अपठित गद्यांश (अवतरण)/पद्यांश (Part-4)

Total Questions: 51

31. 'निःस्वार्थ' शब्द का उपयुक्त विपरीतार्थी शब्द है- [UP-TET Exam Ist Paper (I-V), 2019]

 निर्देशः- नीचे दिए गए अपठित गद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों (1 से 9 तक) के सबसे उपयुक्त उत्तर वाले विकल्प को चुनिए-

मानव के मर्मस्थल में परोपकार और त्याग जैसे सद्‌गुणों की जागृति तभी हो पाती है, जब वह अपने तुच्छ भौतिक जीवन को नगण्य समझकर उत्साह-उमंग के साथ दूसरों की सेवा-सुश्रूषा तथा सत्कार करता है। यह कठोर सत्य है कि हम भौतिक रूप में इस संसार में सीमित अवधि तक ही रहेंगे। हमारी मृत्यु के बाद हमारे निकट सम्बन्धी, मित्र, बन्धु-बान्धव जीवन भर हमारे लिए शोकाकुल और प्रेमाकुल भी नहीं रहेंगे। दुःख मिश्रित इस निर्बल भावना पर विजय पाने के लिए तब हमारे अन्तर्मन में एक विचार उठता है कि क्यों न हम अपने सत्कर्मों और सद्‌गुणों का प्रकाश फैलाकर सदा-सदा के लिए अमर हो जाएँ।

सेवक-प्रवृत्ति अपनाकर हम ऐसा अवश्य कर सकते हैं। अपने निःस्वार्थ व्यक्तित्व और परहित कर्मों के बल पर हम हमेशा के लिए मानवीय जीवन हेतु उत्प्रेरणा बन सकते हैं। अनुपम मनुष्य जीवन को सद्गति प्रदान करने के लिए यह विचार नया नहीं है। ऐसे विचार सज्जन मनुष्यों के अन्तर्मन में सदा उठते रहे हैं तथा इन्हें अपनाकर वे दुनिया में अमर भी हो गए। इस धरा पर स्थायी रूप में नहीं रहने पर भी ऐसे परहितकारी कालान्तर तक पूजे जाते रहेंगे। अमूल्य मनुष्य जीवन की सर्वश्रेष्ठ शिक्षा यही है। यही सीखकर मनुष्य का जीवन आनन्दमय और समृद्धिशाली हो सकता है। यदि इस प्रकार मानव जीवन उन्नत होता है, तो यह सम्पूर्ण संसार स्वर्गिक विस्तार ग्रहण कर लेगा। किसी भी मानव को आध्यात्मिकता का जो अन्तिम ज्ञान मिलेगा, वह भी यही शिक्षा देगा कि धर्म-कर्म का उद्देश्य सत्कर्मों और सद्‌गुणों की ज्योति फैलाना ही है।

Correct Answer: (d) स्वार्थी
Solution:'निःस्वार्थ' शब्द का उपयुक्त विपरीतार्थी शब्द 'स्वार्थी' है।

32. गद्यांश में प्रयुक्त 'आध्यात्मिकता' शब्द किन उपसर्ग-प्रत्ययों से बना है? [UP-TET Exam Ist Paper (I-V), 2019]

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मानव के मर्मस्थल में परोपकार और त्याग जैसे सद्‌गुणों की जागृति तभी हो पाती है, जब वह अपने तुच्छ भौतिक जीवन को नगण्य समझकर उत्साह-उमंग के साथ दूसरों की सेवा-सुश्रूषा तथा सत्कार करता है। यह कठोर सत्य है कि हम भौतिक रूप में इस संसार में सीमित अवधि तक ही रहेंगे। हमारी मृत्यु के बाद हमारे निकट सम्बन्धी, मित्र, बन्धु-बान्धव जीवन भर हमारे लिए शोकाकुल और प्रेमाकुल भी नहीं रहेंगे। दुःख मिश्रित इस निर्बल भावना पर विजय पाने के लिए तब हमारे अन्तर्मन में एक विचार उठता है कि क्यों न हम अपने सत्कर्मों और सद्‌गुणों का प्रकाश फैलाकर सदा-सदा के लिए अमर हो जाएँ।

