अपठित गद्यांश (अवतरण)/पद्यांश (Part-3)

Total Questions: 50

21. आजकल पढ़े-लिखे नवयुवक विदेश क्यों जाते हैं? सर्वाधिक सबल तर्क कौन-सा लगता है? [PET (Exam) 2022]

निर्देश :- निम्नलिखित अनुच्छेद को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों (प्र. 1 से 5) के उत्तर दीजिए।

आजकल पढ़े-लिखे नवयुवकों को विदेशी संस्कृति और जीवन अपनी ओर सर्वाधिक आकर्षित कर रहे हैं। इसके लिए कई माता-पिता का भी सपना होता है कि उनकी संतान विदेशों में पढ़ने जाए, वहाँ

की सुख-चैन की जिन्दगी बसर करे और समाज में उनका नाम ऊँचा हो। इसमें कुछ गलत भी नहीं है। भारत में बेकारी है, गरीबी है, गंदगी है, प्रदूषण है, भ्रष्टाचार है, लूट-पाट है और विदेशों में इससे सर्वथा विपरीत स्वर्गीय आनन्द है। माँ-बाप के अथक प्रयासों एवं प्रेरणा के फलस्वरूप बच्चे विदेशों में पढ़ने-बसने चले जाते हैं। शुरू में तो माँ-बाप, सगे-सम्बम्धी सभी याद आते हैं पर कालान्तर में बच्चे वहाँ की ज़िन्दगी और वहाँ की तथाकथित सभ्यता में इतने रच-बस जाते हैं कि धीरे-धीरे वे पड़ोसियों, सगे-सम्बन्धियों, अपने भारतीय मित्रों और माँ-बाप को भी भूलने लगते हैं। पहले वर्ष में एक-दो बार इसके बाद क्रमशः धीरे-धीरे भारत में आना कम होने लगता है। अगर विदेशी मैम से शादी हो जाए तो कहने ही क्या? कुछेक को छोड़कर ज़्यादातर के ये ही हाल हैं। इसमें उन बच्चों का उतना दोष भी नहीं है और न विदेश भेजने वाले अभिभावक ही कदाचित उतने दोषी हैं। शायद उनके संस्कारों में ही कोई कमी रह गई हो। पीढ़ियों के अन्तराल के प्रभाव की समझ न रखने वाले ज़्यादातर माँ-बाप दो-चार महीने तक सन्तान के पास जाकर इसके बाद वापस स्वदेश आ जाते हैं; क्योंकि उनके कमाऊ पूत स्वदेश में आकर बसना नहीं चाहते। बच्चों की शिकायत है कि माँ-बाप उनकी पत्नी और बच्चों के साथ एडजस्ट नहीं करते और अपनी पुराने जमाने की चीजों को यहाँ थोपना चाहते हैं। इस प्रकार के व्यवहार से वे हमारे साथ कैसे रह पाएँगे? अपने द्वारा भोगे जाने वाले कष्टों और दुश्चिन्ताओं की चर्चा वे माँ-बाप किसी से नहीं करते। उनके द्वारा लिए गए निर्णय पर जग हँसाई के डर के साथ रहने वाले वे बुढ़ापे के कष्टों और बीमारियों को अकेले ही झेलते बच्चों के वियोग में अनकही पीड़ाओं के साथ एक-एक करके दोनों अन्ततः इस दुनिया से विदा हो जाते हैं।

Correct Answer: (d) माँ-बाप का सपना पूरा करने, सुख-चैन की ज़िन्दगी बसर करने तथा समाज में प्रतिष्ठा बढ़ाने के लिए जाते हैं।
Solution:आजकल पढ़े-लिखे नवयुवक, माँ-बाप का सपना पूरा करने, सुख-चैन की ज़िन्दगी बसर करने तथा समाज में प्रतिष्ठा बढ़ाने के लिए विदेश जाते हैं। अतः, कह सकते हैं कि प्रस्तुत विकल्पों में विकल्प (d) सर्वाधिक सबल तर्क है।

22. विदेश में जा बसे बच्चों के माँ-बाप अपने द्वारा भोगे जाने वाले कष्टों और दुश्चिन्ताओं की चर्चा किसी से क्यों नहीं करते? [PET (Exam) 2022]

निर्देश :- निम्नलिखित अनुच्छेद को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों (प्र. 1 से 5) के उत्तर दीजिए।

आजकल पढ़े-लिखे नवयुवकों को विदेशी संस्कृति और जीवन अपनी ओर सर्वाधिक आकर्षित कर रहे हैं। इसके लिए कई माता-पिता का भी सपना होता है कि उनकी संतान विदेशों में पढ़ने जाए, वहाँ

