अपठित गद्यांश (अवतरण)/पद्यांश (Part-3)

Total Questions: 50

31. आत्मसंयम का तात्पर्य है- [UPPCS (C-SAT) EXAM-2021]

निर्देश:- अधोलिखित गद्यांश को ध्यान से पढ़िए तथा प्रश्न संख्या 1 से 5 के उत्तर इस गद्यांश के आधार पर दीजिए।

प्रकृति ने मानव जीवन को बहुत सरल बनाया है, किन्तु आज का मानव अपने जीवन काल में ही पूरी दुनिया की सुख-समृद्धि बटोर लेने के प्रयास में उसको जटिल बनाता जा रहा है। इस जटिलता के कारण संसार में धनी-निर्धन, सत्ताधीश-सत्ताच्युत, सन्तानवान-निस्सन्तान सभी सुख-शान्ति की चाह तो रखते हैं, किन्तु राह पकड़ते हैं आह भरने की, मरु-मरीचिका के मैदान में जल की, धधकती आग में शीतलता की चाह रखते हैं। विद्वानों का विचार है, कि संसार में सुख का मार्ग है आत्मसंयम। किन्तु मानव इस मार्ग को भूलकर सांसारिक पदार्थों में, इन्द्रिय विषयों की प्राप्ति में आनन्द ढूँढ़ रहा है। परिणामतः दुःख के सागर में डूबता जा रहा है। आत्मसंयम का मार्ग अपने में बहुत स्पष्ट है, उसकी उपादेयता किसी भी काल में कम नहीं होती है। इन्द्रिय विषयों का संयम ही आत्मसंयम है। भौतिक पदार्थों के प्रति इन्द्रियों का प्रबल आकर्षण मानवीय दुःखों का मूल कारण माना गया है। उपभोक्तावादी संस्कृति के फैलाव से यह आकर्षण तीव्र से तीव्रतर होता जा रहा है। पर ऐसी स्थिति में याद रखना आवश्यक है कि ये भौतिक पदार्थ सुख तो दे सकते हैं; आनन्द नहीं। आनन्द का निर्झर तो आत्मसंयम से फूटता है। इसकी मिठास अनिर्वचनीय और अनुपम होती है। इस मिठास के सम्मुख धन-सम्पत्ति, सत्ता, सौन्दर्य का सुख, सागर के खारे पानी जैसा लगने लगता है।

 

Correct Answer: (d) इन्द्रियों के विषय के प्रति आकर्षण पर संयमन
Solution:उपर्युक्त गद्यांश के आधार पर 'आत्मसंयम' का तात्पर्य 'इन्द्रियों के विषय के प्रति आकर्षण पर संयम' है। वस्तुतः इन्द्रिय विषयों का संयम ही 'आत्मसंयम' है।

32. सत्ताच्युत का सही वर्तनी विश्लेषण है- [UPPCS (C-SAT) Exam - 2021]

निर्देश:- अधोलिखित गद्यांश को ध्यान से पढ़िए तथा प्रश्न संख्या 1 से 5 के उत्तर इस गद्यांश के आधार पर दीजिए।

प्रकृति ने मानव जीवन को बहुत सरल बनाया है, किन्तु आज का मानव अपने जीवन काल में ही पूरी दुनिया की सुख-समृद्धि बटोर लेने के प्रयास में उसको जटिल बनाता जा रहा है। इस जटिलता के कारण संसार में धनी-निर्धन, सत्ताधीश-सत्ताच्युत, सन्तानवान-निस्सन्तान सभी सुख-शान्ति की चाह तो रखते हैं, किन्तु राह पकड़ते हैं आह भरने की, मरु-मरीचिका के मैदान में जल की, धधकती आग में शीतलता की चाह रखते हैं। विद्वानों का विचार है, कि संसार में सुख का मार्ग है आत्मसंयम। किन्तु मानव इस मार्ग को भूलकर सांसारिक पदार्थों में, इन्द्रिय विषयों की प्राप्ति में आनन्द ढूँढ़ रहा है। परिणामतः दुःख के सागर में डूबता जा रहा है। आत्मसंयम का मार्ग अपने में बहुत स्पष्ट है, उसकी उपादेयता किसी भी काल में कम नहीं होती है। इन्द्रिय विषयों का संयम ही आत्मसंयम है। भौतिक पदार्थों के प्रति इन्द्रियों का प्रबल आकर्षण मानवीय दुःखों का मूल कारण माना गया है। उपभोक्तावादी संस्कृति के फैलाव से यह आकर्षण तीव्र से तीव्रतर होता जा रहा है। पर ऐसी स्थिति में याद रखना आवश्यक है कि ये भौतिक पदार्थ सुख तो दे सकते हैं; आनन्द नहीं। आनन्द का निर्झर तो आत्मसंयम से फूटता है। इसकी मिठास अनिर्वचनीय और अनुपम होती है। इस मिठास के सम्मुख धन-सम्पत्ति, सत्ता, सौन्दर्य का सुख, सागर के खारे पानी जैसा लगने लगता है।

