Solution:ब्रिटिश मॉडल पर आधारित लोकतांत्रिक व्यवस्था में 'संसदीय संप्रभुता' (Parliamentary Sovereignty) के सिद्धांत को अपनाया गया है तथा वहां संसद ही सर्वोच्च विधि प्राधिकारी है, जो कि किसी विधि का सृजन या किसी विधि का समापन कर सकती है। दूसरी ओर, भारतीय मॉडल में 'संवैधानिक सरकार' (Constitutional Govern-ment) की व्यवस्था है, जिसके तहत संसद की विधि-निर्माण की शक्ति लिखित संविधान द्वारा परिसीमित है। केशवानंद भारती वाद (1973) में दिए गए ऐतिहासिक निर्णय में उच्चतम न्यायालय ने यद्यपि संसद की संविधान में संशोधन की शक्ति को स्वीकार किया, तथापि यह भी निर्धारित किया कि संविधान की मूल संरचना या सांचे-ढांचे में परिवर्तन करने वाला कोई संशोधन संसद द्वारा नहीं किया जा सकता है। इस प्रकार, कथन 1 सही है।
कथन 2 भी सही है, क्योंकि भारत में, संसद के किसी अधिनियम के संशोधन की संवैधानिकता से संबंधित मामले उच्चतम न्यायालय द्वारा संविधान के अनुच्छेद 145 (3) के तहत गठित की जाने वाली संविधान पीठ को भेजे जाते हैं। अनुच्छेद 145 (3) में प्रावधानित है कि जिस मामले में संविधान के निर्वचन के बारे में विधि का कोई सारवान् प्रश्न अंतवर्लित है, उसका विनिश्चय करने के प्रयोजन के लिए बैठने वाले न्यायाधीशों की संख्या न्यूनतम 5 होगी। इसे ही संविधान पीठ के रूप में अभिहित किया जाता है।