की सुख-चैन की जिन्दगी बसर करे और समाज में उनका नाम ऊँचा हो। इसमें कुछ गलत भी नहीं है। भारत में बेकारी है, गरीबी है, गंदगी है, प्रदूषण है, भ्रष्टाचार है, लूट-पाट है और विदेशों में इससे सर्वथा विपरीत स्वर्गीय आनन्द है। माँ-बाप के अथक प्रयासों एवं प्रेरणा के फलस्वरूप बच्चे विदेशों में पढ़ने-बसने चले जाते हैं। शुरू में तो माँ-बाप, सगे-सम्बम्धी सभी याद आते हैं पर कालान्तर में बच्चे वहाँ की ज़िन्दगी और वहाँ की तथाकथित सभ्यता में इतने रच-बस जाते हैं कि धीरे-धीरे वे पड़ोसियों, सगे-सम्बन्धियों, अपने भारतीय मित्रों और माँ-बाप को भी भूलने लगते हैं। पहले वर्ष में एक-दो बार इसके बाद क्रमशः धीरे-धीरे भारत में आना कम होने लगता है। अगर विदेशी मैम से शादी हो जाए तो कहने ही क्या? कुछेक को छोड़कर ज़्यादातर के ये ही हाल हैं। इसमें उन बच्चों का उतना दोष भी नहीं है और न विदेश भेजने वाले अभिभावक ही कदाचित उतने दोषी हैं। शायद उनके संस्कारों में ही कोई कमी रह गई हो। पीढ़ियों के अन्तराल के प्रभाव की समझ न रखने वाले ज़्यादातर माँ-बाप दो-चार महीने तक सन्तान के पास जाकर इसके बाद वापस स्वदेश आ जाते हैं; क्योंकि उनके कमाऊ पूत स्वदेश में आकर बसना नहीं चाहते। बच्चों की शिकायत है कि माँ-बाप उनकी पत्नी और बच्चों के साथ एडजस्ट नहीं करते और अपनी पुराने जमाने की चीजों को यहाँ थोपना चाहते हैं। इस प्रकार के व्यवहार से वे हमारे साथ कैसे रह पाएँगे? अपने द्वारा भोगे जाने वाले कष्टों और दुश्चिन्ताओं की चर्चा वे माँ-बाप किसी से नहीं करते। उनके द्वारा लिए गए निर्णय पर जग हँसाई के डर के साथ रहने वाले वे बुढ़ापे के कष्टों और बीमारियों को अकेले ही झेलते बच्चों के वियोग में अनकही पीड़ाओं के साथ एक-एक करके दोनों अन्ततः इस दुनिया से विदा हो जाते हैं।

Correct Answer: (d) जग हँसाई से बचने के लिए।
Solution:प्रस्तुत विकल्पों में विकल्प (d) इस प्रश्न का उचित उत्तर है। विदेश में जा बसे बच्चों के माँ-बाप अपने द्वारा भोगे जाने वाले कष्टों और दुश्चिन्ताओं की चर्चा इसलिए नहीं करते, जिससे वे जग हँसाई से बच सकें।

23. बच्चों की शिकायत है कि माँ-बाप पत्नी और बच्चों के साथ एडजस्ट नहीं करते और अपनी पुराने ज़माने की चीजों को यहाँ थोपना चाहते हैं। इसके लिए कौन दोषी है? [PET (Exam) 2022]

निर्देश :- निम्नलिखित अनुच्छेद को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों (प्र. 1 से 5) के उत्तर दीजिए।

आजकल पढ़े-लिखे नवयुवकों को विदेशी संस्कृति और जीवन अपनी ओर सर्वाधिक आकर्षित कर रहे हैं। इसके लिए कई माता-पिता का भी सपना होता है कि उनकी संतान विदेशों में पढ़ने जाए, वहाँ

की सुख-चैन की जिन्दगी बसर करे और समाज में उनका नाम ऊँचा हो। इसमें कुछ गलत भी नहीं है। भारत में बेकारी है, गरीबी है, गंदगी है, प्रदूषण है, भ्रष्टाचार है, लूट-पाट है और विदेशों में इससे सर्वथा विपरीत स्वर्गीय आनन्द है। माँ-बाप के अथक प्रयासों एवं प्रेरणा के फलस्वरूप बच्चे विदेशों में पढ़ने-बसने चले जाते हैं। शुरू में तो माँ-बाप, सगे-सम्बम्धी सभी याद आते हैं पर कालान्तर में बच्चे वहाँ की ज़िन्दगी और वहाँ की तथाकथित सभ्यता में इतने रच-बस जाते हैं कि धीरे-धीरे वे पड़ोसियों, सगे-सम्बन्धियों, अपने भारतीय मित्रों और माँ-बाप को भी भूलने लगते हैं। पहले वर्ष में एक-दो बार इसके बाद क्रमशः धीरे-धीरे भारत में आना कम होने लगता है। अगर विदेशी मैम से शादी हो जाए तो कहने ही क्या? कुछेक को छोड़कर ज़्यादातर के ये ही हाल हैं। इसमें उन बच्चों का उतना दोष भी नहीं है और न विदेश भेजने वाले अभिभावक ही कदाचित उतने दोषी हैं। शायद उनके संस्कारों में ही कोई कमी रह गई हो। पीढ़ियों के अन्तराल के प्रभाव की समझ न रखने वाले ज़्यादातर माँ-बाप दो-चार महीने तक सन्तान के पास जाकर इसके बाद वापस स्वदेश आ जाते हैं; क्योंकि उनके कमाऊ पूत स्वदेश में आकर बसना नहीं चाहते। बच्चों की शिकायत है कि माँ-बाप उनकी पत्नी और बच्चों के साथ एडजस्ट नहीं करते और अपनी पुराने जमाने की चीजों को यहाँ थोपना चाहते हैं। इस प्रकार के व्यवहार से वे हमारे साथ कैसे रह पाएँगे? अपने द्वारा भोगे जाने वाले कष्टों और दुश्चिन्ताओं की चर्चा वे माँ-बाप किसी से नहीं करते। उनके द्वारा लिए गए निर्णय पर जग हँसाई के डर के साथ रहने वाले वे बुढ़ापे के कष्टों और बीमारियों को अकेले ही झेलते बच्चों के वियोग में अनकही पीड़ाओं के साथ एक-एक करके दोनों अन्ततः इस दुनिया से विदा हो जाते हैं।

