अपठित गद्यांश (अवतरण)/पद्यांश

अपठित गद्यांश/अवतरण

Total Questions: 51

11. सत्पुरुष का विलोम शब्द क्या है? [रेडियो ऑपरेटर (उ.प्र.पुलिस) परीक्षा, 2024]

निर्देशः- निम्न अनुच्छेद को पढ़कर दिए गए प्रश्नों के उत्तर विकल्पों में से चुनकर दीजिए।

सफलता चाहने वाले मनुष्य का प्रथम कर्त्तव्य यह देखना है कि उसकी रुचि किन कार्यों की ओर अधिक है। यह बात गलत है कि हर कोई मनुष्य हर एक काम कर सकता है। लॉर्ड वेस्टरफील्ड स्वाभाविक प्रवृत्तियों के काम को अनावश्यक समझते थे और केवल परिश्रम को ही सफलता का आधार मानते थे। इसी सिद्धान्त के अनुसार, उन्होंने अपने बेटे स्टेनहोप को जो सुस्त ढीला-ढाला, असावधान था, सत्पुरुष बनाने का प्रयास किया। वर्षों परिश्रम करने के बाद भी लड़का ज्यों का त्यों रहा और जीवन-भर योग्य न बन सका। स्वाभाविक प्रवृत्तियों को जानना कठिन भी नहीं है। बचपन के कामों को देखकर बताया जा सकता है कि बच्चा किस प्रकार का मनुष्य होगा। प्रायः यह सम्भावना प्रबल होती है कि छोटी आयु में कविता करने वाला कवि, सेना बनाकर चलने सेनापति, भुट्टे चुराने वाला चोर-डाकू, पुर्जे कसने वाला मैकेनिक और विज्ञान में रुचि रखने वाला वैज्ञानिक बनेगा। जब यह बात विदित हो जाए कि बच्चे की रुचि किस काम की ओर है, तब यह करना चाहिए कि तसे उसी विषय की ऊँची शिक्षा दिलाई जाए। ऊँची शिक्षा प्राप्त करके मनुष्य अपने काम-धन्धे में कम परिश्रम से अधिक सफल हो सकता है। जिनके काम-धन्धे का पूर्ण प्रतिबिम्ब बचपन में नहीं दिखता, अपवाव ही हैं। प्रत्येक मनुष्य में एक विशेष कार्य को अच्छी तरह करने की शक्ति होती है। वह बड़ी दृढ़ और उत्कृष्ट होती है। वह देर तक नहीं छिपती। उसी के अनुकूल व्यवसाय चुनने से ही सफलता मिलती है। जीवन में यदि आपने सही कार्यक्षेत्र चुन लिया, तो समझ लीजिए कि बहुत बड़ा काम कर लिया।

 

Correct Answer: (c) दुर्जन
Solution:'सत्पुरुष' का विलोम दिए गए विकल्पों के आधार पर 'दुर्जन' होता है। दुर्जन का विलोम सज्जन होता है। 'सज्जन' सत्पुरुष का पर्यायवाची शब्द है।

12. लॉर्ड वेस्टरफील्ड का क्या सिद्धान्त था? [रेडियो ऑपरेटर (उ.प्र.पुलिस) परीक्षा, 2024]

निर्देशः- निम्न अनुच्छेद को पढ़कर दिए गए प्रश्नों के उत्तर विकल्पों में से चुनकर दीजिए।