सेवक-प्रवृत्ति अपनाकर हम ऐसा अवश्य कर सकते हैं। अपने निःस्वार्थ व्यक्तित्व और परहित कर्मों के बल पर हम हमेशा के लिए मानवीय जीवन हेतु उत्प्रेरणा बन सकते हैं। अनुपम मनुष्य जीवन को सद्गति प्रदान करने के लिए यह विचार नया नहीं है। ऐसे विचार सज्जन मनुष्यों के अन्तर्मन में सदा उठते रहे हैं तथा इन्हें अपनाकर वे दुनिया में अमर भी हो गए। इस धरा पर स्थायी रूप में नहीं रहने पर भी ऐसे परहितकारी कालान्तर तक पूजे जाते रहेंगे। अमूल्य मनुष्य जीवन की सर्वश्रेष्ठ शिक्षा यही है। यही सीखकर मनुष्य का जीवन आनन्दमय और समृद्धिशाली हो सकता है। यदि इस प्रकार मानव जीवन उन्नत होता है, तो यह सम्पूर्ण संसार स्वर्गिक विस्तार ग्रहण कर लेगा। किसी भी मानव को आध्यात्मिकता का जो अन्तिम ज्ञान मिलेगा, वह भी यही शिक्षा देगा कि धर्म-कर्म का उद्देश्य सत्कर्मों और सद्‌गुणों की ज्योति फैलाना ही है।

Correct Answer: (c) अधि, इक, ता
Solution:'आध्यात्मिकता' में 'अधि' तथा 'इक' उपसर्ग हैं, जबकि 'ता' प्रत्यय है।

33. ऐसे परोपकारी लोग सदा पूजे जाते रहेंगे, जो- [UP-TET Exam Ist Paper (I-V), 2019]

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मानव के मर्मस्थल में परोपकार और त्याग जैसे सद्‌गुणों की जागृति तभी हो पाती है, जब वह अपने तुच्छ भौतिक जीवन को नगण्य समझकर उत्साह-उमंग के साथ दूसरों की सेवा-सुश्रूषा तथा सत्कार करता है। यह कठोर सत्य है कि हम भौतिक रूप में इस संसार में सीमित अवधि तक ही रहेंगे। हमारी मृत्यु के बाद हमारे निकट सम्बन्धी, मित्र, बन्धु-बान्धव जीवन भर हमारे लिए शोकाकुल और प्रेमाकुल भी नहीं रहेंगे। दुःख मिश्रित इस निर्बल भावना पर विजय पाने के लिए तब हमारे अन्तर्मन में एक विचार उठता है कि क्यों न हम अपने सत्कर्मों और सद्‌गुणों का प्रकाश फैलाकर सदा-सदा के लिए अमर हो जाएँ।

सेवक-प्रवृत्ति अपनाकर हम ऐसा अवश्य कर सकते हैं। अपने निःस्वार्थ व्यक्तित्व और परहित कर्मों के बल पर हम हमेशा के लिए मानवीय जीवन हेतु उत्प्रेरणा बन सकते हैं। अनुपम मनुष्य जीवन को सद्गति प्रदान करने के लिए यह विचार नया नहीं है। ऐसे विचार सज्जन मनुष्यों के अन्तर्मन में सदा उठते रहे हैं तथा इन्हें अपनाकर वे दुनिया में अमर भी हो गए। इस धरा पर स्थायी रूप में नहीं रहने पर भी ऐसे परहितकारी कालान्तर तक पूजे जाते रहेंगे। अमूल्य मनुष्य जीवन की सर्वश्रेष्ठ शिक्षा यही है। यही सीखकर मनुष्य का जीवन आनन्दमय और समृद्धिशाली हो सकता है। यदि इस प्रकार मानव जीवन उन्नत होता है, तो यह सम्पूर्ण संसार स्वर्गिक विस्तार ग्रहण कर लेगा। किसी भी मानव को आध्यात्मिकता का जो अन्तिम ज्ञान मिलेगा, वह भी यही शिक्षा देगा कि धर्म-कर्म का उद्देश्य सत्कर्मों और सद्‌गुणों की ज्योति फैलाना ही है।