Correct Answer: (c) दो पीढ़ियों का अन्तराल ।
Solution:इस प्रश्न का सबसे सार्थक उत्तर विकल्प (c) है। बच्चों की शिकायत है कि माँ-बाप पत्नी और बच्चों के साथ एडजस्ट नहीं करते और अपनी पुराने जमाने की चीजों को यहाँ थोपना चाहते हैं, इसका प्रमुख कारण दो पीढ़ियों के बीच का अन्तराल है।

24. 'इस प्रकार के व्यवहार से वे हमारे साथ कैसे रह पाएँगे?' यहाँ ऐसे कौन-से व्यवहार की ओर संकेत है, जिससे उनकी सन्तान उन्हें अपने साथ नहीं रख पाती ? [PET (Exam) 2022]

निर्देश :- निम्नलिखित अनुच्छेद को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों (प्र. 1 से 5) के उत्तर दीजिए।

आजकल पढ़े-लिखे नवयुवकों को विदेशी संस्कृति और जीवन अपनी ओर सर्वाधिक आकर्षित कर रहे हैं। इसके लिए कई माता-पिता का भी सपना होता है कि उनकी संतान विदेशों में पढ़ने जाए, वहाँ

की सुख-चैन की जिन्दगी बसर करे और समाज में उनका नाम ऊँचा हो। इसमें कुछ गलत भी नहीं है। भारत में बेकारी है, गरीबी है, गंदगी है, प्रदूषण है, भ्रष्टाचार है, लूट-पाट है और विदेशों में इससे सर्वथा विपरीत स्वर्गीय आनन्द है। माँ-बाप के अथक प्रयासों एवं प्रेरणा के फलस्वरूप बच्चे विदेशों में पढ़ने-बसने चले जाते हैं। शुरू में तो माँ-बाप, सगे-सम्बम्धी सभी याद आते हैं पर कालान्तर में बच्चे वहाँ की ज़िन्दगी और वहाँ की तथाकथित सभ्यता में इतने रच-बस जाते हैं कि धीरे-धीरे वे पड़ोसियों, सगे-सम्बन्धियों, अपने भारतीय मित्रों और माँ-बाप को भी भूलने लगते हैं। पहले वर्ष में एक-दो बार इसके बाद क्रमशः धीरे-धीरे भारत में आना कम होने लगता है। अगर विदेशी मैम से शादी हो जाए तो कहने ही क्या? कुछेक को छोड़कर ज़्यादातर के ये ही हाल हैं। इसमें उन बच्चों का उतना दोष भी नहीं है और न विदेश भेजने वाले अभिभावक ही कदाचित उतने दोषी हैं। शायद उनके संस्कारों में ही कोई कमी रह गई हो। पीढ़ियों के अन्तराल के प्रभाव की समझ न रखने वाले ज़्यादातर माँ-बाप दो-चार महीने तक सन्तान के पास जाकर इसके बाद वापस स्वदेश आ जाते हैं; क्योंकि उनके कमाऊ पूत स्वदेश में आकर बसना नहीं चाहते। बच्चों की शिकायत है कि माँ-बाप उनकी पत्नी और बच्चों के साथ एडजस्ट नहीं करते और अपनी पुराने जमाने की चीजों को यहाँ थोपना चाहते हैं। इस प्रकार के व्यवहार से वे हमारे साथ कैसे रह पाएँगे? अपने द्वारा भोगे जाने वाले कष्टों और दुश्चिन्ताओं की चर्चा वे माँ-बाप किसी से नहीं करते। उनके द्वारा लिए गए निर्णय पर जग हँसाई के डर के साथ रहने वाले वे बुढ़ापे के कष्टों और बीमारियों को अकेले ही झेलते बच्चों के वियोग में अनकही पीड़ाओं के साथ एक-एक करके दोनों अन्ततः इस दुनिया से विदा हो जाते हैं।