सफलता चाहने वाले मनुष्य का प्रथम कर्त्तव्य यह देखना है कि उसकी रुचि किन कार्यों की ओर अधिक है। यह बात गलत है कि हर कोई मनुष्य हर एक काम कर सकता है। लॉर्ड वेस्टरफील्ड स्वाभाविक प्रवृत्तियों के काम को अनावश्यक समझते थे और केवल परिश्रम को ही सफलता का आधार मानते थे। इसी सिद्धान्त के अनुसार, उन्होंने अपने बेटे स्टेनहोप को जो सुस्त ढीला-ढाला, असावधान था, सत्पुरुष बनाने का प्रयास किया। वर्षों परिश्रम करने के बाद भी लड़का ज्यों का त्यों रहा और जीवन-भर योग्य न बन सका। स्वाभाविक प्रवृत्तियों को जानना कठिन भी नहीं है। बचपन के कामों को देखकर बताया जा सकता है कि बच्चा किस प्रकार का मनुष्य होगा। प्रायः यह सम्भावना प्रबल होती है कि छोटी आयु में कविता करने वाला कवि, सेना बनाकर चलने सेनापति, भुट्टे चुराने वाला चोर-डाकू, पुर्जे कसने वाला मैकेनिक और विज्ञान में रुचि रखने वाला वैज्ञानिक बनेगा। जब यह बात विदित हो जाए कि बच्चे की रुचि किस काम की ओर है, तब यह करना चाहिए कि तसे उसी विषय की ऊँची शिक्षा दिलाई जाए। ऊँची शिक्षा प्राप्त करके मनुष्य अपने काम-धन्धे में कम परिश्रम से अधिक सफल हो सकता है। जिनके काम-धन्धे का पूर्ण प्रतिबिम्ब बचपन में नहीं दिखता, अपवाव ही हैं। प्रत्येक मनुष्य में एक विशेष कार्य को अच्छी तरह करने की शक्ति होती है। वह बड़ी दृढ़ और उत्कृष्ट होती है। वह देर तक नहीं छिपती। उसी के अनुकूल व्यवसाय चुनने से ही सफलता मिलती है। जीवन में यदि आपने सही कार्यक्षेत्र चुन लिया, तो समझ लीजिए कि बहुत बड़ा काम कर लिया।

 

Correct Answer: (c) परिश्रम ही सफलता का आधार है।
Solution:लॉर्ड वेस्टरफील्ड का सिद्धान्त था, परिश्रम ही सफलता का आधार है। इस सिद्धान्त के द्वारा उन्होंने अपने बेटे को सत्पुरुष बनाने का प्रयास किया।

13. स्टेनहोप के विषय में कौन-सी बात सही नहीं है? [रेडियो ऑपरेटर (उ.प्र.पुलिस) परीक्षा, 2024]

निर्देशः- निम्न अनुच्छेद को पढ़कर दिए गए प्रश्नों के उत्तर विकल्पों में से चुनकर दीजिए।

सफलता चाहने वाले मनुष्य का प्रथम कर्त्तव्य यह देखना है कि उसकी रुचि किन कार्यों की ओर अधिक है। यह बात गलत है कि हर कोई मनुष्य हर एक काम कर सकता है। लॉर्ड वेस्टरफील्ड स्वाभाविक प्रवृत्तियों के काम को अनावश्यक समझते थे और केवल परिश्रम को ही सफलता का आधार मानते थे। इसी सिद्धान्त के अनुसार, उन्होंने अपने बेटे स्टेनहोप को जो सुस्त ढीला-ढाला, असावधान था, सत्पुरुष बनाने का प्रयास किया। वर्षों परिश्रम करने के बाद भी लड़का ज्यों का त्यों रहा और जीवन-भर योग्य न बन सका। स्वाभाविक प्रवृत्तियों को जानना कठिन भी नहीं है। बचपन के कामों को देखकर बताया जा सकता है कि बच्चा किस प्रकार का मनुष्य होगा। प्रायः यह सम्भावना प्रबल होती है कि छोटी आयु में कविता करने वाला कवि, सेना बनाकर चलने सेनापति, भुट्टे चुराने वाला चोर-डाकू, पुर्जे कसने वाला मैकेनिक और विज्ञान में रुचि रखने वाला वैज्ञानिक बनेगा। जब यह बात विदित हो जाए कि बच्चे की रुचि किस काम की ओर है, तब यह करना चाहिए कि तसे उसी विषय की ऊँची शिक्षा दिलाई जाए। ऊँची शिक्षा प्राप्त करके मनुष्य अपने काम-धन्धे में कम परिश्रम से अधिक सफल हो सकता है। जिनके काम-धन्धे का पूर्ण प्रतिबिम्ब बचपन में नहीं दिखता, अपवाव ही हैं। प्रत्येक मनुष्य में एक विशेष कार्य को अच्छी तरह करने की शक्ति होती है। वह बड़ी दृढ़ और उत्कृष्ट होती है। वह देर तक नहीं छिपती। उसी के अनुकूल व्यवसाय चुनने से ही सफलता मिलती है। जीवन में यदि आपने सही कार्यक्षेत्र चुन लिया, तो समझ लीजिए कि बहुत बड़ा काम कर लिया।