Correct Answer: (d) सेवक प्रवृत्ति अपनाकर परहित करते रहे।
Solution:ऐसे परोपकारी लोग सदा पूजे जाते रहेंगे, जो सेवक प्रवृत्ति अपनाकर परहित करते रहे।

34. 'कठोर सत्य' किसे कहा गया है? [UP- TET Exam Ist Paper (I-V), 2019]

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मानव के मर्मस्थल में परोपकार और त्याग जैसे सद्‌गुणों की जागृति तभी हो पाती है, जब वह अपने तुच्छ भौतिक जीवन को नगण्य समझकर उत्साह-उमंग के साथ दूसरों की सेवा-सुश्रूषा तथा सत्कार करता है। यह कठोर सत्य है कि हम भौतिक रूप में इस संसार में सीमित अवधि तक ही रहेंगे। हमारी मृत्यु के बाद हमारे निकट सम्बन्धी, मित्र, बन्धु-बान्धव जीवन भर हमारे लिए शोकाकुल और प्रेमाकुल भी नहीं रहेंगे। दुःख मिश्रित इस निर्बल भावना पर विजय पाने के लिए तब हमारे अन्तर्मन में एक विचार उठता है कि क्यों न हम अपने सत्कर्मों और सद्‌गुणों का प्रकाश फैलाकर सदा-सदा के लिए अमर हो जाएँ।

सेवक-प्रवृत्ति अपनाकर हम ऐसा अवश्य कर सकते हैं। अपने निःस्वार्थ व्यक्तित्व और परहित कर्मों के बल पर हम हमेशा के लिए मानवीय जीवन हेतु उत्प्रेरणा बन सकते हैं। अनुपम मनुष्य जीवन को सद्गति प्रदान करने के लिए यह विचार नया नहीं है। ऐसे विचार सज्जन मनुष्यों के अन्तर्मन में सदा उठते रहे हैं तथा इन्हें अपनाकर वे दुनिया में अमर भी हो गए। इस धरा पर स्थायी रूप में नहीं रहने पर भी ऐसे परहितकारी कालान्तर तक पूजे जाते रहेंगे। अमूल्य मनुष्य जीवन की सर्वश्रेष्ठ शिक्षा यही है। यही सीखकर मनुष्य का जीवन आनन्दमय और समृद्धिशाली हो सकता है। यदि इस प्रकार मानव जीवन उन्नत होता है, तो यह सम्पूर्ण संसार स्वर्गिक विस्तार ग्रहण कर लेगा। किसी भी मानव को आध्यात्मिकता का जो अन्तिम ज्ञान मिलेगा, वह भी यही शिक्षा देगा कि धर्म-कर्म का उद्देश्य सत्कर्मों और सद्‌गुणों की ज्योति फैलाना ही है।

Correct Answer: (a) भौतिक शरीर की नश्वरता
Solution:भौतिक शरीर की नश्वरता को 'कठोर सत्य' कहा गया है।

35. निर्बल भावनाओं पर विजय पाने के लिए क्या किए जाने की आवश्यकता बताई गई है? [UP-TET Exam Ist Paper (I-V), 2019]

