Solution:रस के चार अवयव होते हैं।(1)विभाव- (i) यह रस निष्पत्ति का आधारभूत तत्त्व है। (ii) यह रस का कारण है। (iii) यह स्थायीभाव का विभावन करके उसे आस्वाद योग्य बनाता है।
विभाव के प्रकार- (i) आलम्बन विभाव (ii) उद्दीपन विभाव
(2) अनुभाव (i) विभावों के बाद उत्पन्न होता है। (ii) यह स्थायीभाव का अनुभव कराता है। (iii) इसे रस का कार्य कहते हैं।
अनुभाव के प्रकार- (i) कायिक, (ii) मानसिक, (iii) आहार्य, (iv) वाचिक, (v) सात्त्विक ।
(3) व्यभिचारीभाव- (i) इसे संचारीभाव भी कहते हैं। (ii)
संचारी भावों की संख्या भरत मुनि ने (33) मानी है। (iii) भानुदत्त ने संस्कृत साहित्य में 34वाँ संचारीभाव 'छल' को माना है। आचार्य रामचन्द्र शुक्ल जी ने 'चकपकाहट' को 35वाँ संचारी भाव माना है।
4) स्थायीभाव (i) भरत मुनि ने अपने रससूत्र में इसका उल्लेख नहीं किया है। (ii) यह सभी भावों को अपने में विलीन कर लेता है।