 

Correct Answer: (a) वह बड़ा होकर सत्पुरुष बन गया।
Solution:स्टेनहोप के विषय में सही बात नहीं है, वह बड़ा होकर सत्पुरुष बन गया। वस्तुतः वह वर्षों परिश्रम करने के बाद भी ज्यों का त्यों रहा। शेष दी गई बातें स्टेनहोप के विषय में सही हैं।

14. सही कार्यक्षेत्र चुनने के क्या लाभ हैं? [रेडियो ऑपरेटर (उ.प्र.पुलिस) परीक्षा, 2024]

निर्देशः- निम्न अनुच्छेद को पढ़कर दिए गए प्रश्नों के उत्तर विकल्पों में से चुनकर दीजिए।

सफलता चाहने वाले मनुष्य का प्रथम कर्त्तव्य यह देखना है कि उसकी रुचि किन कार्यों की ओर अधिक है। यह बात गलत है कि हर कोई मनुष्य हर एक काम कर सकता है। लॉर्ड वेस्टरफील्ड स्वाभाविक प्रवृत्तियों के काम को अनावश्यक समझते थे और केवल परिश्रम को ही सफलता का आधार मानते थे। इसी सिद्धान्त के अनुसार, उन्होंने अपने बेटे स्टेनहोप को जो सुस्त ढीला-ढाला, असावधान था, सत्पुरुष बनाने का प्रयास किया। वर्षों परिश्रम करने के बाद भी लड़का ज्यों का त्यों रहा और जीवन-भर योग्य न बन सका। स्वाभाविक प्रवृत्तियों को जानना कठिन भी नहीं है। बचपन के कामों को देखकर बताया जा सकता है कि बच्चा किस प्रकार का मनुष्य होगा। प्रायः यह सम्भावना प्रबल होती है कि छोटी आयु में कविता करने वाला कवि, सेना बनाकर चलने सेनापति, भुट्टे चुराने वाला चोर-डाकू, पुर्जे कसने वाला मैकेनिक और विज्ञान में रुचि रखने वाला वैज्ञानिक बनेगा। जब यह बात विदित हो जाए कि बच्चे की रुचि किस काम की ओर है, तब यह करना चाहिए कि तसे उसी विषय की ऊँची शिक्षा दिलाई जाए। ऊँची शिक्षा प्राप्त करके मनुष्य अपने काम-धन्धे में कम परिश्रम से अधिक सफल हो सकता है। जिनके काम-धन्धे का पूर्ण प्रतिबिम्ब बचपन में नहीं दिखता, अपवाव ही हैं। प्रत्येक मनुष्य में एक विशेष कार्य को अच्छी तरह करने की शक्ति होती है। वह बड़ी दृढ़ और उत्कृष्ट होती है। वह देर तक नहीं छिपती। उसी के अनुकूल व्यवसाय चुनने से ही सफलता मिलती है। जीवन में यदि आपने सही कार्यक्षेत्र चुन लिया, तो समझ लीजिए कि बहुत बड़ा काम कर लिया।

 

Correct Answer: (c) मनुष्य अपने व्यवसाय को चुन लेता है
Solution:दिए गए गद्यांश के अनुसार, सही कार्यक्षेत्र चुनने का लाभ है-मनुष्य अपने व्यवसाय को चुन लेता है।

