Solution:ऊष्मागतिकी का प्रथम नियम (First Law of Thermodynamics): इसे ऊर्जा संरक्षण का नियम भी कहते हैं। यह कहता है कि ऊर्जा को न तो बनाया जा सकता है और न ही नष्ट किया जा सकता है, केवल एक रूप से दूसरे रूप में परिवर्तित किया जा सकता है। यह ऊर्जा के कुल प्रवाह को नियंत्रित करता है।
ऊष्मागतिकी का द्वितीय नियम (Second Law of Thermodynamics): यह नियम एन्ट्रापी (entropy) में वृद्धि से संबंधित है। इसका एक महत्वपूर्ण परिणाम यह है कि जब ऊर्जा एक रूप से दूसरे रूप में परिवर्तित होती है, तो कुछ ऊर्जा हमेशा अनुपयोगी ऊष्मा के रूप में बर्बाद हो जाती है (बढ़ती एन्ट्रापी के कारण)। यह ऊर्जा पूरी तरह से उपयोगी कार्य में परिवर्तित नहीं हो सकती।
पारिस्थितिकी तंत्र में ऊर्जा प्रवाह: पारिस्थितिकी तंत्र में, जब ऊर्जा एक पोषण स्तर (जैसे उत्पादक) से अगले पोषण स्तर (जैसे प्राथमिक उपभोक्ता) में स्थानांतरित होती है, तो ऊर्जा का केवल एक छोटा सा हिस्सा (लगभग 10%) ही अगले स्तर तक पहुंच पाता है। शेष ऊर्जा (लगभग 90%) जीव की चयापचय गतिविधियों (श्वसन, गति, आदि) और ऊष्मा के रूप में पर्यावरण में विसर्जित हो जाती है। यह ऊष्मा पर्यावरण में अव्यवस्थित हो जाती है और इसे पुनर्चक्रित नहीं किया जा सकता है।
यही कारण है कि उच्च पोषण स्तरों पर जाने से ऊर्जा की मात्रा कम होती जाती है, क्योंकि ऊर्जा के प्रत्येक स्थानांतरण पर उसका एक बड़ा हिस्सा ऊष्मा के रूप में नष्ट हो जाता है। यह द्वितीय नियम का सीधा अनुप्रयोग है।