अपठित गद्यांश (अवतरण)/पद्यांश (Part-3)

Total Questions: 50

41. गद्यांश में रेखांकित अंश की उचित व्याख्या होगी- [UPSSSC सम्मिलित अवर अधीनस्थ सेवा (सा.च.) परीक्षा 2019 द्वितीय पाली (01/10/2019)]

निर्देश :- निम्नलिखित गद्यांश का अध्ययन कीजिए और नीचे दिए गए प्रश्नों (प्रश्न संख्या 1-3) के उत्तर दें।

शीलयुक्त व्यवहार मनुष्य की प्रकृति और व्यक्तित्व को उद्घाटित करता है। उत्तम, प्रशंसनीय और पवित्र आचरण ही शील है। शीलयुक्त व्यवहार प्रत्येक व्यक्ति के लिए हितकर है। इससे मनुष्य की ख्याति बढ़ती है। शीलवान् व्यक्ति सबका हृदय जीत लेता है। शीलयुक्त व्यवहार से कटुता दूर भागती है। इससे आशंका और सन्देह की स्थितियाँ कभी उत्पन्न नहीं होतीं। इससे ऐसे सुखद वातावरण का सृजन होता है, जिसमें सभी प्रसन्नता का अनुभव करते हैं। शीलवान् व्यक्ति अपने सम्पर्क में आने वाले सभी लोगों को सुप्रभावित करता है। शील इतना प्रभुत्व पूर्ण होता है कि किसी कार्य के बिगड़ने की नौबत नहीं आती। अधिकारी-अधीनस्थ, शिक्षक-शिक्षार्थी, छोटों-बड़ों आदि सभी के लिए शीलयुक्त व्यवहार समान रूप से आवश्यक है। शिक्षार्थी में यदि शील का अभाव है, तो वह अपने शिक्षक से वांछित शिक्षा प्राप्त नहीं कर सकता। शीलवान अधिकारी या कर्मचारी में आत्मविश्वास की वृद्धि स्वतः ही होने लगती है और साथ ही उनके व्यक्तित्व में शालीनता आ जाती है। इस अमूल्य गुण की उपस्थिति में अधिकारी वर्ग और अधीनस्थ कर्मचारियों के बीच, शिक्षकगण और विद्यार्थियों के बीच तथा शासक और शासित के बीच मधुर और । प्रगाढ़ सम्बन्ध स्थापित होते हैं और प्रत्येक वर्ग की कार्यकुशलता में वृद्धि होती है। इस गुण के माध्यम से छोटे-से-छोटा व्यक्ति बड़ों की सहानुभूति अर्जित कर लेता है। शील कोई दुर्लभ और दैवीय गुण नहीं है। इस गुण को अर्जित किया जा सकता है। पारिवारिक संस्कार इस गुण को विकसित और विस्तारित करने में बहुत बड़ी भूमिका अदा करते हैं।

 

Correct Answer: (c) जहाँ शील का प्रभुत्व होता है, वहाँ कोई कार्य बिगड़ने नहीं पाता।
Solution:गद्यांश के रेखांकित अंश की उचित व्याख्या इस प्रकार होगी-जहाँ शील का प्रभुत्व होता है, वहाँ कोई कार्य बिगड़ने नहीं पाता।

42. गद्यांश में कौन-सा शब्द 'दुष्प्रभावित' का विलोम है? [UPSSSC सम्मिलित अवर अधीनस्थ सेवा (सा.च.) परीक्षा 2019 द्वितीय पाली (01/10/2019)]

निर्देश :- निम्नलिखित गद्यांश का अध्ययन कीजिए और नीचे दिए गए प्रश्नों (प्रश्न संख्या 1-3) के उत्तर दें।