15. बालक आगे चलकर कैसा मनुष्य बनेगा, इसका अनुमान कैसे लगाया जा सकता है? [रेडियो ऑपरेटर (उ.प्र. पुलिस) परीक्षा, 2024]

निर्देशः- निम्न अनुच्छेद को पढ़कर दिए गए प्रश्नों के उत्तर विकल्पों में से चुनकर दीजिए।

सफलता चाहने वाले मनुष्य का प्रथम कर्त्तव्य यह देखना है कि उसकी रुचि किन कार्यों की ओर अधिक है। यह बात गलत है कि हर कोई मनुष्य हर एक काम कर सकता है। लॉर्ड वेस्टरफील्ड स्वाभाविक प्रवृत्तियों के काम को अनावश्यक समझते थे और केवल परिश्रम को ही सफलता का आधार मानते थे। इसी सिद्धान्त के अनुसार, उन्होंने अपने बेटे स्टेनहोप को जो सुस्त ढीला-ढाला, असावधान था, सत्पुरुष बनाने का प्रयास किया। वर्षों परिश्रम करने के बाद भी लड़का ज्यों का त्यों रहा और जीवन-भर योग्य न बन सका। स्वाभाविक प्रवृत्तियों को जानना कठिन भी नहीं है। बचपन के कामों को देखकर बताया जा सकता है कि बच्चा किस प्रकार का मनुष्य होगा। प्रायः यह सम्भावना प्रबल होती है कि छोटी आयु में कविता करने वाला कवि, सेना बनाकर चलने सेनापति, भुट्टे चुराने वाला चोर-डाकू, पुर्जे कसने वाला मैकेनिक और विज्ञान में रुचि रखने वाला वैज्ञानिक बनेगा। जब यह बात विदित हो जाए कि बच्चे की रुचि किस काम की ओर है, तब यह करना चाहिए कि तसे उसी विषय की ऊँची शिक्षा दिलाई जाए। ऊँची शिक्षा प्राप्त करके मनुष्य अपने काम-धन्धे में कम परिश्रम से अधिक सफल हो सकता है। जिनके काम-धन्धे का पूर्ण प्रतिबिम्ब बचपन में नहीं दिखता, अपवाव ही हैं। प्रत्येक मनुष्य में एक विशेष कार्य को अच्छी तरह करने की शक्ति होती है। वह बड़ी दृढ़ और उत्कृष्ट होती है। वह देर तक नहीं छिपती। उसी के अनुकूल व्यवसाय चुनने से ही सफलता मिलती है। जीवन में यदि आपने सही कार्यक्षेत्र चुन लिया, तो समझ लीजिए कि बहुत बड़ा काम कर लिया।

 

Correct Answer: (d) उसके बचपन के कार्यों को देखकर
Solution:दिए गए गद्यांश के आधार पर कहा जा सकता है, कि बालक के बचपन के कार्यों को देखकर यह अनुमान लगाया जा सकता है कि वह आगे चलकर कैसा मनुष्य बनेगा ?

16. कर्मभीरु, पराश्रय पर जीवन-निर्वाह क्यों करता है? [रेडियो ऑपरेटर (उ.प्र. पुलिस) परीक्षा, 2024]

निर्देशः- अनुच्छेद को पढ़कर दिए गए प्रश्न का उत्तर विकल्पों से चुनकर लिखिए।

कर्मभीरु मनुष्य काम करने से डरता है, काम को देखकर भयभीत होता है। वह परान्न और पराश्रय पर अपना जीवन-निर्वाह करता है। स्वाबलम्बन और आत्म-निर्भरता उससे कोसों दूर खड़ी रहती है। न उसमें उनके आवाहन की शक्ति होती है और न आदर की। क्या आपने कभी सोचा है कि इस प्रकार के कर्मभीरु मानव के पुरुषार्थ और शक्ति को उससे किसने छीन लिया? वह अकर्मण्य क्यों बन बैठा ? उदासी ने उसके जीवन में घर क्यों बना लिया? इन सब प्रश्नों का आप केवल एक ही उत्तर पाएँगे कि उसके सुनहरे जीवन को आलस्य रूपी कीटाणुओं ने खोखला बना दिया है। आलस्य मानव-जीवन का सबसे बड़ा शत्रु है, जो उसकी समस्त सृजनात्मक और रचनात्मक शक्तियों को छीनकर उसे मिट्टी का लौंदा बना देता है।

