अपठित गद्यांश (अवतरण)/पद्यांश (Part-6)

Total Questions: 41

1. हिन्दी साहित्य के इतिहास को कितने भागों में बाँटा गया है? [UPSSSC ग्राम विकास अधिकारी परीक्षा, 2018 (II)]

निर्देशः (प्रश्न 1-4): निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों का उत्तर लिखिए- हिन्दी साहित्य इतिहास को चार भागों में बाँटा गया है-

1. आदिकाल

3. रीतिकाल

2. भक्तिकाल

4. आधुनिक काल

भक्तिकाल के सन्त कवि सूरदास जी को कौन नहीं जानता ? भक्तिकाल के कृष्णोपासक 'सूरदासजी' ने सूरसागर, सूरसारावली, साहित्य लहरी आदि का अनमोल खजाना हिन्दी साहित्य को दिया है। उनके पदों में वात्सल्य, श्रृंगार एवं शान्त रस के भाव प्राप्त होते है हैं। उनके लिए कहा गया है कि 'सूर सूर तुलसी ससी उडगन केशवदास' वे अष्टछाप के सर्वश्रेष्ठ कवि हैं। उनके काव्य की विशेषता यह है, वे गेय पद हैं। उनकी अधिकतर रचना, व्रजभाषा में पायी जाती है, कहीं-कहीं पर संस्कृत व फारसी भाषा के शब्द भी पाये जाते हैं। उनकी रचनाओं में अनुप्रास, यमक, श्लेष, उपमा, उत्प्रेक्षा आदि सभी अलंकार पाये जाते हैं। वे जन्मान्ध थे, लेकिन उनके पदों में जो वर्णन पाया जाता है, वह सजीव है। ऐसा लगता ही नहीं है कि वे जन्मान्ध थे। उनकी मृत्यु 1580 ईस्वी में हुई थी। हिन्दी साहित्य जगत् में वे सदैव अमर है।

 

Correct Answer: (b) चार
Solution:हिन्दी साहित्य के इतिहास को 'चार भागों में बाँटा गया है-आदिकाल, भक्तिकाल, रीतिकाल और आधुनिक काल।

2. सूरदास जी कौन-से काल के सन्तकवि हैं? [UPSSSC ग्राम विकास अधिकारी परीक्षा, 2018 (II)]

निर्देशः (प्रश्न 1-4): निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों का उत्तर लिखिए- हिन्दी साहित्य इतिहास को चार भागों में बाँटा गया है-

1. आदिकाल

3. रीतिकाल

2. भक्तिकाल

4. आधुनिक काल

भक्तिकाल के सन्त कवि सूरदास जी को कौन नहीं जानता ? भक्तिकाल के कृष्णोपासक 'सूरदासजी' ने सूरसागर, सूरसारावली, साहित्य लहरी आदि का अनमोल खजाना हिन्दी साहित्य को दिया है। उनके पदों में वात्सल्य, श्रृंगार एवं शान्त रस के भाव प्राप्त होते है हैं। उनके लिए कहा गया है कि 'सूर सूर तुलसी ससी उडगन केशवदास' वे अष्टछाप के सर्वश्रेष्ठ कवि हैं। उनके काव्य की विशेषता यह है, वे गेय पद हैं। उनकी अधिकतर रचना, व्रजभाषा में पायी जाती है, कहीं-कहीं पर संस्कृत व फारसी भाषा के शब्द भी पाये जाते हैं। उनकी रचनाओं में अनुप्रास, यमक, श्लेष, उपमा, उत्प्रेक्षा आदि सभी अलंकार पाये जाते हैं। वे जन्मान्ध थे, लेकिन उनके पदों में जो वर्णन पाया जाता है, वह सजीव है। ऐसा लगता ही नहीं है कि वे जन्मान्ध थे। उनकी मृत्यु 1580 ईस्वी में हुई थी। हिन्दी साहित्य जगत् में वे सदैव अमर है।

 

Correct Answer: (a) भक्तिकाल
Solution:सन्त कवि सूरदास जी भक्तिकाल के कवि हैं।

3. निम्नलिखित रचनाओं में से कौन-सी रचना सूरदास जी की नहीं है? [UPSSSC ग्राम विकास अधिकारी परीक्षा, 2018 (II)]

निर्देशः (प्रश्न 1-4): निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों का उत्तर लिखिए- हिन्दी साहित्य इतिहास को चार भागों में बाँटा गया है-