Correct Answer: (c) बच्चों के परिवार के सदस्यों (पत्नी और उनके बच्चों) के रहन-सहन, खान-पान, पहनावे और चाल-चलन पर ऐतराज़ और कटाक्ष करते होंगे।
Solution:इस प्रश्न का सार्थक उत्तर विकल्प (c) है। बच्चों के परिवार के सदस्यों (पत्नी और बच्चों) के रहन-सहन, खान-पान, पहनावे और चाल-चलन पर माँ-बाप द्वारा ऐतराज़ एवं कटाक्ष किया जाता है। इस व्यवहार के कारण बच्चे माँ-बाप को अपने साथ नहीं रख पाते।

25. विदेश में जा बसे बच्चों के व्यवहार परिवर्तन के लिए कौन दोषी है? अनुच्छेद को ध्यान में रखते हुए सर्वाधिक प्रबल तर्क को चुनिए। [PET (Exam) 2022]

निर्देश :- निम्नलिखित अनुच्छेद को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों (प्र. 1 से 5) के उत्तर दीजिए।

आजकल पढ़े-लिखे नवयुवकों को विदेशी संस्कृति और जीवन अपनी ओर सर्वाधिक आकर्षित कर रहे हैं। इसके लिए कई माता-पिता का भी सपना होता है कि उनकी संतान विदेशों में पढ़ने जाए, वहाँ

की सुख-चैन की जिन्दगी बसर करे और समाज में उनका नाम ऊँचा हो। इसमें कुछ गलत भी नहीं है। भारत में बेकारी है, गरीबी है, गंदगी है, प्रदूषण है, भ्रष्टाचार है, लूट-पाट है और विदेशों में इससे सर्वथा विपरीत स्वर्गीय आनन्द है। माँ-बाप के अथक प्रयासों एवं प्रेरणा के फलस्वरूप बच्चे विदेशों में पढ़ने-बसने चले जाते हैं। शुरू में तो माँ-बाप, सगे-सम्बम्धी सभी याद आते हैं पर कालान्तर में बच्चे वहाँ की ज़िन्दगी और वहाँ की तथाकथित सभ्यता में इतने रच-बस जाते हैं कि धीरे-धीरे वे पड़ोसियों, सगे-सम्बन्धियों, अपने भारतीय मित्रों और माँ-बाप को भी भूलने लगते हैं। पहले वर्ष में एक-दो बार इसके बाद क्रमशः धीरे-धीरे भारत में आना कम होने लगता है। अगर विदेशी मैम से शादी हो जाए तो कहने ही क्या? कुछेक को छोड़कर ज़्यादातर के ये ही हाल हैं। इसमें उन बच्चों का उतना दोष भी नहीं है और न विदेश भेजने वाले अभिभावक ही कदाचित उतने दोषी हैं। शायद उनके संस्कारों में ही कोई कमी रह गई हो। पीढ़ियों के अन्तराल के प्रभाव की समझ न रखने वाले ज़्यादातर माँ-बाप दो-चार महीने तक सन्तान के पास जाकर इसके बाद वापस स्वदेश आ जाते हैं; क्योंकि उनके कमाऊ पूत स्वदेश में आकर बसना नहीं चाहते। बच्चों की शिकायत है कि माँ-बाप उनकी पत्नी और बच्चों के साथ एडजस्ट नहीं करते और अपनी पुराने जमाने की चीजों को यहाँ थोपना चाहते हैं। इस प्रकार के व्यवहार से वे हमारे साथ कैसे रह पाएँगे? अपने द्वारा भोगे जाने वाले कष्टों और दुश्चिन्ताओं की चर्चा वे माँ-बाप किसी से नहीं करते। उनके द्वारा लिए गए निर्णय पर जग हँसाई के डर के साथ रहने वाले वे बुढ़ापे के कष्टों और बीमारियों को अकेले ही झेलते बच्चों के वियोग में अनकही पीड़ाओं के साथ एक-एक करके दोनों अन्ततः इस दुनिया से विदा हो जाते हैं।

Correct Answer: (b) अधूरे संस्कार
Solution:विदेश में जा बसे बच्चों के व्यवहार में धीरे-धीरे परिवर्तन होने लगता है। इसके लिए न बच्चा दोषी है और न ही माँ-बाप दोषी है। इसके लिए माँ-बाप द्वारा बच्चों को दिए 'अधूरे संस्कार' दोषी हैं।

26. कौन से माँ-बाप अपने ही घर में दीन-हीन से होकर बच्चों का मुँह नहीं ताकते हैं? [PET (Exam) 2022]

निर्देश :- निम्नलिखित अनुच्छेद को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों (प्र. 1 से 5) के उत्तर दीजिए।