शीलयुक्त व्यवहार मनुष्य की प्रकृति और व्यक्तित्व को उद्घाटित करता है। उत्तम, प्रशंसनीय और पवित्र आचरण ही शील है। शीलयुक्त व्यवहार प्रत्येक व्यक्ति के लिए हितकर है। इससे मनुष्य की ख्याति बढ़ती है। शीलवान् व्यक्ति सबका हृदय जीत लेता है। शीलयुक्त व्यवहार से कटुता दूर भागती है। इससे आशंका और सन्देह की स्थितियाँ कभी उत्पन्न नहीं होतीं। इससे ऐसे सुखद वातावरण का सृजन होता है, जिसमें सभी प्रसन्नता का अनुभव करते हैं। शीलवान् व्यक्ति अपने सम्पर्क में आने वाले सभी लोगों को सुप्रभावित करता है। शील इतना प्रभुत्व पूर्ण होता है कि किसी कार्य के बिगड़ने की नौबत नहीं आती। अधिकारी-अधीनस्थ, शिक्षक-शिक्षार्थी, छोटों-बड़ों आदि सभी के लिए शीलयुक्त व्यवहार समान रूप से आवश्यक है। शिक्षार्थी में यदि शील का अभाव है, तो वह अपने शिक्षक से वांछित शिक्षा प्राप्त नहीं कर सकता। शीलवान अधिकारी या कर्मचारी में आत्मविश्वास की वृद्धि स्वतः ही होने लगती है और साथ ही उनके व्यक्तित्व में शालीनता आ जाती है। इस अमूल्य गुण की उपस्थिति में अधिकारी वर्ग और अधीनस्थ कर्मचारियों के बीच, शिक्षकगण और विद्यार्थियों के बीच तथा शासक और शासित के बीच मधुर और । प्रगाढ़ सम्बन्ध स्थापित होते हैं और प्रत्येक वर्ग की कार्यकुशलता में वृद्धि होती है। इस गुण के माध्यम से छोटे-से-छोटा व्यक्ति बड़ों की सहानुभूति अर्जित कर लेता है। शील कोई दुर्लभ और दैवीय गुण नहीं है। इस गुण को अर्जित किया जा सकता है। पारिवारिक संस्कार इस गुण को विकसित और विस्तारित करने में बहुत बड़ी भूमिका अदा करते हैं।

 

Correct Answer: (c) सुप्रभावित
Solution:गद्यांश में प्रयुक्त 'दुष्प्रभावित' शब्द का विलोम 'सुप्रभावित' है।

43. सबसे प्राचीन वीरता कौन-सी है? [U.P. CSAT. Exam, 2018]

निर्देश :- अधोलिखित गद्यांश को ध्यान से पढ़िए तथा प्रश्न संख्या 1 से 5 तक प्रश्नों के उत्तर इस गद्यांश के आधार पर दीजिए-

जिन कर्मों में किसी प्रकार का कष्ट या हानि सहने का साहस अपेक्षित होता है, उन सबके प्रति उत्कण्ठापूर्ण आनन्द उत्साह के अन्तर्गत लिया जाता है। कष्ट या हानि के भेद के अनुसार उत्साह के भी भेद हो जाते हैं। साहित्य मीमांसाकों ने इसी दृष्टि से युद्धवीर, दानवीर, दयावीर इत्यादि भेद किए हैं। इनमें सबसे प्राचीन और प्रधान युद्धवीरता है, जिसमें आघात, पीड़ा या मृत्यु की परवाह नहीं रहती। इस प्रकार की वीरता का प्रयोजन अत्यन्त प्राचीन काल से चला आ रहा है, जिसमें साहस और प्रयत्न दोनों चरम उत्कर्ष पर पहुँचते हैं। पर केवल कष्ट या पीड़ा सहन करने के साहस में ही उत्साह का स्वरूप स्फुरित नहीं होता। उसके साथ आनन्दपूर्ण प्रयत्न या उसकी उत्कण्ठा का योग चाहिए।

Correct Answer: (c) युद्धवीरता
Solution:गद्यांश के अनुसार, सबसे प्राचीन वीरता 'युद्धवीरता' है। अतः विकल्प (c) सही उत्तर है।

44. युद्धवीरता के लिए किस प्रकार की प्रकृति अपेक्षित है? [U.P. CSAT. Exam, 2018]

