अपठित गद्यांश (अवतरण)/पद्यांश (Part-2)

Total Questions: 51

41. मनुष्य के जीवन को संस्कारित कौन करता है ? [MP. PCS (C-SAT) EXAM, 2022]

निर्देशः- (प्रश्न संख्या 1 से 5) दिए गए गद्यांश के आधार पर निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए।

साहित्य जीवन को संस्कारित करता है। वह जीवन में संवेदना-विस्तार का आधार बनता है और मनुष्य को विवेक संपन्न भी बनाता है। साहित्य जीवन में अक्षय आनन्द का स्रोत है। उसमें निहित अनुभूति समाज और व्यक्ति के बीच सामंजस्य को प्रकट करती है। इसमें परम्पराओं, इतिहास और संस्कृति का रचनात्मक स्तर पर समावेश रहता है। इस आधार पर साहित्य जीवन बोध को जगाने में अपनी सार्थक भूमिका निभाता है। जीवन के प्रति आस्था, समाज के प्रति सहानुभूति और प्राणी मात्र के प्रति करुणा जगाने में साहित्य की अपनी महत्ता है। इसमें सामाजिक परिवर्तन की शक्ति निहित है। इसी आधार पर साहित्य पीढ़ियों को दिशा देने में समर्थ होता है। साहित्य के पठन-पाठन का अवसर अपनी अनेक व्यस्तताओं के बीच निकाल लेने वाले लोग जीवन का भरपूर आनन्द उठाते हैं। उन्हें जीवन जीने की कला आ जाती है। इसलिए कहा गया है कि 'काव्यशास्त्र विनोदेन कालो गच्छति धीमताम्' अर्थात् बुद्धिमान् मनुष्यों का समय काव्यशास्त्र क के विनोद में ही व्यतीत होता है।

 

Correct Answer: (b) साहित्य
Solution:उपर्युक्त गद्यांश के आधार पर 'साहित्य' मनुष्य के जीवन को संस्कारित करता है। साहित्य मनुष्य को विवेक सम्पन्न भी बनाता है।

42. कौन सर्वव्यापक है? [MP. PCS (C-SAT) EXAM, 2022]

निर्देश :- (प्रश्न संख्या 1 से 5) दिए गए गद्यांश के आधार पर निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए।

भारतीय संस्कृति की प्रमुख विशेषता उसकी आध्यात्मिकता में है। इसके अन्तर्गत् शरीर की अपेक्षा आत्मा को अधिक महत्त्व दिया गया है। आत्मा सर्वव्यापक है; इसलिए हमारे यहाँ चींटी से कुंजर तक में एक ही आत्मा का विस्तार माना जाता है। इससे सर्वोदय की भावना जागृत होती है। हम सबके कल्याणी (सुखी) होने की कामना करते हैं। हम सबके कल्याण की इच्छा करते हैं, क्योंकि सबमें वही सत्ता ओत-प्रोत है, जो हममें है। सत्य और अहिंसा इसीलिए हमारे जीवन के अंग रहे हैं। परहित के लिए त्याग और बलिदान की भावना से युग-युग का भारतीय अनुप्राणित रहा है। यहाँ सैकड़ों शिवि, दधीचि और मोरध्वज हो गए हैं।

Correct Answer: (c) आत्मा
Solution:उपर्युक्त गद्यांश के आधार पर 'आत्मा' सर्वव्यापक है; इसीलिए भारतीय संस्कृति में चींटी से कुंजर (हाथी) तक में एक ही आत्मा का विस्तार माना जाता है।

43. हमारे जीवन के अंग रहे हैं : [MP. PCS (C-SAT) EXAM, 2022]

निर्देश :- (प्रश्न संख्या 1 से 5) दिए गए गद्यांश के आधार पर निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए।

भारतीय संस्कृति की प्रमुख विशेषता उसकी आध्यात्मिकता में है। इसके अन्तर्गत् शरीर की अपेक्षा आत्मा को अधिक महत्त्व दिया गया है। आत्मा सर्वव्यापक है; इसलिए हमारे यहाँ चींटी से कुंजर तक में एक ही आत्मा का विस्तार माना जाता है। इससे सर्वोदय की भावना जागृत होती है। हम सबके कल्याणी (सुखी) होने की कामना करते हैं। हम सबके कल्याण की इच्छा करते हैं, क्योंकि सबमें वही सत्ता ओत-प्रोत है, जो हममें है। सत्य और अहिंसा इसीलिए हमारे जीवन के अंग रहे हैं। परहित के लिए त्याग और बलिदान की भावना से युग-युग का भारतीय अनुप्राणित रहा है। यहाँ सैकड़ों शिवि, दधीचि और मोरध्वज हो गए हैं।

