निर्देश :- (प्रश्न संख्या 1 से 5) दिए गए गद्यांश के आधार पर निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए।
उत्साह की गिनती अच्छे गुणों में होती है। किसी भाव के अच्छे या बुरे होने का निश्चय अधिकतर उसकी प्रवृत्ति के शुभया अशुभ परिणाम के विचार से होता है। वहीं उत्साह जो कर्तव्य-कर्मों के प्रति इतना सुन्दर दिखाई पड़ता है, अकर्त्तव्य-कर्मों की ओर होने पर वैसा श्लाघ्य नहीं प्रतीत होता। जब तक आनन्द का लगाव किसी क्रिया, व्यापार या उसकी भावना के साथ नहीं दिखाई पड़ता, तब तक उसे उत्साह की संज्ञा प्राप्त नहीं होती। प्रयत्न और कर्म-संकल्प उत्साह नामक आनन्द के नित्य लक्षण हैं। प्रत्येक कर्म में थोड़ा या बहुत बुद्धि का योग भी रहता है। कुछ कर्मों में तो बुद्धि की तत्परता और शरीर की तत्परता दोनों बराबर साथ-साथ चलती हैं। उत्साह की उमंग जिस प्रकार हाथ-पैर चलवाती है, उसी प्रकार बुद्धि से भी काम कराती है। ऐसे उत्साह वाले कर्मवीर भी होते हैं और बुद्धिवीर भी होते हैं।
Correct Answer: (a) आनन्द का लगाव
Solution:उपर्युक्त गद्यांश के आधार पर 'उत्साह' की संज्ञा प्राप्त करने के लिए आनन्द का लगाव जरूरी है। वस्तुतः जब तक आनन्द का लगाव किसी क्रिया, व्यापार या उसकी भावना के साथ नहीं दिखाई पड़ता, तब तक उसे उत्साह की संज्ञा प्राप्त नहीं होती।