 

Correct Answer: (b) स् अत् त आच् य् उ त् अ
Solution:'सत्ताच्युत' का सही वर्तनी विश्लेषण इस प्रकार है- स् अत् त आच् य् उ त् आ। वर्तनी विश्लेषण हेतु शब्द से प्रत्येक स्वर को अलग करते हुए तथा व्यंजनों को स्वर रहित किया जाता है।

33. आज का मानव जीवन को अधिक जटिल कैसे बना रहा है? [UPPCS (C-SAT) EXAM-2021]

निर्देश:- अधोलिखित गद्यांश को ध्यान से पढ़िए तथा प्रश्न संख्या 1 से 5 के उत्तर इस गद्यांश के आधार पर दीजिए।

प्रकृति ने मानव जीवन को बहुत सरल बनाया है, किन्तु आज का मानव अपने जीवन काल में ही पूरी दुनिया की सुख-समृद्धि बटोर लेने के प्रयास में उसको जटिल बनाता जा रहा है। इस जटिलता के कारण संसार में धनी-निर्धन, सत्ताधीश-सत्ताच्युत, सन्तानवान-निस्सन्तान सभी सुख-शान्ति की चाह तो रखते हैं, किन्तु राह पकड़ते हैं आह भरने की, मरु-मरीचिका के मैदान में जल की, धधकती आग में शीतलता की चाह रखते हैं। विद्वानों का विचार है, कि संसार में सुख का मार्ग है आत्मसंयम। किन्तु मानव इस मार्ग को भूलकर सांसारिक पदार्थों में, इन्द्रिय विषयों की प्राप्ति में आनन्द ढूँढ़ रहा है। परिणामतः दुःख के सागर में डूबता जा रहा है। आत्मसंयम का मार्ग अपने में बहुत स्पष्ट है, उसकी उपादेयता किसी भी काल में कम नहीं होती है। इन्द्रिय विषयों का संयम ही आत्मसंयम है। भौतिक पदार्थों के प्रति इन्द्रियों का प्रबल आकर्षण मानवीय दुःखों का मूल कारण माना गया है। उपभोक्तावादी संस्कृति के फैलाव से यह आकर्षण तीव्र से तीव्रतर होता जा रहा है। पर ऐसी स्थिति में याद रखना आवश्यक है कि ये भौतिक पदार्थ सुख तो दे सकते हैं; आनन्द नहीं। आनन्द का निर्झर तो आत्मसंयम से फूटता है। इसकी मिठास अनिर्वचनीय और अनुपम होती है। इस मिठास के सम्मुख धन-सम्पत्ति, सत्ता, सौन्दर्य का सुख, सागर के खारे पानी जैसा लगने लगता है।

 

Correct Answer: (c) संसार की सुख-समृद्धि को बटोरने के प्रयत्न में
Solution:उपर्युक्त गद्यांश के अनुसार, आज का मानव जीवन को अधिक जटिल 'संसार की सुख-समृद्धि को बटोरने के प्रयत्न में' बना रहा है।

34. गद्यांश के अनुसार भौतिक पदार्थ- [UPPCS (C-SAT) EXAM-2021]

निर्देश:- अधोलिखित गद्यांश को ध्यान से पढ़िए तथा प्रश्न संख्या 1 से 5 के उत्तर इस गद्यांश के आधार पर दीजिए।

निर्देश:- अधोलिखित गद्यांश को ध्यान से पढ़िए तथा प्रश्न संख्या 1 से 5 के उत्तर इस गद्यांश के आधार पर दीजिए।