Correct Answer: (b) सत्य और अहिंसा
Solution:उपर्युक्त गद्यांश के आधार पर 'सत्य और अहिंसा' हमारे जीवन के अंग रहे हैं।

44. युग-युग का भारतीय किस भावना से अनुप्राणित रहा है? [MP. PCS (C-SAT) EXAM, 2022]

निर्देश :- (प्रश्न संख्या 1 से 5) दिए गए गद्यांश के आधार पर निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए।

भारतीय संस्कृति की प्रमुख विशेषता उसकी आध्यात्मिकता में है। इसके अन्तर्गत् शरीर की अपेक्षा आत्मा को अधिक महत्त्व दिया गया है। आत्मा सर्वव्यापक है; इसलिए हमारे यहाँ चींटी से कुंजर तक में एक ही आत्मा का विस्तार माना जाता है। इससे सर्वोदय की भावना जागृत होती है। हम सबके कल्याणी (सुखी) होने की कामना करते हैं। हम सबके कल्याण की इच्छा करते हैं, क्योंकि सबमें वही सत्ता ओत-प्रोत है, जो हममें है। सत्य और अहिंसा इसीलिए हमारे जीवन के अंग रहे हैं। परहित के लिए त्याग और बलिदान की भावना से युग-युग का भारतीय अनुप्राणित रहा है। यहाँ सैकड़ों शिवि, दधीचि और मोरध्वज हो गए हैं।

Correct Answer: (d) त्याग और बलिदान की भावना से
Solution:युग-युग का भारतीय 'त्याग और बलिदान' की भावना से अनुप्राणित रहा है। यहाँ पर सैकड़ों शिवि, दधीचि और मोरध्वज हो गए हैं।

45. भारतीय संस्कृति की प्रमुख विशेषता किसमें है? [MP. PCS (C-SAT) EXAM, 2022]

निर्देश :- (प्रश्न संख्या 1 से 5) दिए गए गद्यांश के आधार पर निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए।

भारतीय संस्कृति की प्रमुख विशेषता उसकी आध्यात्मिकता में है। इसके अन्तर्गत् शरीर की अपेक्षा आत्मा को अधिक महत्त्व दिया गया है। आत्मा सर्वव्यापक है; इसलिए हमारे यहाँ चींटी से कुंजर तक में एक ही आत्मा का विस्तार माना जाता है। इससे सर्वोदय की भावना जागृत होती है। हम सबके कल्याणी (सुखी) होने की कामना करते हैं। हम सबके कल्याण की इच्छा करते हैं, क्योंकि सबमें वही सत्ता ओत-प्रोत है, जो हममें है। सत्य और अहिंसा इसीलिए हमारे जीवन के अंग रहे हैं। परहित के लिए त्याग और बलिदान की भावना से युग-युग का भारतीय अनुप्राणित रहा है। यहाँ सैकड़ों शिवि, दधीचि और मोरध्वज हो गए हैं।

Correct Answer: (b) आध्यात्मिकता में
Solution:उपर्युक्त गद्यांश के आधार पर 'आध्यात्मिकता' में भारतीय संस्कृति की प्रमुख विशेषता है। 'आध्यात्मिकता' में शरीर की अपेक्षा आत्मा को अधिक महत्त्व दिया जाता है।

46. भारतीय संस्कृति के अन्तर्गत शरीर की अपेक्षा किसको अधिक महत्त्व दिया गया है? [MP. PCS (C-SAT) EXAM, 2022]

निर्देश :- (प्रश्न संख्या 1 से 5) दिए गए गद्यांश के आधार पर निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए।

