Solution: 'कुन्तक' अलंकारवादी आचार्य नहीं हैं, बल्कि इन्होंने अलंकार सम्प्रदाय से अलग वक्रोक्ति सम्प्रदाय की स्थापना किया। भामह, दण्डी तथा उद्भट की अलंकारवादी आचार्य माने जाते हैं।
अन्य महत्त्वपूर्ण तथ्य
'भामह' अलंकार सम्प्रदाय के प्रवर्त्तक तथा अलंकार को काव्य की आत्मा मानने वाले आचार्य हैं। 'काव्यालंकार' इनकी प्रमुख कृति हैं। 'न कान्तामपि निर्भूषं विभाति वनितामुखम्' इनकी महत्त्वपूर्ण उक्ति है।
दण्डी की प्रमुख कृति 'काव्यादर्श' है तथा इनकी प्रसिद्ध उक्ति 'काव्यशोभाकरान् धर्मान् अलंकारन् प्रचक्षते' है।रीतियों का स्वरूप-विवेचन तथा उनका विभाजन सर्वप्रथम 'दण्डी' ने ही किया।
उद्भट ने भामह के काव्यालंकार ग्रन्थ पर भामहवृत्ति या भामह विवरण शीर्षक से टीका लिखी है। अलंकार सारसंग्रह इनकी महत्त्वपूर्ण कृति है।
कुन्तक की प्रमुख रचना 'वक्रोक्ति जीवितम्' है। इन्होंने वक्रोक्ति को काव्य की आत्मा मानते हुए कहा है कि 'वक्रोक्तिः काव्य जीवितम्। इन्होंने रीति को कवि प्रस्थान हेतु या कवि कर्म की विधि कहा है।