निर्देश :- अधोलिखित गद्यांश को ध्यान से पढ़िए तथा प्रश्न संख्या 1 से 5 तक प्रश्नों के उत्तर इस गद्यांश के आधार पर दीजिए-

जिन कर्मों में किसी प्रकार का कष्ट या हानि सहने का साहस अपेक्षित होता है, उन सबके प्रति उत्कण्ठापूर्ण आनन्द उत्साह के अन्तर्गत लिया जाता है। कष्ट या हानि के भेद के अनुसार उत्साह के भी भेद हो जाते हैं। साहित्य मीमांसाकों ने इसी दृष्टि से युद्धवीर, दानवीर, दयावीर इत्यादि भेद किए हैं। इनमें सबसे प्राचीन और प्रधान युद्धवीरता है, जिसमें आघात, पीड़ा या मृत्यु की परवाह नहीं रहती। इस प्रकार की वीरता का प्रयोजन अत्यन्त प्राचीन काल से चला आ रहा है, जिसमें साहस और प्रयत्न दोनों चरम उत्कर्ष पर पहुँचते हैं। पर केवल कष्ट या पीड़ा सहन करने के साहस में ही उत्साह का स्वरूप स्फुरित नहीं होता। उसके साथ आनन्दपूर्ण प्रयत्न या उसकी उत्कण्ठा का योग चाहिए।

Correct Answer: (d) साहस, प्रयत्न और कष्ट सहने का धीरज
Solution:गद्यांश में स्पष्ट उल्लेख है कि युद्धवीरता के लिए साहस, प्रयत्न और कष्ट सहने का धीरज अपेक्षित है।

45. उत्कण्ठापूर्ण आनन्द किसके अन्तर्गत लिया जाता है? [U.P. CSAT. Exam, 2018]

निर्देश :- अधोलिखित गद्यांश को ध्यान से पढ़िए तथा प्रश्न संख्या 1 से 5 तक प्रश्नों के उत्तर इस गद्यांश के आधार पर दीजिए-

जिन कर्मों में किसी प्रकार का कष्ट या हानि सहने का साहस अपेक्षित होता है, उन सबके प्रति उत्कण्ठापूर्ण आनन्द उत्साह के अन्तर्गत लिया जाता है। कष्ट या हानि के भेद के अनुसार उत्साह के भी भेद हो जाते हैं। साहित्य मीमांसाकों ने इसी दृष्टि से युद्धवीर, दानवीर, दयावीर इत्यादि भेद किए हैं। इनमें सबसे प्राचीन और प्रधान युद्धवीरता है, जिसमें आघात, पीड़ा या मृत्यु की परवाह नहीं रहती। इस प्रकार की वीरता का प्रयोजन अत्यन्त प्राचीन काल से चला आ रहा है, जिसमें साहस और प्रयत्न दोनों चरम उत्कर्ष पर पहुँचते हैं। पर केवल कष्ट या पीड़ा सहन करने के साहस में ही उत्साह का स्वरूप स्फुरित नहीं होता। उसके साथ आनन्दपूर्ण प्रयत्न या उसकी उत्कण्ठा का योग चाहिए।

Correct Answer: (a) उत्साह के अन्तर्गत
Solution:गद्यांश पठन के उपरान्त स्पष्ट होता है कि उत्कण्ठापूर्ण आनन्द उत्साह के अन्तर्गत् लिया जाता है। अतः विकल्प (a) सही उत्तर है।

46. साहित्य मीमांसकों ने वीरता के कौन-कौन से भेद किए हैं? [U.P. CSAT. Exam, 2018]

निर्देश :- अधोलिखित गद्यांश को ध्यान से पढ़िए तथा प्रश्न संख्या 1 से 5 तक प्रश्नों के उत्तर इस गद्यांश के आधार पर दीजिए-