1. आदिकाल

3. रीतिकाल

2. भक्तिकाल

4. आधुनिक काल

भक्तिकाल के सन्त कवि सूरदास जी को कौन नहीं जानता ? भक्तिकाल के कृष्णोपासक 'सूरदासजी' ने सूरसागर, सूरसारावली, साहित्य लहरी आदि का अनमोल खजाना हिन्दी साहित्य को दिया है। उनके पदों में वात्सल्य, श्रृंगार एवं शान्त रस के भाव प्राप्त होते है हैं। उनके लिए कहा गया है कि 'सूर सूर तुलसी ससी उडगन केशवदास' वे अष्टछाप के सर्वश्रेष्ठ कवि हैं। उनके काव्य की विशेषता यह है, वे गेय पद हैं। उनकी अधिकतर रचना, व्रजभाषा में पायी जाती है, कहीं-कहीं पर संस्कृत व फारसी भाषा के शब्द भी पाये जाते हैं। उनकी रचनाओं में अनुप्रास, यमक, श्लेष, उपमा, उत्प्रेक्षा आदि सभी अलंकार पाये जाते हैं। वे जन्मान्ध थे, लेकिन उनके पदों में जो वर्णन पाया जाता है, वह सजीव है। ऐसा लगता ही नहीं है कि वे जन्मान्ध थे। उनकी मृत्यु 1580 ईस्वी में हुई थी। हिन्दी साहित्य जगत् में वे सदैव अमर है।

 

Correct Answer: (a) रमैनी
Solution:रमैनी, सूरदास जी की नहीं, बल्कि कबीरदास जी की रचना है। सूरदास जी की रचनाएँ हैं- सूरसारावली, सूरसागर, साहित्य लहरी आदि।

4. सूरदास के पदों में कौन-सा रस नहीं पाया जाता? [UPSSSC ग्राम विकास अधिकारी परीक्षा, 2018 (II)]

निर्देशः (प्रश्न 1-4): निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों का उत्तर लिखिए- हिन्दी साहित्य इतिहास को चार भागों में बाँटा गया है-

1. आदिकाल

3. रीतिकाल

2. भक्तिकाल

4. आधुनिक काल

भक्तिकाल के सन्त कवि सूरदास जी को कौन नहीं जानता ? भक्तिकाल के कृष्णोपासक 'सूरदासजी' ने सूरसागर, सूरसारावली, साहित्य लहरी आदि का अनमोल खजाना हिन्दी साहित्य को दिया है। उनके पदों में वात्सल्य, श्रृंगार एवं शान्त रस के भाव प्राप्त होते है हैं। उनके लिए कहा गया है कि 'सूर सूर तुलसी ससी उडगन केशवदास' वे अष्टछाप के सर्वश्रेष्ठ कवि हैं। उनके काव्य की विशेषता यह है, वे गेय पद हैं। उनकी अधिकतर रचना, व्रजभाषा में पायी जाती है, कहीं-कहीं पर संस्कृत व फारसी भाषा के शब्द भी पाये जाते हैं। उनकी रचनाओं में अनुप्रास, यमक, श्लेष, उपमा, उत्प्रेक्षा आदि सभी अलंकार पाये जाते हैं। वे जन्मान्ध थे, लेकिन उनके पदों में जो वर्णन पाया जाता है, वह सजीव है। ऐसा लगता ही नहीं है कि वे जन्मान्ध थे। उनकी मृत्यु 1580 ईस्वी में हुई थी। हिन्दी साहित्य जगत् में वे सदैव अमर है।

 

Correct Answer: (d) भयानक रस
Solution:सूरदास जी के पदों में भयानक रस नहीं पाया जाता, जबकि श्रृंगार रस, वात्सल्य रस और शान्त रस पाए जाते हैं।

5. अनुशासन क्यों आवश्यक है? [UPSSSC विधानभवन रक्षक एवं वन रक्षक परीक्षा, 2016 (I)]

निर्देशः- गद्यांश को पढ़कर निम्नलिखित प्रश्नों (1-3) के उत्तर दीजिए।

अनुशासन जीवन की प्रत्येक स्थिति में आवश्यक है। अनुशासन सैनिक जीवन की आत्मा है। परिवार में स‌द्भाव बनाए रखने के लिए इसकी आवश्यकता पहले है। समाज और राष्ट्र में शान्ति और स‌द्भावपूर्ण सम्बन्ध बनाए रखने के लिए इसकी आवश्यकता भी है। ईश्वर की सृष्टि में यदि अनुशासन नहीं है, तो अराजकता फैल जाएगी और यह विश्व तुरन्त अस्त-व्यस्त हो जाएगा।

