गुप्त एवं गुप्तोत्तर युग (UPPCS) (Part-2)

Total Questions: 50

41. निम्नलिखित में से कौन एक 'अष्टांग योग' का अंश नहीं है? [Chhattisgarh P.C.S. (Pre) 2015]

Correct Answer: (a) अनुस्मृति
Solution:महर्षि पतंजलि ने योग को 'चित्त की वृत्तियों के निरोध' (योग : चित्तवृत्ति निरोधः) के रूप में परिभाषित किया है। लगभग 200 ई.पू. में महर्षि पतंजलि ने योग को लिखित रूप में संगृहीत किया और योग-सूत्र की रचना की। योग-सूत्र की रचना के कारण पतंजलि को योग का जनक कहा जाता है। उन्होंने योग के आठ अंग यथा यम, नियम, आसन, प्राणायाम, प्रत्याहार, धारणा, ध्यान और समाधि का वर्णन किया है। यही आष्टांग योग है। अतः स्पष्ट है कि 'अनुस्मृति' अष्टांग योग का अंश नहीं है।

42. महाभाष्य के लेखक 'पतंजलि' समसामयिक थे- [U.P.P.C.S. (Pre) 2011]

Correct Answer: (c) पुष्यमित्र शुंग के
Solution:महाभाष्य के लेखक 'पतंजलि' शुंग वंश के संस्थापक शासक पुष्यमित्र शुंग (184-148 ई.पू.) के समकालीन थे।

43. नव्य-न्याय संप्रदाय (स्कूल) के संस्थापक कौन थे? [U.P.P.C.S. (Pre) 1995]

Correct Answer: (e) (b & d)
Solution:मिथिला के प्रसिद्ध तर्कवादी उदयन या उदयनाचार्य न्याय दर्शन के प्रख्यात विद्वान थे। उनकी रचना कुसुमांजलि को नव्य-न्याय दर्शन का मूल स्रोत भी माना जाता है। कई विचारक उदयन को नव्य-न्याय दर्शन (संप्रदाय) का वास्तविक संस्थापक मानते हैं, जबकि कुछ विचारक गंगेश, जिन्होंने नव्य-न्याय दर्शन को संगृहीत किया था, को इसका संस्थापक मानते हैं।

44. 'जब तक जीवित रहो, सुख से जीवित रहो, चाहे इसके लिए ऋण ही लेना पड़े; क्योंकि शरीर के भस्मीभूत हो जाने पर पुनरागमन नहीं हो सकता।' पुनर्जन्म का निषेध करने वाली यह उक्ति किसकी है? [I.A.S. (Pre) 1994]

Correct Answer: (d) चार्वाकों की
Solution:भारतीय दर्शन में चार्वाक दर्शन जड़वादी या भौतिकवादी विचारधारा का पोषक है। इस दर्शन का आदर्श है- जब तक जीवित रहें, सुख से जीवित रहें, उधार लेकर घी पियें; क्योंकि देह के भस्म हो जाने के बाद पुनर्जन्म नहीं होता'-' यावज्जीवेत् सुखं जीवेत् ऋणं कृत्वा घृतं पिबेत्। भस्मीभूतस्य देहस्य पुनरागमनं कुतः।'

45. केवल प्रत्यक्ष प्रमाण को कौन स्वीकार करता है? [Chhattisgarh P.C.S. (Pre) 2018]

Correct Answer: (b) चार्वाक
Solution:भारतीय दर्शन में विभिन्न संप्रदायों में प्रमाणों की संख्या के विषय में पर्याप्त मतभेद हैं। बौद्ध और वैशेषिक संप्रदाय प्रत्यक्ष तथा अनुमान केवल दो प्रमाणों को स्वीकार करते हैं। जैन, सांख्य, योग और विशिष्टाद्वैत दर्शन इन दोनों के साथ शब्द प्रमाण को भी जोड़ देते हैं। न्याय दार्शनिक प्रत्यक्ष, अनुमान, शब्द और उपमान चार प्रमाणों को स्वीकार करते हैं। प्रभाकर मीमांसा में इन चारों प्रमाणों के साथ अर्थापत्ति को भी जोड़ दिया जाता है। भट्ट-मीमांसा और अद्वैत वेदांत दर्शन में इन प्रमाणों के साथ अनुपलब्धि को भी प्रमाण मान लिया जाता है। इन सबके विपरीत चार्वाक दर्शन केवल प्रत्यक्ष को प्रमाण मानता है और अन्य प्रमाणों का निषेध करता है।

46. अधोलिखित में से कौन एक चार्वाक के अनुसार सर्वोच्च मूल्य है? [Chhattisgarh P.C.S. (Pre) 2017]

Correct Answer: (c) काम
Solution:चार्वाक दर्शन ने भारतीय परंपरा में स्वीकृत चारों पुरुषार्थों में 'काम' को परम पुरुषार्थ माना है। इसके अनुसार, जो 'कर्म' काम की पूर्ति करे या मनुष्य को सुख प्रदान करे, वही उचित है। चार्वाक के अनुसार, 'अर्थ' सुख प्राप्ति का साधन है। उल्लेखनीय है कि चार्वाक दर्शन में से तातार्य ऐंटिरा सुख से है।

47. चार्वाक दार्शनिक प्रणाली- [Jharkhand P.C.S. (Pre) 2021]

Correct Answer: (a) लोकायत प्रणाली भी कहलाती थी।
Solution:चार्वाक दर्शन एक भौतिकवादी दर्शन है, जिसे 'लोकायत' के नाम से भी जाना जाता है। इस दर्शन के प्रणेता 'चार्वाक' हैं। यह नास्तिक विचारधारा पर आधारित दर्शन है। यह दर्शन मात्र 'प्रत्यक्ष' प्रमाण को स्वीकार करता है।

48. न्याय दर्शन को प्रचारित किया था- [U.P.P.C.S. (Pre) 2005 U.P.P.C.S. (Mains) 2005]

Correct Answer: (b) गौतम ने
Solution:न्याय दर्शन का प्रवर्तन गौतम ने किया, जिन्हें 'अक्षपाद' भी कहा जाता है। न्याय का शाब्दिक अर्थ तर्क या निर्णय होता है। न्याय दर्शन में 16 पदार्थों या तत्वों का अस्तित्व स्वीकार किया गया है। न्याय दर्शन का मूल ग्रंथ गौतम कृत 'न्यायसूत्र' है।

49. न्याय दर्शन के संस्थापक थे- [Uttarakhand P.C.S. (Pre) 2016]

Correct Answer: (c) गौतम
Solution:न्याय दर्शन का प्रवर्तन गौतम ने किया, जिन्हें 'अक्षपाद' भी कहा जाता है। न्याय का शाब्दिक अर्थ तर्क या निर्णय होता है। न्याय दर्शन में 16 पदार्थों या तत्वों का अस्तित्व स्वीकार किया गया है। न्याय दर्शन का मूल ग्रंथ गौतम कृत 'न्यायसूत्र' है।

50. न्याय दर्शन का प्रवर्तक कौन है? [Chhattisgarh P.C.S. (Pre) 2018]

Correct Answer: (a) गौतम
Solution:

न्याय दर्शन का प्रवर्तन गौतम ने किया, जिन्हें 'अक्षपाद' भी कहा जाता है। न्याय का शाब्दिक अर्थ तर्क या निर्णय होता है। न्याय दर्शन में 16 पदार्थों या तत्वों का अस्तित्व स्वीकार किया गया है। न्याय दर्शन का मूल ग्रंथ गौतम कृत 'न्यायसूत्र' है।