जिन कर्मों में किसी प्रकार का कष्ट या हानि सहने का साहस अपेक्षित होता है, उन सबके प्रति उत्कण्ठापूर्ण आनन्द उत्साह के अन्तर्गत लिया जाता है। कष्ट या हानि के भेद के अनुसार उत्साह के भी भेद हो जाते हैं। साहित्य मीमांसाकों ने इसी दृष्टि से युद्धवीर, दानवीर, दयावीर इत्यादि भेद किए हैं। इनमें सबसे प्राचीन और प्रधान युद्धवीरता है, जिसमें आघात, पीड़ा या मृत्यु की परवाह नहीं रहती। इस प्रकार की वीरता का प्रयोजन अत्यन्त प्राचीन काल से चला आ रहा है, जिसमें साहस और प्रयत्न दोनों चरम उत्कर्ष पर पहुँचते हैं। पर केवल कष्ट या पीड़ा सहन करने के साहस में ही उत्साह का स्वरूप स्फुरित नहीं होता। उसके साथ आनन्दपूर्ण प्रयत्न या उसकी उत्कण्ठा का योग चाहिए।

Correct Answer: (a) युद्धवीर, दानवीर और दयावीर
Solution:गद्यांश में स्पष्ट उल्लेख है, कि साहित्य मीमांसकों ने वीरता के युद्धवीर, दानवीर तथा दयावीर इत्यादि भेद किए हैं। अतः विकल्प (a) सही उत्तर है।

47. उत्साह के भेद किस आधार पर किए गए हैं? [U.P. CSAT. Exam, 2018]

निर्देश :- अधोलिखित गद्यांश को ध्यान से पढ़िए तथा प्रश्न संख्या 1 से 5 तक प्रश्नों के उत्तर इस गद्यांश के आधार पर दीजिए-

जिन कर्मों में किसी प्रकार का कष्ट या हानि सहने का साहस अपेक्षित होता है, उन सबके प्रति उत्कण्ठापूर्ण आनन्द उत्साह के अन्तर्गत लिया जाता है। कष्ट या हानि के भेद के अनुसार उत्साह के भी भेद हो जाते हैं। साहित्य मीमांसाकों ने इसी दृष्टि से युद्धवीर, दानवीर, दयावीर इत्यादि भेद किए हैं। इनमें सबसे प्राचीन और प्रधान युद्धवीरता है, जिसमें आघात, पीड़ा या मृत्यु की परवाह नहीं रहती। इस प्रकार की वीरता का प्रयोजन अत्यन्त प्राचीन काल से चला आ रहा है, जिसमें साहस और प्रयत्न दोनों चरम उत्कर्ष पर पहुँचते हैं। पर केवल कष्ट या पीड़ा सहन करने के साहस में ही उत्साह का स्वरूप स्फुरित नहीं होता। उसके साथ आनन्दपूर्ण प्रयत्न या उसकी उत्कण्ठा का योग चाहिए।

Correct Answer: (d) कष्ट या हानि के भेद के आधार पर
Solution:गद्यांश में स्पष्ट उल्लेख है कि कष्ट या हानि के भेद के अनुसार उत्साह के भी भेद हो जाते हैं। अतः विकल्प (d) सही उत्तर है।

48. प्रस्तुत गद्यांश के द्वारा क्या सन्देश दिया गया है? [U.P.S.I. Exam, 15-दिसम्बर, 2017 (तृतीय पाली)]

 निर्देश :- निम्नलिखित गद्यांश के आधार पर प्रश्नों (1 से 3 तक) के उत्तर दीजिए :

दूसरों को स्नेह देना और उनका सम्मान करना सामाजिक सफलता का एकमात्र मंत्र है। जीवन में सुख-शान्ति और उन्नति चाहने वाले प्रत्येक महत्वाकांक्षी को सबसे पहले यही सीख धारण करनी चाहिए। युधिष्ठिर के राजसूय यज्ञ में कृष्ण ने लोगों के स्वागत की जिम्मेदारी ली और बदले में वे उस यज्ञ के सर्वाधिक पूज्य व्यक्ति माने गए। ईसा मसीह, गौतम बुद्ध, महावीर, महात्मा गाँधी जैसे महापुरुषों में रंचमात्र भी अभिमान न था। उन्होंने सदैव दूसरों को महत्त्व दिया और वे स्वयं ही महान् बन गए। मान-सम्मान का मूल्य चुकाना असम्भव है। अतः विद्यार्थी जीवन का भी प्रथम पाठ यही है, कि वह गुरु के प्रति सच्चे सम्मान का भाव अपने हृदय में पैदा करे, अन्यथा उसकी विद्या निष्फल है।

