अपठित गद्यांश (अवतरण)/पद्यांश (Part-6)

Total Questions: 41

11. जोनाथन हुसनैन ने हाल ही में क्या किया ? [UPSSSC नलकूप चालक परीक्षा, 2016]

निर्देशः- गद्यांश को पढ़कर निम्नलिखित प्रश्नों (1-5) के उत्तर दीजिए।

मापना सभ्य इन्सान की पुरानी फितरत का हिस्सा रहा है। दुनिया भर के सभ्य समाजों ने अपने-अपने ढंग से समय को, दूरी को, गति को, आकार को, क्षेत्रफल को नापने के पैमाने विकसित किए हैं। फिर एक ऐसा दौर आया, जब हर चीज को ही नापा जाने लगा-सर्दी को, गर्मी को, सुख को, दुःख को, अर्थव्यवस्था को, महँगाई को और यहाँ तक कि अक्ल को भी। इसी के साथ डेढ़ सौ साल पहले एक और पैमाना विकसित हुआ, इन्सान के बुखार को मापने का। कार्ल वण्डरलिच ने शरीर के इस तापमान को समझने के लिए लम्बा शोध किया और वह इस नतीजे पर पहुँचे कि 98.6 डिग्री फॉरेनहाइट शरीर का सामान्य तापमान है, शरीर का तापमान अगर इससे ज्यादा हो, तो इसका अर्थ है बुखार। यही तापमान चिकित्सा व्यवसाय का मानक बन गया। 98.6 का आँकड़ा जल्द ही एक मुहावरा बनकर समाज और संस्कृति के कई क्षेत्रों में इस्तेमाल होने लगा। इसी नाम से एक गीत बना, एक उपन्यास लिखा गया, एक सर्वाइवल गाइड आई और दुनिया के कई देशों में एफएम चैनल खुले। पर अब 98.6 के इस आँकड़े पर ही सवाल खड़े होने लगे हैं। बोस्टन चिल्ड्रन हॉस्पिटल के जोनाथन हुसनैन ने पिछले दिनों इस पर लंबा शोध किया, तो वह इस नतीजे पर पहुँचे कि मानव शरीर के सामान्य तापमान के लिए 98.6 का आँकड़ा मूल रूप से गलत है। उन्होंने पाया कि हमारे शरीर का तापमान सुबह के वक्त थोड़ा कम होता है और शाम तक थोड़ा-सा बढ़ जाता है। इसके अलावा पुरुषों के मुकाबले महिलाओं के शरीर का तापमान मामूली-सा ज्यादा होता है। बड़ों के मुकाबले बच्चों का थोड़ा-सा ज्यादा होता है। फिर अलग-अलग तरह के लोगों के शरीर का सामान्य तापमान अलग-अलग होता है, यानी पूरे मानव समुदाय के लिए 98.6 डिग्री फॉरेनहाइट का मानक सही नहीं है। वह इस नतीजे पर पहुँचे कि  शरीर का सामान्य तापमान और बुखार, दोनों ही जटिल चीजें हैं, एक आँकड़े के सरलीकरण से इसे नहीं समझा जा सकता। सच तो यह है कि सटीक पैमाने सिर्फ भौतिक चीजों और प्रक्रियाओं के ही बनते हैं। सामाजिक और शारीरिक प्रक्रियाओं के पैमाने सिर्फ सांकेतिक होते हैं, इनसे उनके उतार-चढ़ाव की थाह भर पाई जा सकती है। दिक्कत तो तब आती है, जब हम इसे जड़ मानक मान लेते हैं।

Correct Answer: (c) लम्बा शोध किया
Solution:जोनाथन हुसनैन ने हाल ही में एक लम्बा शोध किया।

12. 98.6 के सन्दर्भ में असत्य कथन है- [UPSSSC नलकूप चालक परीक्षा, 2016]