Correct Answer: (b) परिवार में सद्भाव और समाज तथा राष्ट्र में शान्ति और स‌द्भावपूर्ण सम्बन्ध बनाए रखने के लिए
Solution:गद्यांश के द्वितीय से चतुर्थ पंक्ति में स्पष्ट उल्लेख है कि परिवार में सद्भाव और समाज तथा राष्ट्र में शान्ति और स‌द्भावपूर्ण सम्बन्ध बनाए रखने के लिए अनुशासन आवश्यक है।

6. अनुशासन किसकी आत्मा है? [UPSSSC विधानभवन रक्षक एवं वन रक्षक परीक्षा, 2016 (I)]

निर्देशः- गद्यांश को पढ़कर निम्नलिखित प्रश्नों (1-3) के उत्तर दीजिए।

अनुशासन जीवन की प्रत्येक स्थिति में आवश्यक है। अनुशासन सैनिक जीवन की आत्मा है। परिवार में स‌द्भाव बनाए रखने के लिए इसकी आवश्यकता पहले है। समाज और राष्ट्र में शान्ति और स‌द्भावपूर्ण सम्बन्ध बनाए रखने के लिए इसकी आवश्यकता भी है। ईश्वर की सृष्टि में यदि अनुशासन नहीं है, तो अराजकता फैल जाएगी और यह विश्व तुरन्त अस्त-व्यस्त हो जाएगा।

Correct Answer: (a) सैनिक जीवन की
Solution:गद्यांश के प्रथम से द्वितीय पंक्ति से स्पष्ट है कि अनुशासन सैनिक जीवन की आत्मा है।

7. विश्व के अस्त-व्यस्त होने का कारण है- [UPSSSC विधानभवन रक्षक एवं वन रक्षक परीक्षा, 2016 (I)]

निर्देशः- गद्यांश को पढ़कर निम्नलिखित प्रश्नों (1-3) के उत्तर दीजिए।

अनुशासन जीवन की प्रत्येक स्थिति में आवश्यक है। अनुशासन सैनिक जीवन की आत्मा है। परिवार में स‌द्भाव बनाए रखने के लिए इसकी आवश्यकता पहले है। समाज और राष्ट्र में शान्ति और स‌द्भावपूर्ण सम्बन्ध बनाए रखने के लिए इसकी आवश्यकता भी है। ईश्वर की सृष्टि में यदि अनुशासन नहीं है, तो अराजकता फैल जाएगी और यह विश्व तुरन्त अस्त-व्यस्त हो जाएगा।

Correct Answer: (b) अनुशासन न होना
Solution:गद्यांश की अन्तिम पंक्ति से स्पष्ट है कि विश्व के अस्त-व्यस्त होने का कारण अनुशासन न होना है।

8. मानव शरीर के तापमान के सन्दर्भ में सही कथन चुनिए- [UPSSSC नलकूप चालक परीक्षा, 2016]

निर्देशः- गद्यांश को पढ़कर निम्नलिखित प्रश्नों (1-5) के उत्तर दीजिए।

मापना सभ्य इन्सान की पुरानी फितरत का हिस्सा रहा है। दुनिया भर के सभ्य समाजों ने अपने-अपने ढंग से समय को, दूरी को, गति को, आकार को, क्षेत्रफल को नापने के पैमाने विकसित किए हैं। फिर एक ऐसा दौर आया, जब हर चीज को ही नापा जाने लगा-सर्दी को, गर्मी को, सुख को, दुःख को, अर्थव्यवस्था को, महँगाई को और यहाँ तक कि अक्ल को भी। इसी के साथ डेढ़ सौ साल पहले एक और पैमाना विकसित हुआ, इन्सान के बुखार को मापने का। कार्ल वण्डरलिच ने शरीर के इस तापमान को समझने के लिए लम्बा शोध किया और वह इस नतीजे पर पहुँचे कि 98.6 डिग्री फॉरेनहाइट शरीर का सामान्य तापमान है, शरीर का तापमान अगर इससे ज्यादा हो, तो इसका अर्थ है बुखार। यही तापमान चिकित्सा व्यवसाय का मानक बन गया। 98.6 का आँकड़ा जल्द ही एक मुहावरा बनकर समाज और संस्कृति के कई क्षेत्रों में इस्तेमाल होने लगा। इसी नाम से एक गीत बना, एक उपन्यास लिखा गया, एक सर्वाइवल गाइड आई और दुनिया के कई देशों में एफएम चैनल खुले। पर अब 98.6 के इस आँकड़े पर ही सवाल खड़े होने लगे हैं। बोस्टन चिल्ड्रन हॉस्पिटल के जोनाथन हुसनैन ने पिछले दिनों इस पर लंबा शोध किया, तो वह इस नतीजे पर पहुँचे कि मानव शरीर के सामान्य तापमान के लिए 98.6 का आँकड़ा मूल रूप से गलत है। उन्होंने पाया कि हमारे शरीर का तापमान सुबह के वक्त थोड़ा कम होता है और शाम तक थोड़ा-सा बढ़ जाता है। इसके अलावा पुरुषों के मुकाबले महिलाओं के शरीर का तापमान मामूली-सा ज्यादा होता है। बड़ों के मुकाबले बच्चों का थोड़ा-सा ज्यादा होता है। फिर अलग-अलग तरह के लोगों के शरीर का सामान्य तापमान अलग-अलग होता है, यानी पूरे मानव समुदाय के लिए 98.6 डिग्री फॉरेनहाइट का मानक सही नहीं है। वह इस नतीजे पर पहुँचे कि  शरीर का सामान्य तापमान और बुखार, दोनों ही जटिल चीजें हैं, एक आँकड़े के सरलीकरण से इसे नहीं समझा जा सकता। सच तो यह है कि सटीक पैमाने सिर्फ भौतिक चीजों और प्रक्रियाओं के ही बनते हैं। सामाजिक और शारीरिक प्रक्रियाओं के पैमाने सिर्फ सांकेतिक होते हैं, इनसे उनके उतार-चढ़ाव की थाह भर पाई जा सकती है। दिक्कत तो तब आती है, जब हम इसे जड़ मानक मान लेते हैं।