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सेवक-प्रवृत्ति अपनाकर हम ऐसा अवश्य कर सकते हैं। अपने निःस्वार्थ व्यक्तित्व और परहित कर्मों के बल पर हम हमेशा के लिए मानवीय जीवन हेतु उत्प्रेरणा बन सकते हैं। अनुपम मनुष्य जीवन को सद्गति प्रदान करने के लिए यह विचार नया नहीं है। ऐसे विचार सज्जन मनुष्यों के अन्तर्मन में सदा उठते रहे हैं तथा इन्हें अपनाकर वे दुनिया में अमर भी हो गए। इस धरा पर स्थायी रूप में नहीं रहने पर भी ऐसे परहितकारी कालान्तर तक पूजे जाते रहेंगे। अमूल्य मनुष्य जीवन की सर्वश्रेष्ठ शिक्षा यही है। यही सीखकर मनुष्य का जीवन आनन्दमय और समृद्धिशाली हो सकता है। यदि इस प्रकार मानव जीवन उन्नत होता है, तो यह सम्पूर्ण संसार स्वर्गिक विस्तार ग्रहण कर लेगा। किसी भी मानव को आध्यात्मिकता का जो अन्तिम ज्ञान मिलेगा, वह भी यही शिक्षा देगा कि धर्म-कर्म का उद्देश्य सत्कर्मों और सद्‌गुणों की ज्योति फैलाना ही है।

Correct Answer: (d) अच्छे कर्मों से नाम अमर कर लेना
Solution:निर्बल भावनाओं पर विजय पाने के लिए अच्छे कर्मों से नाम अमर कर लेने की आवश्यकता बताई गई है।

36. हमारा जीवन सदा प्रेरणा बन सकता है, यदि हम- [UP-TET Exam Ist Paper (I-V), 2019]

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मानव के मर्मस्थल में परोपकार और त्याग जैसे सद्‌गुणों की जागृति तभी हो पाती है, जब वह अपने तुच्छ भौतिक जीवन को नगण्य समझकर उत्साह-उमंग के साथ दूसरों की सेवा-सुश्रूषा तथा सत्कार करता है। यह कठोर सत्य है कि हम भौतिक रूप में इस संसार में सीमित अवधि तक ही रहेंगे। हमारी मृत्यु के बाद हमारे निकट सम्बन्धी, मित्र, बन्धु-बान्धव जीवन भर हमारे लिए शोकाकुल और प्रेमाकुल भी नहीं रहेंगे। दुःख मिश्रित इस निर्बल भावना पर विजय पाने के लिए तब हमारे अन्तर्मन में एक विचार उठता है कि क्यों न हम अपने सत्कर्मों और सद्‌गुणों का प्रकाश फैलाकर सदा-सदा के लिए अमर हो जाएँ।

सेवक-प्रवृत्ति अपनाकर हम ऐसा अवश्य कर सकते हैं। अपने निःस्वार्थ व्यक्तित्व और परहित कर्मों के बल पर हम हमेशा के लिए मानवीय जीवन हेतु उत्प्रेरणा बन सकते हैं। अनुपम मनुष्य जीवन को सद्गति प्रदान करने के लिए यह विचार नया नहीं है। ऐसे विचार सज्जन मनुष्यों के अन्तर्मन में सदा उठते रहे हैं तथा इन्हें अपनाकर वे दुनिया में अमर भी हो गए। इस धरा पर स्थायी रूप में नहीं रहने पर भी ऐसे परहितकारी कालान्तर तक पूजे जाते रहेंगे। अमूल्य मनुष्य जीवन की सर्वश्रेष्ठ शिक्षा यही है। यही सीखकर मनुष्य का जीवन आनन्दमय और समृद्धिशाली हो सकता है। यदि इस प्रकार मानव जीवन उन्नत होता है, तो यह सम्पूर्ण संसार स्वर्गिक विस्तार ग्रहण कर लेगा। किसी भी मानव को आध्यात्मिकता का जो अन्तिम ज्ञान मिलेगा, वह भी यही शिक्षा देगा कि धर्म-कर्म का उद्देश्य सत्कर्मों और सद्‌गुणों की ज्योति फैलाना ही है।

Correct Answer: (d) निःस्वार्थ भाव से परोपकार करें।
Solution:हमारा जीवन सदा प्रेरणा बन सकता है, यदि हम निःस्वार्थ भाव से परोपकार करें।