निर्देशः- गद्यांश को पढ़कर निम्नलिखित प्रश्नों (1-5) के उत्तर दीजिए।

मापना सभ्य इन्सान की पुरानी फितरत का हिस्सा रहा है। दुनिया भर के सभ्य समाजों ने अपने-अपने ढंग से समय को, दूरी को, गति को, आकार को, क्षेत्रफल को नापने के पैमाने विकसित किए हैं। फिर एक ऐसा दौर आया, जब हर चीज को ही नापा जाने लगा-सर्दी को, गर्मी को, सुख को, दुःख को, अर्थव्यवस्था को, महँगाई को और यहाँ तक कि अक्ल को भी। इसी के साथ डेढ़ सौ साल पहले एक और पैमाना विकसित हुआ, इन्सान के बुखार को मापने का। कार्ल वण्डरलिच ने शरीर के इस तापमान को समझने के लिए लम्बा शोध किया और वह इस नतीजे पर पहुँचे कि 98.6 डिग्री फॉरेनहाइट शरीर का सामान्य तापमान है, शरीर का तापमान अगर इससे ज्यादा हो, तो इसका अर्थ है बुखार। यही तापमान चिकित्सा व्यवसाय का मानक बन गया। 98.6 का आँकड़ा जल्द ही एक मुहावरा बनकर समाज और संस्कृति के कई क्षेत्रों में इस्तेमाल होने लगा। इसी नाम से एक गीत बना, एक उपन्यास लिखा गया, एक सर्वाइवल गाइड आई और दुनिया के कई देशों में एफएम चैनल खुले। पर अब 98.6 के इस आँकड़े पर ही सवाल खड़े होने लगे हैं। बोस्टन चिल्ड्रन हॉस्पिटल के जोनाथन हुसनैन ने पिछले दिनों इस पर लंबा शोध किया, तो वह इस नतीजे पर पहुँचे कि मानव शरीर के सामान्य तापमान के लिए 98.6 का आँकड़ा मूल रूप से गलत है। उन्होंने पाया कि हमारे शरीर का तापमान सुबह के वक्त थोड़ा कम होता है और शाम तक थोड़ा-सा बढ़ जाता है। इसके अलावा पुरुषों के मुकाबले महिलाओं के शरीर का तापमान मामूली-सा ज्यादा होता है। बड़ों के मुकाबले बच्चों का थोड़ा-सा ज्यादा होता है। फिर अलग-अलग तरह के लोगों के शरीर का सामान्य तापमान अलग-अलग होता है, यानी पूरे मानव समुदाय के लिए 98.6 डिग्री फॉरेनहाइट का मानक सही नहीं है। वह इस नतीजे पर पहुँचे कि  शरीर का सामान्य तापमान और बुखार, दोनों ही जटिल चीजें हैं, एक आँकड़े के सरलीकरण से इसे नहीं समझा जा सकता। सच तो यह है कि सटीक पैमाने सिर्फ भौतिक चीजों और प्रक्रियाओं के ही बनते हैं। सामाजिक और शारीरिक प्रक्रियाओं के पैमाने सिर्फ सांकेतिक होते हैं, इनसे उनके उतार-चढ़ाव की थाह भर पाई जा सकती है। दिक्कत तो तब आती है, जब हम इसे जड़ मानक मान लेते हैं।

Correct Answer: (c) इसी नाम से एक कहानी लिखी गई।
Solution:98.6 नाम से एक कहानी नहीं, बल्कि एक उपन्यास लिखा गया।

13. हम भारतीय जिधर भी अपने कदम बढ़ाते हैं, वहाँ- [UP-TET Exam Ist Paper (I-V), 2019]

निर्देश :- निम्नलिखित अपठित काव्यांश (पद्यांश) को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों (प्रश्न 1 से 6 तक) के सबसे उपयुक्त उत्तर वाले विकल्प चुनिए-

विविध प्रान्त हैं अपनी-अपनी भाषा के अभिमानी हम, पर इन सबसे पहले दुनिया वालों हिन्दुस्तानी हम। रहन-सहन में, खान-पान में, भिन्न भले ही हों कितने, इस मिट्टी को देते आए, मिल-जुलकर कुरबानी हम। सदियों से कुचले लाखों तूफान हमने पद तल से, आज झुके कुछ टकराकर तो कल लगते फिर जागे से। अण्डमान से कश्मीर भले ही दूर दिखाई दे कितना, पर हर प्रान्त जुड़ा है अपना अगणित कोमल धागों से। जिस ओर बढ़ाए पग हमने, हो गई उधर भू-नव-मंगल। आजाद वतन के बाशिन्दे, हर चरण हमारा है बादल

Correct Answer: (b) शुभ कार्य होते हैं।
Solution:काव्यांश के आधार पर हम भारतीय जिधर भी अपने कदम बढ़ाते हैं, वहाँ शुभ कार्य होते हैं।

14. 'पैर' शब्द का समानार्थी नहीं है? [UP-TET Exam Ist Paper (I-V), 2019]

निर्देश :- निम्नलिखित अपठित काव्यांश (पद्यांश) को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों (प्रश्न 1 से 6 तक) के सबसे उपयुक्त उत्तर वाले विकल्प चुनिए-

