सामाजिक एवं धार्मिक सुधार आंदोलन

Total Questions: 59

31. आधुनिक शिक्षा को देश में आधुनिक विचारों के प्रसार के साधन के रूप में देखने वाले पहले समाज सुधारक कौन थे ? [CGL (T-I) 17 जुलाई, 2023 (I-पाली)]

Correct Answer: (c) राजा राममोहन राय
Solution:राजा राममोहन राय आधुनिक शिक्षा को देश में आधुनिक विचारों के प्रसार के साधन के रूप में देखने वाले पहले समाज सुधारक थे। शिक्षा के क्षेत्र में राजा राममोहन राय अंग्रेजी शिक्षा के पक्षधर थे। उनके अनुसार, एक उदारवादी पाश्चात्य शिक्षा ही अज्ञान के अंधकार से हमें निकाल सकती है और भारतीयों को देश के प्रशासन में भाग दिला सकती है।

32. ब्रह्म समाज की स्थापना किसके द्वारा की गई थी? [CGL (T-I) 25 जुलाई, 2023 (III-पाली), CHSL (T-I) 8 अगस्त, 2023 (III-पाली)]

Correct Answer: (c) राजा राममोहन राय
Solution:राजा राममोहन राय (1772-1833 ई.) ने 20 अगस्त, 1828 को 'ब्रह्म सभा' नाम से एक नए समाज की स्थापना की, जिसे आगे चलकर 'ब्रह्म समाज' के नाम से जाना गया। इस समाज ने मूर्ति पूजा का विरोध किया और एक ब्रह्म की पूजा का उपदेश दिया। ब्रह्म समाज ने रंग, वर्ण अथवा मत पर विचार किए बिना मानवमात्र के प्रति प्रेम तथा जीवन की उच्चतम विधि के रूप में मानवता की सेवा पर बल दिया। इंग्लैंड के ब्रिस्टल में 27 सितंबर, 1833 को राजा राममोहन राय की मृत्यु हो गई, जहां उनकी समाधि स्थापित है। इस संस्था में नया जीवन फूंकने और इसे एक आंदोलन के रूप में आगे बढ़ाने का श्रेय महर्षि देवेंद्रनाथ टैगोर को जाता है।

33. निम्नलिखित में से किस सामाजिक धार्मिक समुदाय की स्थापना राजा राममोहन राय ने की थी? [MTS (T-I) 03 मई, 2023 (II-पाली)]

Correct Answer: (c) ब्रह्म समाज
Solution:राजा राममोहन राय (1772-1833 ई.) ने 20 अगस्त, 1828 को 'ब्रह्म सभा' नाम से एक नए समाज की स्थापना की, जिसे आगे चलकर 'ब्रह्म समाज' के नाम से जाना गया। इस समाज ने मूर्ति पूजा का विरोध किया और एक ब्रह्म की पूजा का उपदेश दिया। ब्रह्म समाज ने रंग, वर्ण अथवा मत पर विचार किए बिना मानवमात्र के प्रति प्रेम तथा जीवन की उच्चतम विधि के रूप में मानवता की सेवा पर बल दिया। इंग्लैंड के ब्रिस्टल में 27 सितंबर, 1833 को राजा राममोहन राय की मृत्यु हो गई, जहां उनकी समाधि स्थापित है। इस संस्था में नया जीवन फूंकने और इसे एक आंदोलन के रूप में आगे बढ़ाने का श्रेय महर्षि देवेंद्रनाथ टैगोर को जाता है।

34. हिंदू सुधार संगठन ब्रह्म समाज की स्थापना किसने की? [MTS (T-I) 08 सितंबर, 2023 (I-पाली), दिल्ली पुलिस कांस्टेबिल 21 नवंबर, 2023 (I-पाली), दिल्ली पुलिस कांस्टेबिल 16 नवंबर, 2023 (III-पाली)]

Correct Answer: (a) राजा राममोहन राय
Solution:राजा राममोहन राय (1772-1833 ई.) ने 20 अगस्त, 1828 को 'ब्रह्म सभा' नाम से एक नए समाज की स्थापना की, जिसे आगे चलकर 'ब्रह्म समाज' के नाम से जाना गया। इस समाज ने मूर्ति पूजा का विरोध किया और एक ब्रह्म की पूजा का उपदेश दिया। ब्रह्म समाज ने रंग, वर्ण अथवा मत पर विचार किए बिना मानवमात्र के प्रति प्रेम तथा जीवन की उच्चतम विधि के रूप में मानवता की सेवा पर बल दिया। इंग्लैंड के ब्रिस्टल में 27 सितंबर, 1833 को राजा राममोहन राय की मृत्यु हो गई, जहां उनकी समाधि स्थापित है। इस संस्था में नया जीवन फूंकने और इसे एक आंदोलन के रूप में आगे बढ़ाने का श्रेय महर्षि देवेंद्रनाथ टैगोर को जाता है।

35. निम्नलिखित में से कौन-सी सुधारवादी संस्था वेदों को समस्त ज्ञान का स्रोत मानती थी ? [CGL (T-I) 17 जुलाई, 2023 (I-पाली)]