 

Correct Answer: (a) उसमें आवाहन की शक्ति नहीं होती।
Solution:उपर्युक्त अनुच्छेद के आधार पर कर्मभीरु, पराश्रय पर जीवन निर्वाह इसलिए करते हैं कि उनमें आवाहन और आदर की शक्ति नहीं होती है।

17. कर्मण्य' का विलोम क्या है? [रेडियो ऑपरेटर (उ.प्र.पुलिस) परीक्षा, 2024]

निर्देशः- अनुच्छेद को पढ़कर दिए गए प्रश्न का उत्तर विकल्पों से चुनकर लिखिए।

कर्मभीरु मनुष्य काम करने से डरता है, काम को देखकर भयभीत होता है। वह परान्न और पराश्रय पर अपना जीवन-निर्वाह करता है। स्वाबलम्बन और आत्म-निर्भरता उससे कोसों दूर खड़ी रहती है। न उसमें उनके आवाहन की शक्ति होती है और न आदर की। क्या आपने कभी सोचा है कि इस प्रकार के कर्मभीरु मानव के पुरुषार्थ और शक्ति को उससे किसने छीन लिया? वह अकर्मण्य क्यों बन बैठा ? उदासी ने उसके जीवन में घर क्यों बना लिया? इन सब प्रश्नों का आप केवल एक ही उत्तर पाएँगे कि उसके सुनहरे जीवन को आलस्य रूपी कीटाणुओं ने खोखला बना दिया है। आलस्य मानव-जीवन का सबसे बड़ा शत्रु है, जो उसकी समस्त सृजनात्मक और रचनात्मक शक्तियों को छीनकर उसे मिट्टी का लौंदा बना देता है।

 

Correct Answer: (a) अकर्मण्य
Solution:उपर्युक्त अनुच्छेद में 'कर्मण्य' शब्द के विलोम शब्द 'अकर्मण्य' का प्रयोग हुआ है- वह अकर्मण्य क्यों बन बैठा ? आलसी का विलोम उद्यमी/कर्मठ होता है। उद्यमी का विलोम निरुद्यम/निरुद्यमी होता है। डरपोक का विलोम निडर होता है।

18. किस विकल्प में सारे तत्सम शब्द हैं? [रेडियो ऑपरेटर (उ.प्र.पुलिस) परीक्षा, 2024]

निर्देशः- अनुच्छेद को पढ़कर दिए गए प्रश्न का उत्तर विकल्पों से चुनकर लिखिए।

कर्मभीरु मनुष्य काम करने से डरता है, काम को देखकर भयभीत होता है। वह परान्न और पराश्रय पर अपना जीवन-निर्वाह करता है। स्वाबलम्बन और आत्म-निर्भरता उससे कोसों दूर खड़ी रहती है। न उसमें उनके आवाहन की शक्ति होती है और न आदर की। क्या आपने कभी सोचा है कि इस प्रकार के कर्मभीरु मानव के पुरुषार्थ और शक्ति को उससे किसने छीन लिया? वह अकर्मण्य क्यों बन बैठा ? उदासी ने उसके जीवन में घर क्यों बना लिया? इन सब प्रश्नों का आप केवल एक ही उत्तर पाएँगे कि उसके सुनहरे जीवन को आलस्य रूपी कीटाणुओं ने खोखला बना दिया है। आलस्य मानव-जीवन का सबसे बड़ा शत्रु है, जो उसकी समस्त सृजनात्मक और रचनात्मक शक्तियों को छीनकर उसे मिट्टी का लौंदा बना देता है।