विविध प्रान्त हैं अपनी-अपनी भाषा के अभिमानी हम, पर इन सबसे पहले दुनिया वालों हिन्दुस्तानी हम। रहन-सहन में, खान-पान में, भिन्न भले ही हों कितने, इस मिट्टी को देते आए, मिल-जुलकर कुरबानी हम। सदियों से कुचले लाखों तूफान हमने पद तल से, आज झुके कुछ टकराकर तो कल लगते फिर जागे से। अण्डमान से कश्मीर भले ही दूर दिखाई दे कितना, पर हर प्रान्त जुड़ा है अपना अगणित कोमल धागों से। जिस ओर बढ़ाए पग हमने, हो गई उधर भू-नव-मंगल। आजाद वतन के बाशिन्दे, हर चरण हमारा है बादल

Correct Answer: (c) नव
Solution:'पैर' के समानार्थी शब्द पद, चरण तथा पग हैं, जबकि नव, नया का समानार्थी है।

15. कविता के अनुसार, विविधताओं के बीच भी हम एक हैं, क्योंकि सबसे पहले हम- [UP- TET Exam Ist Paper (I-V), 2019]

निर्देश :- निम्नलिखित अपठित काव्यांश (पद्यांश) को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों (प्रश्न 1 से 6 तक) के सबसे उपयुक्त उत्तर वाले विकल्प चुनिए-

विविध प्रान्त हैं अपनी-अपनी भाषा के अभिमानी हम, पर इन सबसे पहले दुनिया वालों हिन्दुस्तानी हम। रहन-सहन में, खान-पान में, भिन्न भले ही हों कितने, इस मिट्टी को देते आए, मिल-जुलकर कुरबानी हम। सदियों से कुचले लाखों तूफान हमने पद तल से, आज झुके कुछ टकराकर तो कल लगते फिर जागे से। अण्डमान से कश्मीर भले ही दूर दिखाई दे कितना, पर हर प्रान्त जुड़ा है अपना अगणित कोमल धागों से। जिस ओर बढ़ाए पग हमने, हो गई उधर भू-नव-मंगल। आजाद वतन के बाशिन्दे, हर चरण हमारा है बादल

Correct Answer: (d) भारतीय हैं।
Solution:कविता के अनुसार, विविधताओं के बीच भी हम एक हैं, क्योंकि सबसे पहले हम भारतीय हैं।

16. समास की दृष्टि से शेष से भिन्न पद है- [UP-TET Exam Ist Paper (I-V), 2019]

निर्देश :- निम्नलिखित अपठित काव्यांश (पद्यांश) को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों (प्रश्न 1 से 6 तक) के सबसे उपयुक्त उत्तर वाले विकल्प चुनिए-

विविध प्रान्त हैं अपनी-अपनी भाषा के अभिमानी हम, पर इन सबसे पहले दुनिया वालों हिन्दुस्तानी हम। रहन-सहन में, खान-पान में, भिन्न भले ही हों कितने, इस मिट्टी को देते आए, मिल-जुलकर कुरबानी हम। सदियों से कुचले लाखों तूफान हमने पद तल से, आज झुके कुछ टकराकर तो कल लगते फिर जागे से। अण्डमान से कश्मीर भले ही दूर दिखाई दे कितना, पर हर प्रान्त जुड़ा है अपना अगणित कोमल धागों से। जिस ओर बढ़ाए पग हमने, हो गई उधर भू-नव-मंगल। आजाद वतन के बाशिन्दे, हर चरण हमारा है बादल

Correct Answer: (c) अपनी-अपनी
Solution:अपनी-अपनी, समास की दृष्टि से भिन्न पद है, जबकि खान-पान, मिलना-जुलना तथा रहन-सहन में द्वन्द्व समास है।

17. "सदियों से कुचले लाखों तूफान हमने पद तल से" कथन में 'तूफान' का भाव है- [UP-TET Exam Ist Paper (I-V), 2019]

निर्देश :- निम्नलिखित अपठित काव्यांश (पद्यांश) को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों (प्रश्न 1 से 6 तक) के सबसे उपयुक्त उत्तर वाले विकल्प चुनिए-

विविध प्रान्त हैं अपनी-अपनी भाषा के अभिमानी हम, पर इन सबसे पहले दुनिया वालों हिन्दुस्तानी हम। रहन-सहन में, खान-पान में, भिन्न भले ही हों कितने, इस मिट्टी को देते आए, मिल-जुलकर कुरबानी हम। सदियों से कुचले लाखों तूफान हमने पद तल से, आज झुके कुछ टकराकर तो कल लगते फिर जागे से। अण्डमान से कश्मीर भले ही दूर दिखाई दे कितना, पर हर प्रान्त जुड़ा है अपना अगणित कोमल धागों से। जिस ओर बढ़ाए पग हमने, हो गई उधर भू-नव-मंगल। आजाद वतन के बाशिन्दे, हर चरण हमारा है बादल