आज परिवारों का विघटन होता जा रहा है। परिवार सीमित और छोटे होते जा रहे हैं। पढ़े-लिखे परिवारों में एक या दो बच्चे ही होते हैं। माँ-बाप अपने उपलब्ध संसाधनों से बड़े लाड़ प्यार से बच्चों को अच्छी शिक्षा दिलवाते हैं और दुलार के साथ बड़ा करते हैं। पुराने समय का 'लालयेत् पश्च वर्षाणि, दश वर्षाणि ताडयेत्' वाला फॉर्मूला अब बदल चुका है। इतना लाड मिलने के बावजूद आज की नई पीढ़ी के बच्चे असहनशील होते जा रहे हैं। अगर शिक्षक कक्षा में उनसे कुछ भी कह दें, घर में माँ-बाप या कोई रिश्तेदार कुछ भी कह दें, तो वे तुरन्त प्रतिक्रियाशील हो जाते हैं। ग्रहणशीलता समाप्त - होती जा रही है और जैसा वे चाहें, वैसा करने की आज़ादी उन्हें चाहिए। अस्तु, येन-केन प्रकारेण बच्चे पढ़-लिखकर नौकरी पा जाते हैं या अपना काम सम्भाल लेते हैं। माता-पिता धीरे-धीरे बूढ़े होते जाते हैं। उनके द्वारा बचपन के प्यार से लेकर उस समय तक के त्याग और बलिदान उन्हीं के अपने बच्चों द्वारा भुला दिए जाते हैं। अब माँ-बाप बूढ़े और शक्तिहीन हैं और बच्चों पर बोझ। आज के बूढ़े माँ-बाप पिछली पीढ़ी के बूढ़े माँ-बाप की तुलना में अधिक दयनीय से होते जा रहे हैं। उन्हीं के द्वारा पालित-पोषित बच्चे उन्हें अपने परिवार का सदस्य मन से स्वीकार नहीं कर रहे हैं। यही कारण है कि बुढ़ापे में या तो माँ-बाप अकेले रहते हैं और या अपने ही घर में दीन-हीन से होकर बच्चों का मुँह ताकते हैं। पीढ़ियों के अन्तराल 1) से जीवन मूल्यों में तेजी से बदलाव हो रहा है। अच्छी भावना से र भी यदि बूढ़े माँ-बाप वयस्क बच्चों या उनके परिवार के विषय में कुछ सलाह देते हैं, तो उनकी सलाह का सम्मान नहीं होता। यह सम्भवतः पीढ़ियों के अन्तराल का परिणाम है। अब समय बदल गया है और अनुभवपूर्ण सलाह की इस नई पीढ़ी को आवश्यकता नहीं है। अपेक्षा की जाती है कि यदि उन्हें साथ रहना है तो एडजस्ट करके चलें, अन्यथा वृद्धाश्रम में हम-उम्र लोगों के बीच समय बिताएँ। खुद भी चैन से रहें और उन्हें भी अपनी तरह से चैन से रहने दें। क्या वास्तव में इस सबके लिए युवा पीढ़ी ही दोषी है या कुछ दोष वृद्धों का भी है? की

 

Correct Answer: (c) जो माता-पिता बदलते समय के साथ अपने आप को बदल लेते हैं और बहू-बेटों और उनके परिवार को उचित सम्मान देते हैं।
Solution:जो माता-पिता बदलते समय के साथ अपने आप को बदल लेते हैं और बहू-बेटों और उनके परिवार को उचित सम्मान देते हैं, वे अपने ही घर में दीन-हीन दशा में नहीं रहते और न ही अपने बच्चों का मुँह ताकते हैं।

27. माता-पिता द्वारा प्यार-दुलार एवं समस्त संसाधनों के दिए जाने के बावजूद आज की युवा पीढ़ी से वह आत्मीयता गायब है, जो पुरानी पीढ़ी तक विद्यमान थी। इसका सबसे उचित कारण क्या हो सकता है? [PET (Exam) 2022]

निर्देश :- निम्नलिखित अनुच्छेद को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों (प्र. 1 से 5) के उत्तर दीजिए।