Correct Answer: (a) बड़ों के मुकाबले बच्चों का थोड़ा-सा ज्यादा होता है।
Solution:मानव शरीर के तापमान के सन्दर्भ में सही कथन है-बड़ों के मुकाबले बच्चों का थोड़ा-सा ज्यादा होता है।

9. सभ्य इन्सान की पुरानी फितरत का हिस्सा रहा है? [UPSSSC नलकूप चालक परीक्षा, 2016]

निर्देशः- गद्यांश को पढ़कर निम्नलिखित प्रश्नों (1-5) के उत्तर दीजिए।

मापना सभ्य इन्सान की पुरानी फितरत का हिस्सा रहा है। दुनिया भर के सभ्य समाजों ने अपने-अपने ढंग से समय को, दूरी को, गति को, आकार को, क्षेत्रफल को नापने के पैमाने विकसित किए हैं। फिर एक ऐसा दौर आया, जब हर चीज को ही नापा जाने लगा-सर्दी को, गर्मी को, सुख को, दुःख को, अर्थव्यवस्था को, महँगाई को और यहाँ तक कि अक्ल को भी। इसी के साथ डेढ़ सौ साल पहले एक और पैमाना विकसित हुआ, इन्सान के बुखार को मापने का। कार्ल वण्डरलिच ने शरीर के इस तापमान को समझने के लिए लम्बा शोध किया और वह इस नतीजे पर पहुँचे कि 98.6 डिग्री फॉरेनहाइट शरीर का सामान्य तापमान है, शरीर का तापमान अगर इससे ज्यादा हो, तो इसका अर्थ है बुखार। यही तापमान चिकित्सा व्यवसाय का मानक बन गया। 98.6 का आँकड़ा जल्द ही एक मुहावरा बनकर समाज और संस्कृति के कई क्षेत्रों में इस्तेमाल होने लगा। इसी नाम से एक गीत बना, एक उपन्यास लिखा गया, एक सर्वाइवल गाइड आई और दुनिया के कई देशों में एफएम चैनल खुले। पर अब 98.6 के इस आँकड़े पर ही सवाल खड़े होने लगे हैं। बोस्टन चिल्ड्रन हॉस्पिटल के जोनाथन हुसनैन ने पिछले दिनों इस पर लंबा शोध किया, तो वह इस नतीजे पर पहुँचे कि मानव शरीर के सामान्य तापमान के लिए 98.6 का आँकड़ा मूल रूप से गलत है। उन्होंने पाया कि हमारे शरीर का तापमान सुबह के वक्त थोड़ा कम होता है और शाम तक थोड़ा-सा बढ़ जाता है। इसके अलावा पुरुषों के मुकाबले महिलाओं के शरीर का तापमान मामूली-सा ज्यादा होता है। बड़ों के मुकाबले बच्चों का थोड़ा-सा ज्यादा होता है। फिर अलग-अलग तरह के लोगों के शरीर का सामान्य तापमान अलग-अलग होता है, यानी पूरे मानव समुदाय के लिए 98.6 डिग्री फॉरेनहाइट का मानक सही नहीं है। वह इस नतीजे पर पहुँचे कि  शरीर का सामान्य तापमान और बुखार, दोनों ही जटिल चीजें हैं, एक आँकड़े के सरलीकरण से इसे नहीं समझा जा सकता। सच तो यह है कि सटीक पैमाने सिर्फ भौतिक चीजों और प्रक्रियाओं के ही बनते हैं। सामाजिक और शारीरिक प्रक्रियाओं के पैमाने सिर्फ सांकेतिक होते हैं, इनसे उनके उतार-चढ़ाव की थाह भर पाई जा सकती है। दिक्कत तो तब आती है, जब हम इसे जड़ मानक मान लेते हैं।