भारतीय संस्कृति की प्रमुख विशेषता उसकी आध्यात्मिकता में है। इसके अन्तर्गत् शरीर की अपेक्षा आत्मा को अधिक महत्त्व दिया गया है। आत्मा सर्वव्यापक है; इसलिए हमारे यहाँ चींटी से कुंजर तक में एक ही आत्मा का विस्तार माना जाता है। इससे सर्वोदय की भावना जागृत होती है। हम सबके कल्याणी (सुखी) होने की कामना करते हैं। हम सबके कल्याण की इच्छा करते हैं, क्योंकि सबमें वही सत्ता ओत-प्रोत है, जो हममें है। सत्य और अहिंसा इसीलिए हमारे जीवन के अंग रहे हैं। परहित के लिए त्याग और बलिदान की भावना से युग-युग का भारतीय अनुप्राणित रहा है। यहाँ सैकड़ों शिवि, दधीचि और मोरध्वज हो गए हैं।

Correct Answer: (a) आत्मा को
Solution:उपर्युक्त गद्यांश के आधार पर भारतीय संस्कृति के अन्तर्गत शरीर की अपेक्षा आत्मा को अधिक महत्त्व दिया जाता है।

47. उत्साह की संज्ञा प्राप्त करने के लिए किसका लगाव जरूरी हैं? [MP. PCS (C-SAT) EXAM, 2022]

निर्देश :- (प्रश्न संख्या 1 से 5) दिए गए गद्यांश के आधार पर निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए।

उत्साह की गिनती अच्छे गुणों में होती है। किसी भाव के अच्छे या बुरे होने का निश्चय अधिकतर उसकी प्रवृत्ति के शुभया अशुभ परिणाम के विचार से होता है। वहीं उत्साह जो कर्तव्य-कर्मों के प्रति इतना सुन्दर दिखाई पड़ता है, अकर्त्तव्य-कर्मों की ओर होने पर वैसा श्लाघ्य नहीं प्रतीत होता। जब तक आनन्द का लगाव किसी क्रिया, व्यापार या उसकी भावना के साथ नहीं दिखाई पड़ता, तब तक उसे उत्साह की संज्ञा प्राप्त नहीं होती। प्रयत्न और कर्म-संकल्प उत्साह नामक आनन्द के नित्य लक्षण हैं। प्रत्येक कर्म में थोड़ा या बहुत बुद्धि का योग भी रहता है। कुछ कर्मों में तो बुद्धि की तत्परता और शरीर की तत्परता दोनों बराबर साथ-साथ चलती हैं। उत्साह की उमंग जिस प्रकार हाथ-पैर चलवाती है, उसी प्रकार बुद्धि से भी काम कराती है। ऐसे उत्साह वाले कर्मवीर भी होते हैं और बुद्धिवीर भी होते हैं।

Correct Answer: (a) आनन्द का लगाव
Solution:उपर्युक्त गद्यांश के आधार पर 'उत्साह' की संज्ञा प्राप्त करने के लिए आनन्द का लगाव जरूरी है। वस्तुतः जब तक आनन्द का लगाव किसी क्रिया, व्यापार या उसकी भावना के साथ नहीं दिखाई पड़ता, तब तक उसे उत्साह की संज्ञा प्राप्त नहीं होती।

48. उत्साह नामक आनन्द के नित्य लक्षण क्या हैं? [MP. PCS (C-SAT) EXAM, 2022]

निर्देश :- (प्रश्न संख्या 1 से 5) दिए गए गद्यांश के आधार पर निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए।

उत्साह की गिनती अच्छे गुणों में होती है। किसी भाव के अच्छे या बुरे होने का निश्चय अधिकतर उसकी प्रवृत्ति के शुभया अशुभ परिणाम के विचार से होता है। वहीं उत्साह जो कर्तव्य-कर्मों के प्रति इतना सुन्दर दिखाई पड़ता है, अकर्त्तव्य-कर्मों की ओर होने पर वैसा श्लाघ्य नहीं प्रतीत होता। जब तक आनन्द का लगाव किसी क्रिया, व्यापार या उसकी भावना के साथ नहीं दिखाई पड़ता, तब तक उसे उत्साह की संज्ञा प्राप्त नहीं होती। प्रयत्न और कर्म-संकल्प उत्साह नामक आनन्द के नित्य लक्षण हैं। प्रत्येक कर्म में थोड़ा या बहुत बुद्धि का योग भी रहता है। कुछ कर्मों में तो बुद्धि की तत्परता और शरीर की तत्परता दोनों बराबर साथ-साथ चलती हैं। उत्साह की उमंग जिस प्रकार हाथ-पैर चलवाती है, उसी प्रकार बुद्धि से भी काम कराती है। ऐसे उत्साह वाले कर्मवीर भी होते हैं और बुद्धिवीर भी होते हैं।