37. धर्म के आचरण का उद्देश्य है- [UP- TET Exam Ist Paper (I-V), 2019]

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सेवक-प्रवृत्ति अपनाकर हम ऐसा अवश्य कर सकते हैं। अपने निःस्वार्थ व्यक्तित्व और परहित कर्मों के बल पर हम हमेशा के लिए मानवीय जीवन हेतु उत्प्रेरणा बन सकते हैं। अनुपम मनुष्य जीवन को सद्गति प्रदान करने के लिए यह विचार नया नहीं है। ऐसे विचार सज्जन मनुष्यों के अन्तर्मन में सदा उठते रहे हैं तथा इन्हें अपनाकर वे दुनिया में अमर भी हो गए। इस धरा पर स्थायी रूप में नहीं रहने पर भी ऐसे परहितकारी कालान्तर तक पूजे जाते रहेंगे। अमूल्य मनुष्य जीवन की सर्वश्रेष्ठ शिक्षा यही है। यही सीखकर मनुष्य का जीवन आनन्दमय और समृद्धिशाली हो सकता है। यदि इस प्रकार मानव जीवन उन्नत होता है, तो यह सम्पूर्ण संसार स्वर्गिक विस्तार ग्रहण कर लेगा। किसी भी मानव को आध्यात्मिकता का जो अन्तिम ज्ञान मिलेगा, वह भी यही शिक्षा देगा कि धर्म-कर्म का उद्देश्य सत्कर्मों और सद्‌गुणों की ज्योति फैलाना ही है।

Correct Answer: (b) अच्छे कर्मों और गुणों का प्रकाश फैलाना
Solution:धर्म के आचरण का उद्देश्य है-अच्छे कर्मों और गुणों का प्रकाश फैलाना।

38. अनुच्छेद में प्रयुक्त उपर्युक्त अशुद्ध वाक्य को चार भागों में बाँट दिया गया है, जिनमें एक भाग पहचानिए जिसमें अशुद्धि हो। [UP-TET Exam Ist Paper (I-V), 2019]

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सेवक-प्रवृत्ति अपनाकर हम ऐसा अवश्य कर सकते हैं। अपने निःस्वार्थ व्यक्तित्व और परहित कर्मों के बल पर हम हमेशा के लिए मानवीय जीवन हेतु उत्प्रेरणा बन सकते हैं। अनुपम मनुष्य जीवन को सद्गति प्रदान करने के लिए यह विचार नया नहीं है। ऐसे विचार सज्जन मनुष्यों के अन्तर्मन में सदा उठते रहे हैं तथा इन्हें अपनाकर वे दुनिया में अमर भी हो गए। इस धरा पर स्थायी रूप में नहीं रहने पर भी ऐसे परहितकारी कालान्तर तक पूजे जाते रहेंगे। अमूल्य मनुष्य जीवन की सर्वश्रेष्ठ शिक्षा यही है। यही सीखकर मनुष्य का जीवन आनन्दमय और समृद्धिशाली हो सकता है। यदि इस प्रकार मानव जीवन उन्नत होता है, तो यह सम्पूर्ण संसार स्वर्गिक विस्तार ग्रहण कर लेगा। किसी भी मानव को आध्यात्मिकता का जो अन्तिम ज्ञान मिलेगा, वह भी यही शिक्षा देगा कि धर्म-कर्म का उद्देश्य सत्कर्मों और सद्‌गुणों की ज्योति फैलाना ही है।

विचार                सज्जन मनुष्यों के

(क)                   (ख)

अर्न्तमन में        सदा उठते रहे हैं।"

(ग)                   (घ)

 

Correct Answer: (d) (ख)
Solution:भाग (ख) में त्रुटि है। इस भाग में 'मनुष्यों' का प्रयोग अनुचित है। मनुष्यों के स्थान पर 'लोगों' होना चाहिए।