आज परिवारों का विघटन होता जा रहा है। परिवार सीमित और छोटे होते जा रहे हैं। पढ़े-लिखे परिवारों में एक या दो बच्चे ही होते हैं। माँ-बाप अपने उपलब्ध संसाधनों से बड़े लाड़ प्यार से बच्चों को अच्छी शिक्षा दिलवाते हैं और दुलार के साथ बड़ा करते हैं। पुराने समय का 'लालयेत् पश्च वर्षाणि, दश वर्षाणि ताडयेत्' वाला फॉर्मूला अब बदल चुका है। इतना लाड मिलने के बावजूद आज की नई पीढ़ी के बच्चे असहनशील होते जा रहे हैं। अगर शिक्षक कक्षा में उनसे कुछ भी कह दें, घर में माँ-बाप या कोई रिश्तेदार कुछ भी कह दें, तो वे तुरन्त प्रतिक्रियाशील हो जाते हैं। ग्रहणशीलता समाप्त - होती जा रही है और जैसा वे चाहें, वैसा करने की आज़ादी उन्हें चाहिए। अस्तु, येन-केन प्रकारेण बच्चे पढ़-लिखकर नौकरी पा जाते हैं या अपना काम सम्भाल लेते हैं। माता-पिता धीरे-धीरे बूढ़े होते जाते हैं। उनके द्वारा बचपन के प्यार से लेकर उस समय तक के त्याग और बलिदान उन्हीं के अपने बच्चों द्वारा भुला दिए जाते हैं। अब माँ-बाप बूढ़े और शक्तिहीन हैं और बच्चों पर बोझ। आज के बूढ़े माँ-बाप पिछली पीढ़ी के बूढ़े माँ-बाप की तुलना में अधिक दयनीय से होते जा रहे हैं। उन्हीं के द्वारा पालित-पोषित बच्चे उन्हें अपने परिवार का सदस्य मन से स्वीकार नहीं कर रहे हैं। यही कारण है कि बुढ़ापे में या तो माँ-बाप अकेले रहते हैं और या अपने ही घर में दीन-हीन से होकर बच्चों का मुँह ताकते हैं। पीढ़ियों के अन्तराल 1) से जीवन मूल्यों में तेजी से बदलाव हो रहा है। अच्छी भावना से र भी यदि बूढ़े माँ-बाप वयस्क बच्चों या उनके परिवार के विषय में कुछ सलाह देते हैं, तो उनकी सलाह का सम्मान नहीं होता। यह सम्भवतः पीढ़ियों के अन्तराल का परिणाम है। अब समय बदल गया है और अनुभवपूर्ण सलाह की इस नई पीढ़ी को आवश्यकता नहीं है। अपेक्षा की जाती है कि यदि उन्हें साथ रहना है तो एडजस्ट करके चलें, अन्यथा वृद्धाश्रम में हम-उम्र लोगों के बीच समय बिताएँ। खुद भी चैन से रहें और उन्हें भी अपनी तरह से चैन से रहने दें। क्या वास्तव में इस सबके लिए युवा पीढ़ी ही दोषी है या कुछ दोष वृद्धों का भी है? की

 

Correct Answer: (b) पीढ़ियों के अन्तरण के कारण जीवन मूल्यों के बदलने से युवा पीढ़ी अदूरदर्शी और असहनशील होती जा रही है और उसकी ग्रहणशीलता कम होती जा रही है।
Solution:माता-पिता द्वारा प्यार-दुलार एवं समस्त संसाधनों के दिए जाने के बावजूद आज की युवा पीढ़ी से वह आत्मीयता गायब है, जो पुरानी पीढ़ी तक विद्यमान थी। इसका सबसे प्रमुख कारण पीढ़ियों के अन्तरण के कारण जीवन मूल्यों के बदलने से युवा पीढ़ी अदूरदर्शी और असहनशील होती जा रही है और उसकी असहनशीलता ज़्यादा तथा ग्रहणशीलता कम होती जा रही है।

28. आज के बुजुर्गों के लिए बदलते समय की कौन-सी सर्वोचित माँग है, जिससे वे चैन से अपना बुढ़ापा काट सकें? [PET (Exam) 2022]

निर्देश :- निम्नलिखित अनुच्छेद को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों (प्र. 1 से 5) के उत्तर दीजिए।

आज परिवारों का विघटन होता जा रहा है। परिवार सीमित और छोटे होते जा रहे हैं। पढ़े-लिखे परिवारों में एक या दो बच्चे ही होते हैं। माँ-बाप अपने उपलब्ध संसाधनों से बड़े लाड़ प्यार से बच्चों को अच्छी शिक्षा दिलवाते हैं और दुलार के साथ बड़ा करते हैं। पुराने समय का 'लालयेत् पश्च वर्षाणि, दश वर्षाणि ताडयेत्' वाला फॉर्मूला अब बदल चुका है। इतना लाड मिलने के बावजूद आज की नई पीढ़ी के बच्चे असहनशील होते जा रहे हैं। अगर शिक्षक कक्षा में उनसे कुछ भी कह दें, घर में माँ-बाप या कोई रिश्तेदार कुछ भी कह दें, तो वे तुरन्त प्रतिक्रियाशील हो जाते हैं। ग्रहणशीलता समाप्त - होती जा रही है और जैसा वे चाहें, वैसा करने की आज़ादी उन्हें चाहिए। अस्तु, येन-केन प्रकारेण बच्चे पढ़-लिखकर नौकरी पा जाते हैं या अपना काम सम्भाल लेते हैं। माता-पिता धीरे-धीरे बूढ़े होते जाते हैं। उनके द्वारा बचपन के प्यार से लेकर उस समय तक के त्याग और बलिदान उन्हीं के अपने बच्चों द्वारा भुला दिए जाते हैं। अब माँ-बाप बूढ़े और शक्तिहीन हैं और बच्चों पर बोझ। आज के बूढ़े माँ-बाप पिछली पीढ़ी के बूढ़े माँ-बाप की तुलना में अधिक दयनीय से होते जा रहे हैं। उन्हीं के द्वारा पालित-पोषित बच्चे उन्हें अपने परिवार का सदस्य मन से स्वीकार नहीं कर रहे हैं। यही कारण है कि बुढ़ापे में या तो माँ-बाप अकेले रहते हैं और या अपने ही घर में दीन-हीन से होकर बच्चों का मुँह ताकते हैं। पीढ़ियों के अन्तराल 1) से जीवन मूल्यों में तेजी से बदलाव हो रहा है। अच्छी भावना से र भी यदि बूढ़े माँ-बाप वयस्क बच्चों या उनके परिवार के विषय में कुछ सलाह देते हैं, तो उनकी सलाह का सम्मान नहीं होता। यह सम्भवतः पीढ़ियों के अन्तराल का परिणाम है। अब समय बदल गया है और अनुभवपूर्ण सलाह की इस नई पीढ़ी को आवश्यकता नहीं है। अपेक्षा की जाती है कि यदि उन्हें साथ रहना है तो एडजस्ट करके चलें, अन्यथा वृद्धाश्रम में हम-उम्र लोगों के बीच समय बिताएँ। खुद भी चैन से रहें और उन्हें भी अपनी तरह से चैन से रहने दें। क्या वास्तव में इस सबके लिए युवा पीढ़ी ही दोषी है या कुछ दोष वृद्धों का भी है? की

