निर्देशः- काव्यांश को पढ़कर निम्नलिखित प्रश्नों (1-4) के उत्तर दीजिए।
ओह, समय पर उसमें कितनी फलियाँ फूटी !
कितनी सारी फलियाँ, कितनी प्यारी फलियाँ,
यह, धरती कितना देती है! धरती माता
कितना देती है अपने प्यारे पुत्रों को !
न समझ पाया था मैं उसके महत्त्व को,
बचपन में निःस्वार्थ लोभ वश पैसे बोकर !
रत्न प्रसविनी है वसुधा, अब समझ सका हूँ!
इसमें सच्ची समता के दाने बोने हैं,
इसमें जन की क्षमता के दाने बोने हैं,
जिससे उगल सके फिर धूल सुनहली फसलें
मानवता की जीवन श्रम से हँसें दिशाएँ।
हम जैसा बोएँगे वैसा ही पाएँगे।