Correct Answer: (d) कठिनाइयाँ
Solution:"सदियों से कुचले लाखों तूफान हमने पद तल से" कथन में 'तूफान' का भाव कठिनाइयाँ है।

18. 'अण्डमान से कश्मीर' है, भारत में- [UP-TET Exam Ist Paper (I-V), 2019]

निर्देश :- निम्नलिखित अपठित काव्यांश (पद्यांश) को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों (प्रश्न 1 से 6 तक) के सबसे उपयुक्त उत्तर वाले विकल्प चुनिए-

विविध प्रान्त हैं अपनी-अपनी भाषा के अभिमानी हम, पर इन सबसे पहले दुनिया वालों हिन्दुस्तानी हम। रहन-सहन में, खान-पान में, भिन्न भले ही हों कितने, इस मिट्टी को देते आए, मिल-जुलकर कुरबानी हम। सदियों से कुचले लाखों तूफान हमने पद तल से, आज झुके कुछ टकराकर तो कल लगते फिर जागे से। अण्डमान से कश्मीर भले ही दूर दिखाई दे कितना, पर हर प्रान्त जुड़ा है अपना अगणित कोमल धागों से। जिस ओर बढ़ाए पग हमने, हो गई उधर भू-नव-मंगल। आजाद वतन के बाशिन्दे, हर चरण हमारा है बादल

Correct Answer: (d) दूरस्थ राज्य
Solution:'अण्डमान से कश्मीर' है, भारत में दूरस्थ राज्य।

19. मनुष्य गाँधी आदि महापुरुषों को वाचिक सम्मान दे रहा है, अर्थात्................ | [UPSSSC आबकारी सिपाही (द्वितीय पाली) परीक्षा, 2016]

निर्देशः- काव्यांश को पढ़कर निम्नलिखित प्रश्नों (1-5) के उत्तर दीजिए-

धर्म का दीपक, दया का दीप, कब जलेगा, कब जलेगा विश्व में भगवान् ?

कब सुकोमल ज्योति से अभिसिक्त, हो सरस होंगे, जली-सूखी रसा के प्राण।

है बहुत बरसी धरित्री पर अमृत की धार, पर नहीं अब तक सुशीतल हो सका संसार ।

भोग-लिप्सा आज भी लहरा रही उद्दाम बुद्ध हों कि अशोक, गाँधी हों कि ईसु महान्।

सिर झुका सबको, सभी को श्रेष्ठ निज से मान, मात्र वाचिक ही उन्हें देता हुआ सम्मान।

दग्ध कर पर को, स्वयं भी भोगता दुःख-दाह, जा रहा मानव चला अब भी पुरानी राह।

 

Correct Answer: (c) उनके सम्मान का दिखावा करता है।
Solution:मनुष्य गाँधी आदि महापुरुषों को वाचिक सम्मान दे रहा है, अर्थात् उनके सम्मान का दिखावा करता है।

20. अमृत रूपी शांति की धार बरसने पर भी संसार में क्या व्याप्त है? [UPSSSC आबकारी सिपाही (द्वितीय पाली) परीक्षा, 2016]

निर्देशः- काव्यांश को पढ़कर निम्नलिखित प्रश्नों (1-5) के उत्तर दीजिए-

धर्म का दीपक, दया का दीप, कब जलेगा, कब जलेगा विश्व में भगवान् ?

कब सुकोमल ज्योति से अभिसिक्त, हो सरस होंगे, जली-सूखी रसा के प्राण।

है बहुत बरसी धरित्री पर अमृत की धार, पर नहीं अब तक सुशीतल हो सका संसार ।

भोग-लिप्सा आज भी लहरा रही उद्दाम बुद्ध हों कि अशोक, गाँधी हों कि ईसु महान्।

सिर झुका सबको, सभी को श्रेष्ठ निज से मान, मात्र वाचिक ही उन्हें देता हुआ सम्मान।

दग्ध कर पर को, स्वयं भी भोगता दुःख-दाह, जा रहा मानव चला अब भी पुरानी राह।

 

Correct Answer: (c) अज्ञान, दुःख व अराजकता
Solution:अमृत रूपी शान्ति की धार बरसने पर भी संसार में अज्ञान, दुःख व अराजकता व्याप्त है।