 

Correct Answer: (c) बुजुर्ग बुढ़ापे के लिए कुछ अर्जित करके रखें और अगली पीढ़ी के सदस्यों पर न बोझ बनें और न अपनी राय थोपें।
Solution:बुजुर्ग बुढ़ापे के लिए कुछ अर्जित करके रखें और अगली पीढ़ी के सदस्यों पर बोझ न बनें और न ही अपनी राय थोपें। आज के बुजुर्गों के लिए बदलते समय की सर्वाधिक उचित माँग यही है, इसके फलस्वरूप वे अपना बुढ़ापा चैन से काटने में सक्षम होंगे।

29. सन्तान के साथ रहने की इच्छा होते हुए भी कई माँ-बाप के अकेले रहने का कारण कौन-सा है? सबसे सबल तर्क कौन-सा है? [PET (Exam) 2022]

निर्देश :- निम्नलिखित अनुच्छेद को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों (प्र. 1 से 5) के उत्तर दीजिए।

आज परिवारों का विघटन होता जा रहा है। परिवार सीमित और छोटे होते जा रहे हैं। पढ़े-लिखे परिवारों में एक या दो बच्चे ही होते हैं। माँ-बाप अपने उपलब्ध संसाधनों से बड़े लाड़ प्यार से बच्चों को अच्छी शिक्षा दिलवाते हैं और दुलार के साथ बड़ा करते हैं। पुराने समय का 'लालयेत् पश्च वर्षाणि, दश वर्षाणि ताडयेत्' वाला फॉर्मूला अब बदल चुका है। इतना लाड मिलने के बावजूद आज की नई पीढ़ी के बच्चे असहनशील होते जा रहे हैं। अगर शिक्षक कक्षा में उनसे कुछ भी कह दें, घर में माँ-बाप या कोई रिश्तेदार कुछ भी कह दें, तो वे तुरन्त प्रतिक्रियाशील हो जाते हैं। ग्रहणशीलता समाप्त - होती जा रही है और जैसा वे चाहें, वैसा करने की आज़ादी उन्हें चाहिए। अस्तु, येन-केन प्रकारेण बच्चे पढ़-लिखकर नौकरी पा जाते हैं या अपना काम सम्भाल लेते हैं। माता-पिता धीरे-धीरे बूढ़े होते जाते हैं। उनके द्वारा बचपन के प्यार से लेकर उस समय तक के त्याग और बलिदान उन्हीं के अपने बच्चों द्वारा भुला दिए जाते हैं। अब माँ-बाप बूढ़े और शक्तिहीन हैं और बच्चों पर बोझ। आज के बूढ़े माँ-बाप पिछली पीढ़ी के बूढ़े माँ-बाप की तुलना में अधिक दयनीय से होते जा रहे हैं। उन्हीं के द्वारा पालित-पोषित बच्चे उन्हें अपने परिवार का सदस्य मन से स्वीकार नहीं कर रहे हैं। यही कारण है कि बुढ़ापे में या तो माँ-बाप अकेले रहते हैं और या अपने ही घर में दीन-हीन से होकर बच्चों का मुँह ताकते हैं। पीढ़ियों के अन्तराल 1) से जीवन मूल्यों में तेजी से बदलाव हो रहा है। अच्छी भावना से र भी यदि बूढ़े माँ-बाप वयस्क बच्चों या उनके परिवार के विषय में कुछ सलाह देते हैं, तो उनकी सलाह का सम्मान नहीं होता। यह सम्भवतः पीढ़ियों के अन्तराल का परिणाम है। अब समय बदल गया है और अनुभवपूर्ण सलाह की इस नई पीढ़ी को आवश्यकता नहीं है। अपेक्षा की जाती है कि यदि उन्हें साथ रहना है तो एडजस्ट करके चलें, अन्यथा वृद्धाश्रम में हम-उम्र लोगों के बीच समय बिताएँ। खुद भी चैन से रहें और उन्हें भी अपनी तरह से चैन से रहने दें। क्या वास्तव में इस सबके लिए युवा पीढ़ी ही दोषी है या कुछ दोष वृद्धों का भी है? की