 

Correct Answer: (d) सदा दूसरों को स्नेह एवं सम्मान दें।
Solution:प्रस्तुत गद्यांश के द्वारा यह सन्देश दिया गया है कि सदा दूसरों को स्नेह एवं सम्मान दें।

49. दिए गए विकल्पों में से 'स्वागत' का सन्धि विच्छेद कौन-सा विकल्प है? [U.P.S.I. Exam, 15-दिसम्बर, 2017 (तृतीय पाली)]

 निर्देश :- निम्नलिखित गद्यांश के आधार पर प्रश्नों (1 से 3 तक) के उत्तर दीजिए :

दूसरों को स्नेह देना और उनका सम्मान करना सामाजिक सफलता का एकमात्र मंत्र है। जीवन में सुख-शान्ति और उन्नति चाहने वाले प्रत्येक महत्वाकांक्षी को सबसे पहले यही सीख धारण करनी चाहिए। युधिष्ठिर के राजसूय यज्ञ में कृष्ण ने लोगों के स्वागत की जिम्मेदारी ली और बदले में वे उस यज्ञ के सर्वाधिक पूज्य व्यक्ति माने गए। ईसा मसीह, गौतम बुद्ध, महावीर, महात्मा गाँधी जैसे महापुरुषों में रंचमात्र भी अभिमान न था। उन्होंने सदैव दूसरों को महत्त्व दिया और वे स्वयं ही महान् बन गए। मान-सम्मान का मूल्य चुकाना असम्भव है। अतः विद्यार्थी जीवन का भी प्रथम पाठ यही है, कि वह गुरु के प्रति सच्चे सम्मान का भाव अपने हृदय में पैदा करे, अन्यथा उसकी विद्या निष्फल है।

 

Correct Answer: (a) सु + आगत
Solution:'स्वागत' का सन्धि विच्छेद 'सु आगत' है। यह यण सन्धि है। इस सन्धि के नियमानुसार यदि इ, ई, उ, ऊ और ऋ के बाद कोई भिन्न स्वर आए, तो इ, ई का 'य्', उऊ का 'व्' और ऋ का 'र्' हो जाता है।

50. 'रंचमात्र भी अभिमान न था' का तात्पर्य कौन-सा विकल्प दर्शाता है? [U.P.S.I. Exam, 15-दिसम्बर, 2017 (तृतीय पाली)]

 निर्देश :- निम्नलिखित गद्यांश के आधार पर प्रश्नों (1 से 3 तक) के उत्तर दीजिए :

दूसरों को स्नेह देना और उनका सम्मान करना सामाजिक सफलता का एकमात्र मंत्र है। जीवन में सुख-शान्ति और उन्नति चाहने वाले प्रत्येक महत्वाकांक्षी को सबसे पहले यही सीख धारण करनी चाहिए। युधिष्ठिर के राजसूय यज्ञ में कृष्ण ने लोगों के स्वागत की जिम्मेदारी ली और बदले में वे उस यज्ञ के सर्वाधिक पूज्य व्यक्ति माने गए। ईसा मसीह, गौतम बुद्ध, महावीर, महात्मा गाँधी जैसे महापुरुषों में रंचमात्र भी अभिमान न था। उन्होंने सदैव दूसरों को महत्त्व दिया और वे स्वयं ही महान् बन गए। मान-सम्मान का मूल्य चुकाना असम्भव है। अतः विद्यार्थी जीवन का भी प्रथम पाठ यही है, कि वह गुरु के प्रति सच्चे सम्मान का भाव अपने हृदय में पैदा करे, अन्यथा उसकी विद्या निष्फल है।

 

Correct Answer: (c) जरा-सा भी अभिमान न था
Solution:'रंचमात्र भी अभिमान न था' का तात्पर्य है-जरा-सा भी अभिमान न था।