Correct Answer: (a) प्रयत्न और कर्म-संकल्प
Solution:उपर्युक्त गद्यांश के आधार पर उत्साह नामक आनन्द के नित्य लक्षण 'प्रयत्न और कर्म-संकल्प' हैं।

49. प्रत्येक कर्म में थोड़ा या बहुत किसका योग भी रहता है? [MP. PCS (C-SAT) EXAM, 2022]

निर्देश :- (प्रश्न संख्या 1 से 5) दिए गए गद्यांश के आधार पर निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए।

उत्साह की गिनती अच्छे गुणों में होती है। किसी भाव के अच्छे या बुरे होने का निश्चय अधिकतर उसकी प्रवृत्ति के शुभया अशुभ परिणाम के विचार से होता है। वहीं उत्साह जो कर्तव्य-कर्मों के प्रति इतना सुन्दर दिखाई पड़ता है, अकर्त्तव्य-कर्मों की ओर होने पर वैसा श्लाघ्य नहीं प्रतीत होता। जब तक आनन्द का लगाव किसी क्रिया, व्यापार या उसकी भावना के साथ नहीं दिखाई पड़ता, तब तक उसे उत्साह की संज्ञा प्राप्त नहीं होती। प्रयत्न और कर्म-संकल्प उत्साह नामक आनन्द के नित्य लक्षण हैं। प्रत्येक कर्म में थोड़ा या बहुत बुद्धि का योग भी रहता है। कुछ कर्मों में तो बुद्धि की तत्परता और शरीर की तत्परता दोनों बराबर साथ-साथ चलती हैं। उत्साह की उमंग जिस प्रकार हाथ-पैर चलवाती है, उसी प्रकार बुद्धि से भी काम कराती है। ऐसे उत्साह वाले कर्मवीर भी होते हैं और बुद्धिवीर भी होते हैं।

Correct Answer: (c) बुद्धि का
Solution:उपर्युक्त गद्यांश के आधार पर प्रत्येक कर्म में थोड़ा या बहुत बुद्धि का भी योग रहता है।

50. किसी भाव के अच्छे या बुरे होने का निश्चय अधिकतर होता है : [MP. PCS (C-SAT) EXAM, 2022]

निर्देश :- (प्रश्न संख्या 1 से 5) दिए गए गद्यांश के आधार पर निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए।

उत्साह की गिनती अच्छे गुणों में होती है। किसी भाव के अच्छे या बुरे होने का निश्चय अधिकतर उसकी प्रवृत्ति के शुभया अशुभ परिणाम के विचार से होता है। वहीं उत्साह जो कर्तव्य-कर्मों के प्रति इतना सुन्दर दिखाई पड़ता है, अकर्त्तव्य-कर्मों की ओर होने पर वैसा श्लाघ्य नहीं प्रतीत होता। जब तक आनन्द का लगाव किसी क्रिया, व्यापार या उसकी भावना के साथ नहीं दिखाई पड़ता, तब तक उसे उत्साह की संज्ञा प्राप्त नहीं होती। प्रयत्न और कर्म-संकल्प उत्साह नामक आनन्द के नित्य लक्षण हैं। प्रत्येक कर्म में थोड़ा या बहुत बुद्धि का योग भी रहता है। कुछ कर्मों में तो बुद्धि की तत्परता और शरीर की तत्परता दोनों बराबर साथ-साथ चलती हैं। उत्साह की उमंग जिस प्रकार हाथ-पैर चलवाती है, उसी प्रकार बुद्धि से भी काम कराती है। ऐसे उत्साह वाले कर्मवीर भी होते हैं और बुद्धिवीर भी होते हैं।

Correct Answer: (b) उसकी प्रवृत्ति के शुभ या अशुभ परिणाम के विचार से।
Solution:उपर्युक्त गद्यांश के आधार पर किसी भाव के अच्छे या बुरे होने का निश्चय अधिकतर उसकी प्रवृत्ति के शुभ या अशुभ परिणाम के विचार से होता है।