 

Correct Answer: (d) माँ-बाप का सन्तान और उसके परिवार के प्रति रूखा व्यवहार, वाणी का असंयम और बहू-बेटों की ज़िन्दगी में ज्यादा दखलन्दाज़ी।
Solution:माँ-बाप का सन्तान और उसके परिवार के प्रति रूखा व्यवहार, वाणी का असंयम और बहू-बेटों की ज़िन्दगी में ज्यादा दखलन्दा. जी आदि प्रमुख कारण हैं, जिसके कारण सन्तान के साथ रहने की इच्छा होते हुए भी कई माँ-बाप अकेले रहते हैं।

30. कौन-से बच्चे अपने माता-पिता को वृद्धाश्रम में भेज देने की बात करते हैं? [PET (Exam) 2022]

निर्देश :- निम्नलिखित अनुच्छेद को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों (प्र. 1 से 5) के उत्तर दीजिए।

आज परिवारों का विघटन होता जा रहा है। परिवार सीमित और छोटे होते जा रहे हैं। पढ़े-लिखे परिवारों में एक या दो बच्चे ही होते हैं। माँ-बाप अपने उपलब्ध संसाधनों से बड़े लाड़ प्यार से बच्चों को अच्छी शिक्षा दिलवाते हैं और दुलार के साथ बड़ा करते हैं। पुराने समय का 'लालयेत् पश्च वर्षाणि, दश वर्षाणि ताडयेत्' वाला फॉर्मूला अब बदल चुका है। इतना लाड मिलने के बावजूद आज की नई पीढ़ी के बच्चे असहनशील होते जा रहे हैं। अगर शिक्षक कक्षा में उनसे कुछ भी कह दें, घर में माँ-बाप या कोई रिश्तेदार कुछ भी कह दें, तो वे तुरन्त प्रतिक्रियाशील हो जाते हैं। ग्रहणशीलता समाप्त - होती जा रही है और जैसा वे चाहें, वैसा करने की आज़ादी उन्हें चाहिए। अस्तु, येन-केन प्रकारेण बच्चे पढ़-लिखकर नौकरी पा जाते हैं या अपना काम सम्भाल लेते हैं। माता-पिता धीरे-धीरे बूढ़े होते जाते हैं। उनके द्वारा बचपन के प्यार से लेकर उस समय तक के त्याग और बलिदान उन्हीं के अपने बच्चों द्वारा भुला दिए जाते हैं। अब माँ-बाप बूढ़े और शक्तिहीन हैं और बच्चों पर बोझ। आज के बूढ़े माँ-बाप पिछली पीढ़ी के बूढ़े माँ-बाप की तुलना में अधिक दयनीय से होते जा रहे हैं। उन्हीं के द्वारा पालित-पोषित बच्चे उन्हें अपने परिवार का सदस्य मन से स्वीकार नहीं कर रहे हैं। यही कारण है कि बुढ़ापे में या तो माँ-बाप अकेले रहते हैं और या अपने ही घर में दीन-हीन से होकर बच्चों का मुँह ताकते हैं। पीढ़ियों के अन्तराल 1) से जीवन मूल्यों में तेजी से बदलाव हो रहा है। अच्छी भावना से र भी यदि बूढ़े माँ-बाप वयस्क बच्चों या उनके परिवार के विषय में कुछ सलाह देते हैं, तो उनकी सलाह का सम्मान नहीं होता। यह सम्भवतः पीढ़ियों के अन्तराल का परिणाम है। अब समय बदल गया है और अनुभवपूर्ण सलाह की इस नई पीढ़ी को आवश्यकता नहीं है। अपेक्षा की जाती है कि यदि उन्हें साथ रहना है तो एडजस्ट करके चलें, अन्यथा वृद्धाश्रम में हम-उम्र लोगों के बीच समय बिताएँ। खुद भी चैन से रहें और उन्हें भी अपनी तरह से चैन से रहने दें। क्या वास्तव में इस सबके लिए युवा पीढ़ी ही दोषी है या कुछ दोष वृद्धों का भी है? की

 

Correct Answer: (a) जो बच्चे संस्कारहीन और अविवेकी हैं और जो अपने भविष्य को नहीं देख पाते।
Solution:संस्कारहीन एवं अविवेकी बच्चे अपने माता-पिता को वृद्धाश्रम में भेज देने की बात करते हैं। इसका प्रमुख कारण है कि वे अपने भविष्य को देख नहीं पाते हैं और बाद में व्यथित एवं परेशान होते हैं।