1. भारत की संसद किसी कानून विशेष को भारत के संविधान की नौवीं अनुसूची में डाल सकती है।
2. नौवीं अनुसूची में डाले गए किसी कानून की वैधता का परीक्षण किसी न्यायालय द्वारा नहीं किया जा सकता एवं उसके ऊपर कोई निर्णय भी नहीं किया जा सकता है।
उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?
Correct Answer: (a) केवल 1
Note: भारतीय संविधान (प्रथम) संशोधन अधिनियम, 1951 के जरिए संविधान में नौवीं अनुसूची तथा अनुच्छेद 31-क और 31-ख जोड़े गए। संसद द्वारा विधि विशेष (यथा- भूमि सुधार विधियां) को नौवीं अनुसूची में रखा जा सकता है, जिन्हें न्यायिक समीक्षा से बचाव दिया जाना आशयित हो। वर्तमान में (मई, 2022 की स्थिति अनुसार) नौवीं अनुसूची में ऐसी 282 विधियां शामिल हैं। अनुच्छेद 31-ख यह कहता है कि नौवीं अनुसूची में उल्लिखित नियमों और विनियमों को इस आधार पर शून्य नहीं समझा जाएगा कि वे भाग 3 के किन्हीं उपबंधों और प्रदत्त अधिकारों में से किसी से असंगत हैं या उनको छीन लेते हैं या न्यून करते हैं। किंतु वर्ष 2007 में सर्वोच्च न्यायालय ने आई.आर. कोएल्हो बनाम तमिलनाडु के मामले में निर्णय देते हुए यह स्पष्ट किया कि संसद को नौवीं अनुसूची में विधि विशेष को प्रविष्टि करने की शक्ति प्रदान की गई है, किंतु यह न्यायिक संवीक्षा के दायरे से बाहर नहीं है। न्यायालय ने निर्धारित किया कि 24 अप्रैल, 1973 (केशवानंद भारती वाद निर्णय की तिथि) के बाद नौवीं अनुसूची में शामिल किए गए विधायनों की न्यायिक समीक्षा इस आधार पर की जा सकेगी कि वे अनुच्छेद 21, 14 एवं 19 में प्रतिबिम्बित संविधान के मूल ढांचे की अवधारणा का उल्लंघन करते हैं। अतः उपर्युक्त कथनों में से कथन (1) सही है, किंतु कथन (2) सही नहीं है।