प्रकृति ने मानव जीवन को बहुत सरल बनाया है, किन्तु आज का मानव अपने जीवन काल में ही पूरी दुनिया की सुख-समृद्धि बटोर लेने के प्रयास में उसको जटिल बनाता जा रहा है। इस जटिलता के कारण संसार में धनी-निर्धन, सत्ताधीश-सत्ताच्युत, सन्तानवान-निस्सन्तान सभी सुख-शान्ति की चाह तो रखते हैं, किन्तु राह पकड़ते हैं आह भरने की, मरु-मरीचिका के मैदान में जल की, धधकती आग में शीतलता की चाह रखते हैं। विद्वानों का विचार है, कि संसार में सुख का मार्ग है आत्मसंयम। किन्तु मानव इस मार्ग को भूलकर सांसारिक पदार्थों में, इन्द्रिय विषयों की प्राप्ति में आनन्द ढूँढ़ रहा है। परिणामतः दुःख के सागर में डूबता जा रहा है। आत्मसंयम का मार्ग अपने में बहुत स्पष्ट है, उसकी उपादेयता किसी भी काल में कम नहीं होती है। इन्द्रिय विषयों का संयम ही आत्मसंयम है। भौतिक पदार्थों के प्रति इन्द्रियों का प्रबल आकर्षण मानवीय दुःखों का मूल कारण माना गया है। उपभोक्तावादी संस्कृति के फैलाव से यह आकर्षण तीव्र से तीव्रतर होता जा रहा है। पर ऐसी स्थिति में याद रखना आवश्यक है कि ये भौतिक पदार्थ सुख तो दे सकते हैं; आनन्द नहीं। आनन्द का निर्झर तो आत्मसंयम से फूटता है। इसकी मिठास अनिर्वचनीय और अनुपम होती है। इस मिठास के सम्मुख धन-सम्पत्ति, सत्ता, सौन्दर्य का सुख, सागर के खारे पानी जैसा लगने लगता है।

 

 

Correct Answer: (d) सुख दे सकते हैं किन्तु आनन्द नहीं
Solution:गद्यांश के अनुसार, भौतिक पदार्थ सुख दे सकते हैं, किन्तु आनन्द नहीं। वस्तुतः 'आनन्द' आत्मसंयम से मिलता है। 'आत्मसंयम' इन्द्रिय विषयों को वश में करने पर प्राप्त होता है।

35. भौतिक पदार्थों के प्रति इन्द्रियों का प्रबल आकर्षण है- [UPPCS (C-SAT) EXAM-2021]

निर्देश:- अधोलिखित गद्यांश को ध्यान से पढ़िए तथा प्रश्न संख्या 1 से 5 के उत्तर इस गद्यांश के आधार पर दीजिए।

प्रकृति ने मानव जीवन को बहुत सरल बनाया है, किन्तु आज का मानव अपने जीवन काल में ही पूरी दुनिया की सुख-समृद्धि बटोर लेने के प्रयास में उसको जटिल बनाता जा रहा है। इस जटिलता के कारण संसार में धनी-निर्धन, सत्ताधीश-सत्ताच्युत, सन्तानवान-निस्सन्तान सभी सुख-शान्ति की चाह तो रखते हैं, किन्तु राह पकड़ते हैं आह भरने की, मरु-मरीचिका के मैदान में जल की, धधकती आग में शीतलता की चाह रखते हैं। विद्वानों का विचार है, कि संसार में सुख का मार्ग है आत्मसंयम। किन्तु मानव इस मार्ग को भूलकर सांसारिक पदार्थों में, इन्द्रिय विषयों की प्राप्ति में आनन्द ढूँढ़ रहा है। परिणामतः दुःख के सागर में डूबता जा रहा है। आत्मसंयम का मार्ग अपने में बहुत स्पष्ट है, उसकी उपादेयता किसी भी काल में कम नहीं होती है। इन्द्रिय विषयों का संयम ही आत्मसंयम है। भौतिक पदार्थों के प्रति इन्द्रियों का प्रबल आकर्षण मानवीय दुःखों का मूल कारण माना गया है। उपभोक्तावादी संस्कृति के फैलाव से यह आकर्षण तीव्र से तीव्रतर होता जा रहा है। पर ऐसी स्थिति में याद रखना आवश्यक है कि ये भौतिक पदार्थ सुख तो दे सकते हैं; आनन्द नहीं। आनन्द का निर्झर तो आत्मसंयम से फूटता है। इसकी मिठास अनिर्वचनीय और अनुपम होती है। इस मिठास के सम्मुख धन-सम्पत्ति, सत्ता, सौन्दर्य का सुख, सागर के खारे पानी जैसा लगने लगता है।