39. शेष शब्दों से भिन्न शब्द पहचानिए- [UP-CTET Exam Ist Paper (I-V), 2019]

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मानव के मर्मस्थल में परोपकार और त्याग जैसे सद्‌गुणों की जागृति तभी हो पाती है, जब वह अपने तुच्छ भौतिक जीवन को नगण्य समझकर उत्साह-उमंग के साथ दूसरों की सेवा-सुश्रूषा तथा सत्कार करता है। यह कठोर सत्य है कि हम भौतिक रूप में इस संसार में सीमित अवधि तक ही रहेंगे। हमारी मृत्यु के बाद हमारे निकट सम्बन्धी, मित्र, बन्धु-बान्धव जीवन भर हमारे लिए शोकाकुल और प्रेमाकुल भी नहीं रहेंगे। दुःख मिश्रित इस निर्बल भावना पर विजय पाने के लिए तब हमारे अन्तर्मन में एक विचार उठता है कि क्यों न हम अपने सत्कर्मों और सद्‌गुणों का प्रकाश फैलाकर सदा-सदा के लिए अमर हो जाएँ।

सेवक-प्रवृत्ति अपनाकर हम ऐसा अवश्य कर सकते हैं। अपने निःस्वार्थ व्यक्तित्व और परहित कर्मों के बल पर हम हमेशा के लिए मानवीय जीवन हेतु उत्प्रेरणा बन सकते हैं। अनुपम मनुष्य जीवन को सद्गति प्रदान करने के लिए यह विचार नया नहीं है। ऐसे विचार सज्जन मनुष्यों के अन्तर्मन में सदा उठते रहे हैं तथा इन्हें अपनाकर वे दुनिया में अमर भी हो गए। इस धरा पर स्थायी रूप में नहीं रहने पर भी ऐसे परहितकारी कालान्तर तक पूजे जाते रहेंगे। अमूल्य मनुष्य जीवन की सर्वश्रेष्ठ शिक्षा यही है। यही सीखकर मनुष्य का जीवन आनन्दमय और समृद्धिशाली हो सकता है। यदि इस प्रकार मानव जीवन उन्नत होता है, तो यह सम्पूर्ण संसार स्वर्गिक विस्तार ग्रहण कर लेगा। किसी भी मानव को आध्यात्मिकता का जो अन्तिम ज्ञान मिलेगा, वह भी यही शिक्षा देगा कि धर्म-कर्म का उद्देश्य सत्कर्मों और सद्‌गुणों की ज्योति फैलाना ही है।

Correct Answer: (b) सत्यवादी
Solution:सत्यवादी शेष शब्दों से भिन्न है। इसमें 'वाद' तथा 'ई' दो प्रत्यय लगे हैं, जबकि सत्कर्म, सद्गुण तथा सद्गति में 'सत्' उपसर्ग लगा है।

40. निम्न में तत्सम शब्द है - [Rajasthan. TET Exam Ist Paper (I-V), 2012]

निर्देश :- निम्न अपठित गद्यांश को पढ़कर निम्नलिखित प्रश्नों (प्रश्न संख्या 1 से 7) में सबसे उचित विकल्प चुनिए :

कोई भी समाज शून्य में जीवित नहीं रह सकता। उसे अपने लोगों, अपने पशुओं, अपनी जमीन, अपने पेड़-पौधों, अपने कुएँ, अपने तालाबों, अपने खेतों के लिए कोई-न-कोई ऐसी व्यवस्था बनानी पड़ती है, जो समयसिद्ध और स्वयंसिद्ध हो। काल के किसी खण्ड विशेष में समाज के सभी सदस्यों के साथ मिल-जुलकर, पाल-पोसकर बड़ा करते हैं और मजबूत बनाते हैं। अपने ऊपर खुद लगाया हुआ यह अनुशासन एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी को सौंपा जाता है।

Correct Answer: (b) शून्य
Solution:'शून्य' तत्सम शब्द है, इसका तद्भव 'सूना' होता है।