतिरिक्त अन्य अनेक अधिकारों को भी अपने विभिन्न निर्णयों में अनुच्छेद 21 के अंतर्गत माना है। इनमें से कुछ प्रमुख ये हैं-
1. अच्छे पर्यावरण का अधिकार,
2. शीघ्र विचारण का अधिकार,
3. विधिक सहायता का अधिकार,
4. एकांत कारावास के विरुद्ध अधिकार,
5. पैर में डंडा-बेड़ी डालने के विरुद्ध अधिकार,
6. फांसी में विलंब के विरुद्ध अधिकार,
7. अभिरक्षा में हिंसा के विरुद्ध अधिकार,
8. पीने योग्य शुद्ध जल का अधिकार,
9. अच्छी सड़कों का अधिकार,
10. प्रतिष्ठा का अधिकार,
11. एक चिकित्सक द्वारा घायल को चिकित्सकीय सहायता,
12. कार्यस्थल पर महिलाओं के लैंगिक उत्पीड़न के विरुद्ध अधिकार।