 

Correct Answer: (d) मानवीय दुःखों का मूल कारण
Solution:भौतिक पदार्थों के प्रति इन्द्रियों का प्रबल आकर्षण 'मानवीय दुःखों, का मूल कारण है। वर्तमान उपभोक्तावादी संस्कृति इस आकर्षण को और भी बढ़ाती जा रही है। अतः हमें भौतिक सुख तो मिल जाता है, किन्तु 'आनन्द' नहीं।

36. सच्चे वीर वे होते हैं - [UPSSSC Forest guard - 2021]

निर्देश :- अनुच्छेद को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों (प्रश्न 1 से 4) के उत्तर दीजिए -

सच्चा उत्साह वही होता है, जो मनुष्य को कार्य करने के लिए प्रेरणा देता है। मनुष्य किसी भी कारणवश जब किसी के कष्ट को दूर करने का संकल्प करता है, तब जिस सुख को वह अनुभव करता है, वह सुख विशेष रूप से प्रेरणा देने वाला होता है। जिस भी कार्य को करने के लिए मनुष्य में कष्ट, दुःख या हानि को सहन करने की ताकत आती है, उन सबसे उत्पन्न आनन्द ही उत्साह कहलाता है। उदाहरण के लिए दान देने वाला व्यक्ति निश्चय ही अपने भीतर एक विशेष साहस रखता है और वह है 'धन-त्याग' का साहस। यही त्याग यदि मनुष्य प्रसन्नता के साथ करता है, तो उसे उत्साह से किया गया दान कहा जाएगा। उत्साह आनन्द और साहस का मिला-जुला रूप है। उत्साह में किसी-न-किसी वस्तु पर ध्यान अवश्य केन्द्रित होता है। वह चाहे कर्म पर, चाहे कर्म के - फल पर और चाहे व्यक्ति या वस्तु पर हो। इन्हीं के आधार पर कर्म करने का आनन्द मिलता है। कर्म-भावना से उत्पन्न आनन्द का अनुभव केवल सच्चे वीर ही कर सकते हैं, क्योंकि उनमें साहस की अधिकता होती है। सामान्य व्यक्ति कार्य पूरा हो जाने पर जिस आनन्द का अनुभव करता है, सच्चा वीर कार्य प्रारम्भ होने पर ही उसका अनुभव कर लेता है। आलस्य उत्साह का सबसे बड़ा शत्रु है। 1 जो व्यक्ति आलस्य से भरा होगा, उसमें काम करने के प्रति उत्साह कभी उत्पन्न नहीं हो सकता। उत्साही व्यक्ति असफल होने पर भी कार्य करता रहता है। उत्साही व्यक्ति सदा दृढ़ निश्चयी होता है।

Correct Answer: (b) जो कर्म भाव से उत्साह दिखाते हैं।
Solution:कर्म, भावना से उत्पन्न आनन्द का अनुभव केवल सच्चे वीर ही कर सकते हैं; क्योंकि उनमें साहस की अधिकता होती है। जो कर्म भाव में उत्साह दिखाते हैं, वे ही सच्चे वीर कहलाते हैं।

37. कर्म करने में आनन्द किस कारण से मिलता है?