Correct Answer: (b) आर्य समाज
Solution:आर्य समाज के संस्थापक स्वामी दयानंद सरस्वती शुद्ध वैदिक परंपरा में विश्वास करते थे। 'वेदों की ओर लौटो' का नारा दिया। उत्तर वैदिक काल से आज तक सभी अन्य मतों को उन्होंने पाखंड या झूठे धर्म की संज्ञा दी। 1867 ई. में उन्होंने झूठे धर्मों का खंडन करने के लिए 'पाखंड खंडिनी पताका' लहराई। उनका विश्वास था कि हिंदू धर्म और वेद जिस पर भारत का पुरातन समाज टिका था, शाश्वत, अपरिवर्तनीय, धर्मातीत तथा दैवीय हैं। इसलिए उन्होंने 'वेदों की ओर लौटो' तथा वेद ही समस्त ज्ञान के स्रोत हैं, का नारा दिया। स्वामी दयानंद को उनके धार्मिक सुधार प्रयासों के कारण 'भारत का मार्टिन लूथर किंग' कहा जाता है।

36. विवेकानंद ने विश्व धर्म संसद में कहां भाग लिया था? [CGL (T-I) 20 जुलाई, 2023 (IV-पाली)]

Correct Answer: (d) शिकागो
Solution:रामकृष्ण परमहंस की शिक्षाओं की व्याख्या को साकार करने का श्रेय उनके शिष्य स्वामी विवेकानंद (1863-1902 ई.) को है। उन्होंने इस शिक्षा का साधारण भाषा में वर्णन किया। स्वामी विवेकानंद इस नवीन हिंदू धर्म (Neo-Hinduism) के प्रचारक के रूप में उभरे। 1893 ई. में वे शिकागो गए जहां उन्होंने 'पार्लियामेंट ऑफ द वर्ड्स रिलीजन्स' (विश्व धर्म संसद) में अपना सुप्रसिद्ध भाषण दिया। इस भाषण से उन्होंने पश्चिमी संसार के सामने पहली बार भारत की संस्कृति की महत्ता को प्रभावकारी तरीके से प्रस्तुत किया।

37. निम्नलिखित में से रामकृष्ण परमहंस के शिष्य कौन थे? [CHSL (T-I) 17 अगस्त, 2023 (II-पाली), MTS (T-I) 02 मई, 2023 (III-पाली)]

Correct Answer: (a) स्वामी विवेकानंद
Solution:रामकृष्ण परमहंस की शिक्षाओं की व्याख्या को साकार करने का श्रेय उनके शिष्य स्वामी विवेकानंद (1863-1902 ई.) को है। उन्होंने इस शिक्षा का साधारण भाषा में वर्णन किया। स्वामी विवेकानंद इस नवीन हिंदू धर्म (Neo-Hinduism) के प्रचारक के रूप में उभरे। 1893 ई. में वे शिकागो गए जहां उन्होंने 'पार्लियामेंट ऑफ द वर्ड्स रिलीजन्स' (विश्व धर्म संसद) में अपना सुप्रसिद्ध भाषण दिया। इस भाषण से उन्होंने पश्चिमी संसार के सामने पहली बार भारत की संस्कृति की महत्ता को प्रभावकारी तरीके से प्रस्तुत किया।

38. करसनदास मूलजी और दादोबा पांडुरंग ....... से जुड़े थे, जिसने जाति व्यवस्था जैसी बुराइयों के खिलाफ काम किया और विधवा पुनर्विवाह को प्रोत्साहित किया। [CGL (T-I) 26 जुलाई, 2023 (I-पाली)]

Correct Answer: (b) परमहंस मंडली
Solution:करसनदास मूलजी और दादोबा पांडुरंग परमहंस मंडली से जुड़े थे, जिसने जाति व्यवस्था जैसी बुराइयों के खिलाफ काम किया और विधवा पुनर्विवाह को प्रोत्साहित किया।

39. आध्यात्मिक सत्य की खोज के लिए गठित तत्त्वबोधिनी सभा की स्थापना किसने की थी? [CGL (T-I) 26 जुलाई, 2023 (II-पाली), MTS (T-I) 08 मई, 2023 (I-पाली), दिल्ली पुलिस कांस्टेबिल 15 नवंबर, 2023 (III-पाली)]

Correct Answer: (a) देवेंद्रनाथ टैगोर
Solution:हिंदू धर्म का पहला सुधार आंदोलन 'ब्रह्म सभा' (ब्रह्म समाज) था। जिसकी स्थापना राजा राममोहन राय ने 1828 ई. में की थी। इस पर आधुनिक पाश्चात्य विचारधारा का बहुत प्रभाव पड़ा था। राजा राममोहन राय के इन्हीं विचारों के प्रसार के लिए देवेंद्रनाथ टैगोर ने 1839 ई. में 'तत्वबोधिनी सभा' की स्थापना की।

40. फारसी में लिखी गई पुस्तक 'गिफ्ट टू मोनोथिस्ट' के लेखक कौन हैं, जिसमें अनेकेश्वरवाद की निंदा की गई है? [CGL (T-I) 26 जुलाई, 2023 (III-पाली)]

Correct Answer: (a) राजा राममोहन राय
Solution:राजा राममोहन राय ने 'तुहफात-उल-मुवाहिदीन' फारसी भाषा में लिखी थी। बाद में इसका अंग्रेजी अनुवाद मौलवी ओबैदुल्लाह अल ओबैदी द्वारा 'ए गिफ्ट टू मोनोथेईस्टस' नाम से 1884 ई. में प्रकाशित किया गया था, जिसमें अनेकेश्वरवाद की निंदा की गई है।