 

Correct Answer: (c) परान्न, पराश्रय, आलस्य
Solution:दिए गए विकल्पों में से विकल्प (c) के तीनों शब्द तत्सम हैं। परान्न का अर्थ है, दूसरे का दिया हुआ अन्न। पराश्रय का अर्थ है, दूसरे द्वारा दिया गया आश्रय। कार्य करने की क्षमता होते हुए भी परिश्रम की अनिच्छा को 'आलस्य' कहा जाता है।

19. कर्ममीरु कौन है? [रेडियो ऑपरेटर (उ.प्र. पुलिस) परीक्षा, 2024]

निर्देशः- अनुच्छेद को पढ़कर दिए गए प्रश्न का उत्तर विकल्पों से चुनकर लिखिए।

कर्मभीरु मनुष्य काम करने से डरता है, काम को देखकर भयभीत होता है। वह परान्न और पराश्रय पर अपना जीवन-निर्वाह करता है। स्वाबलम्बन और आत्म-निर्भरता उससे कोसों दूर खड़ी रहती है। न उसमें उनके आवाहन की शक्ति होती है और न आदर की। क्या आपने कभी सोचा है कि इस प्रकार के कर्मभीरु मानव के पुरुषार्थ और शक्ति को उससे किसने छीन लिया? वह अकर्मण्य क्यों बन बैठा ? उदासी ने उसके जीवन में घर क्यों बना लिया? इन सब प्रश्नों का आप केवल एक ही उत्तर पाएँगे कि उसके सुनहरे जीवन को आलस्य रूपी कीटाणुओं ने खोखला बना दिया है। आलस्य मानव-जीवन का सबसे बड़ा शत्रु है, जो उसकी समस्त सृजनात्मक और रचनात्मक शक्तियों को छीनकर उसे मिट्टी का लौंदा बना देता है।

 

Correct Answer: (b) जो कर्म करने से डरता है।
Solution:उपर्युक्त अनुच्छेद के आधार पर कर्मभीरु वह है, जो कर्म करने से डरता है। अनुच्छेद के प्रथम वाक्य में दिया गया है- कर्मभीरु मनुष्य काम करने से डरता है।

20. उपर्युक्त अनुच्छेद में किसे मानव जीवन का सबसे बड़ा शत्रु माना गया है? [रेडियो ऑपरेटर (उ.प्र.पुलिस) परीक्षा, 2024]

निर्देशः- अनुच्छेद को पढ़कर दिए गए प्रश्न का उत्तर विकल्पों से चुनकर लिखिए।

कर्मभीरु मनुष्य काम करने से डरता है, काम को देखकर भयभीत होता है। वह परान्न और पराश्रय पर अपना जीवन-निर्वाह करता है। स्वाबलम्बन और आत्म-निर्भरता उससे कोसों दूर खड़ी रहती है। न उसमें उनके आवाहन की शक्ति होती है और न आदर की। क्या आपने कभी सोचा है कि इस प्रकार के कर्मभीरु मानव के पुरुषार्थ और शक्ति को उससे किसने छीन लिया? वह अकर्मण्य क्यों बन बैठा ? उदासी ने उसके जीवन में घर क्यों बना लिया? इन सब प्रश्नों का आप केवल एक ही उत्तर पाएँगे कि उसके सुनहरे जीवन को आलस्य रूपी कीटाणुओं ने खोखला बना दिया है। आलस्य मानव-जीवन का सबसे बड़ा शत्रु है, जो उसकी समस्त सृजनात्मक और रचनात्मक शक्तियों को छीनकर उसे मिट्टी का लौंदा बना देता है।

 

Correct Answer: (a) आलस्य
Solution:उपर्युक्त अनुच्छेद के आधार पर आलस्य मानव-जीवन का सबसे बड़ा शत्रु है, जो उसकी समस्त सृजनात्मक और रचनात्मक शक्तियों को छीनकर उसे मिट्टी का लौंदा बना देता है।