Correct Answer: (a) कर्म, कर्मफल, व्यक्ति या वस्तु पर ध्यान केन्द्रित होने से।
Solution:उत्साह, आनन्द और साहस का मिला-जुला रूप है। उत्साह में किसी-न-किसी वस्तु पर ध्यान अवश्य केन्द्रित होता है, चाहे कर्म पर, चाहे कर्मफल पर और चाहे व्यक्ति या वस्तु पर। इन्हीं के आधार पर कर्म करने में आनन्द मिलता है।

38. 'सच्चा उत्साह वही होता है, जो मनुष्य को कार्य करने के लिए प्रेरणा देता है।' रेखांकित उपवाक्य का प्रकार है - [UPSSSC Forest guard - 2021]

Correct Answer: (b) विशेषण उपवाक्य
Solution:रेखांकित उपवाक्य, विशेषण उपवाक्य का उदाहरण है। जो उपवाक्य विशेषण की तरह व्यवहृत हो, उसे विशेषण उपवाक्य कहते हैं। इसमें जो, जैसा, 'जितना' इत्यादि शब्दों का प्रयोग होता है।

39. उत्साह के मार्ग में सबसे बड़ी रुकावट है [UPSSSC Forest guard - 2021]

Correct Answer: (d) आलस्य
Solution:उत्साह के मार्ग में सबसे बड़ी रुकावट 'आलस्य' है। आलस्य उत्साह का सबसे बड़ा शत्रु है। जो व्यक्ति आलस्य से भरा होगा, उसमें काम करने के प्रति उत्साह कभी उत्पन्न नहीं हो सकता है। उत्साही व्यक्ति असफल होने पर भी कार्य करता रहता है। उत्साही व्यक्ति सदा दृढ़ निश्चयी होता है।

40. निम्नलिखित में से कौन-सा कथन शील के सम्बन्ध में गलत है? [UPSSSC सम्मिलित अवर अधीनस्थ सेवा (सा.च.) परीक्षा 2019 द्वितीय पाली (01/10/2019)]

निर्देश :- निम्नलिखित गद्यांश का अध्ययन कीजिए और नीचे दिए गए प्रश्नों (प्रश्न संख्या 1-3) के उत्तर दें।

शीलयुक्त व्यवहार मनुष्य की प्रकृति और व्यक्तित्व को उद्घाटित करता है। उत्तम, प्रशंसनीय और पवित्र आचरण ही शील है। शीलयुक्त व्यवहार प्रत्येक व्यक्ति के लिए हितकर है। इससे मनुष्य की ख्याति बढ़ती है। शीलवान् व्यक्ति सबका हृदय जीत लेता है। शीलयुक्त व्यवहार से कटुता दूर भागती है। इससे आशंका और सन्देह की स्थितियाँ कभी उत्पन्न नहीं होतीं। इससे ऐसे सुखद वातावरण का सृजन होता है, जिसमें सभी प्रसन्नता का अनुभव करते हैं। शीलवान् व्यक्ति अपने सम्पर्क में आने वाले सभी लोगों को सुप्रभावित करता है। शील इतना प्रभुत्व पूर्ण होता है कि किसी कार्य के बिगड़ने की नौबत नहीं आती। अधिकारी-अधीनस्थ, शिक्षक-शिक्षार्थी, छोटों-बड़ों आदि सभी के लिए शीलयुक्त व्यवहार समान रूप से आवश्यक है। शिक्षार्थी में यदि शील का अभाव है, तो वह अपने शिक्षक से वांछित शिक्षा प्राप्त नहीं कर सकता। शीलवान अधिकारी या कर्मचारी में आत्मविश्वास की वृद्धि स्वतः ही होने लगती है और साथ ही उनके व्यक्तित्व में शालीनता आ जाती है। इस अमूल्य गुण की उपस्थिति में अधिकारी वर्ग और अधीनस्थ कर्मचारियों के बीच, शिक्षकगण और विद्यार्थियों के बीच तथा शासक और शासित के बीच मधुर और । प्रगाढ़ सम्बन्ध स्थापित होते हैं और प्रत्येक वर्ग की कार्यकुशलता में वृद्धि होती है। इस गुण के माध्यम से छोटे-से-छोटा व्यक्ति बड़ों की सहानुभूति अर्जित कर लेता है। शील कोई दुर्लभ और दैवीय गुण नहीं है। इस गुण को अर्जित किया जा सकता है। पारिवारिक संस्कार इस गुण को विकसित और विस्तारित करने में बहुत बड़ी भूमिका अदा करते हैं।

 

Correct Answer: (b) शील एक दैवीय गुण है।
Solution:गद्यांश की अन्तिम पंक्तियों के अध्ययन से पता चलता है, कि शील दैवीय गुण नहीं है। इस गुण को अर्जित किया जा सकता है।