Correct Answer: (d) मापना
Solution:गद्यांश की प्रथम पंक्ति से स्पष्ट होता है कि मापना सभ्य इन्सान की पुरानी फितरत का हिस्सा रहा है।

10. सामाजिक और शारीरिक प्रक्रियाओं के पैमाने से दिक्कत कब आती है? [UPSSSC नलकूप चालक परीक्षा, 2016]

निर्देशः- गद्यांश को पढ़कर निम्नलिखित प्रश्नों (1-5) के उत्तर दीजिए।

मापना सभ्य इन्सान की पुरानी फितरत का हिस्सा रहा है। दुनिया भर के सभ्य समाजों ने अपने-अपने ढंग से समय को, दूरी को, गति को, आकार को, क्षेत्रफल को नापने के पैमाने विकसित किए हैं। फिर एक ऐसा दौर आया, जब हर चीज को ही नापा जाने लगा-सर्दी को, गर्मी को, सुख को, दुःख को, अर्थव्यवस्था को, महँगाई को और यहाँ तक कि अक्ल को भी। इसी के साथ डेढ़ सौ साल पहले एक और पैमाना विकसित हुआ, इन्सान के बुखार को मापने का। कार्ल वण्डरलिच ने शरीर के इस तापमान को समझने के लिए लम्बा शोध किया और वह इस नतीजे पर पहुँचे कि 98.6 डिग्री फॉरेनहाइट शरीर का सामान्य तापमान है, शरीर का तापमान अगर इससे ज्यादा हो, तो इसका अर्थ है बुखार। यही तापमान चिकित्सा व्यवसाय का मानक बन गया। 98.6 का आँकड़ा जल्द ही एक मुहावरा बनकर समाज और संस्कृति के कई क्षेत्रों में इस्तेमाल होने लगा। इसी नाम से एक गीत बना, एक उपन्यास लिखा गया, एक सर्वाइवल गाइड आई और दुनिया के कई देशों में एफएम चैनल खुले। पर अब 98.6 के इस आँकड़े पर ही सवाल खड़े होने लगे हैं। बोस्टन चिल्ड्रन हॉस्पिटल के जोनाथन हुसनैन ने पिछले दिनों इस पर लंबा शोध किया, तो वह इस नतीजे पर पहुँचे कि मानव शरीर के सामान्य तापमान के लिए 98.6 का आँकड़ा मूल रूप से गलत है। उन्होंने पाया कि हमारे शरीर का तापमान सुबह के वक्त थोड़ा कम होता है और शाम तक थोड़ा-सा बढ़ जाता है। इसके अलावा पुरुषों के मुकाबले महिलाओं के शरीर का तापमान मामूली-सा ज्यादा होता है। बड़ों के मुकाबले बच्चों का थोड़ा-सा ज्यादा होता है। फिर अलग-अलग तरह के लोगों के शरीर का सामान्य तापमान अलग-अलग होता है, यानी पूरे मानव समुदाय के लिए 98.6 डिग्री फॉरेनहाइट का मानक सही नहीं है। वह इस नतीजे पर पहुँचे कि  शरीर का सामान्य तापमान और बुखार, दोनों ही जटिल चीजें हैं, एक आँकड़े के सरलीकरण से इसे नहीं समझा जा सकता। सच तो यह है कि सटीक पैमाने सिर्फ भौतिक चीजों और प्रक्रियाओं के ही बनते हैं। सामाजिक और शारीरिक प्रक्रियाओं के पैमाने सिर्फ सांकेतिक होते हैं, इनसे उनके उतार-चढ़ाव की थाह भर पाई जा सकती है। दिक्कत तो तब आती है, जब हम इसे जड़ मानक मान लेते हैं।

Correct Answer: (b) जब हम इसे जड़ मानक मान लेते हैं।
Solution:गद्यांश कि अन्तिम पंक्तियों से स्पष्ट होता है कि सामाजिक और शारीरिक प्रक्रियाओं के पैमाने से दिक्कत तब आती है, जब हम इसे जड़ मानक मान लेते हैं।