जैन धर्म (UPPSC)

Total Questions: 58

21. त्रिरत्न या तीन रत्न, जैसे सटीक ज्ञान, सच्ची आस्था और सटीक क्रिया, निम्न में से किससे संबंधित हैं? [66th B.P.S.C. (Pre) 2020]

Correct Answer: (c) जैन धर्म
Solution:जैन धर्म में मोक्ष के लिए तीन आवश्यक साधन बताए गए हैं-सम्यक् धारण (दर्शन), सम्यक् चरित्र एवं सम्यक् ज्ञान। इन तीनों को जैन धर्म में 'त्रिरत्न' की संज्ञा दी गई है।

22. कौन-सा दर्शन त्रिरत्न को मानता है? [Chhattisgarh P.C.S. (Pre) 2017]

Correct Answer: (e) इनमें से कोई नहीं
Solution:जैन धर्म (जैन दर्शन) में मोक्ष के लिए तीन साधन आवश्यक बताए गए हैं, ये हैं-सम्यक् दर्शन, सम्यक् ज्ञान एवं सम्यक् चरित्र। इन तीनों को जैन धर्म में 'त्रिरत्न' की संज्ञा दी गई है। बुद्ध, धम्म एवं संघ बौद्ध धर्म (बौद्ध दर्शन) के 'त्रिरत्न' माने जाते हैं। अतः छत्तीसगढ़ लोक सेवा आयोग ने इस प्रश्न को मूल्यांकन से बाहर कर दिया है।

23. अणुव्रत सिद्धांत का प्रतिपादन किया था- [I.A.S. (Pre) 1995]

Correct Answer: (c) जैन धर्म ने
Solution:जैन धर्म में पंच महाव्रत-अहिंसा, सत्य, ब्रह्मचर्य, अस्तेय एवं अपरिग्रह की व्यवस्था की गई है। जैन धर्म में गृहस्थों के लिए पंच महाव्रत अणुव्रत के रूप में व्यवहृत हुआ है; क्योंकि संसार में रहते हुए इन महाव्रतों का पूर्णतः पालन करना संभव नहीं; इसलिए आंशिक रूप से इन अणुव्रत के पालन हेतु कहा गया है। ये पंच अणुव्रत हैं- (1) अहिंसाणुव्रत, (2) सत्याणुव्रत, (3) अस्तेयाणुव्रत, (4) ब्रह्मचर्याणुव्रत और (5) अपरिग्रहाणुव्रत ।

24. स्याद्वाद सिद्धांत है- [Uttarakhand P.C.S. (Pre) 2005]

Correct Answer: (c) जैन धर्म का
Solution:महावीर स्वामी जैन धर्म के 24वें तीर्थंकर थे, इन्होंने वेदों की अपौरुषेयता स्वीकार करने से इनकार कर दिया तथा धार्मिक सामाजिक रूढ़ियों एवं पाखंडों का विरोध किया। उन्होंने आत्मवादियों तथा नास्तिकों के एकांतिक मतों को छोड़कर बीच का मार्ग अपनाया, जिसे 'स्याद्वाद' कहा गया। स्याद्वाद को सप्तभंगीनय के नाम से भी जाना जाता है। यह ज्ञान की सापेक्षता का सिद्धांत है।

25. 'स्याद्वाद' संबंधित है- [Chhattisgarh P.C.S. (Pre) 2018]

Correct Answer: (b) जैन से
Solution:महावीर स्वामी जैन धर्म के 24वें तीर्थंकर थे, इन्होंने वेदों की अपौरुषेयता स्वीकार करने से इनकार कर दिया तथा धार्मिक सामाजिक रूढ़ियों एवं पाखंडों का विरोध किया। उन्होंने आत्मवादियों तथा नास्तिकों के एकांतिक मतों को छोड़कर बीच का मार्ग अपनाया, जिसे 'स्याद्वाद' कहा गया। स्याद्वाद को सप्तभंगीनय के नाम से भी जाना जाता है। यह ज्ञान की सापेक्षता का सिद्धांत है।

26. निम्नलिखित में से कौन-कौन से सिद्धांत जैन धर्म से संबंधित हैं? [R.A.S./R.T.S (Pre) 2021]

(i) अनेकांतवाद

(ii) सर्वस्तिवाद

(iii) शून्यवाद

(iv) स्याद्वाद

नीचे दिए गए कूट का उपयोग कर सही उत्तर चुनिए-

Correct Answer: (a) (i) एवं (iv)
Solution:'अनेकांतवाद' एवं 'स्याद्वाद' जैन धर्म से संबंधित हैं। महावीर स्वामी ने आत्मवादियों तथा नास्तिकों के एकांतिक मतों को छोड़कर बीच का मार्ग अपनाया, जिसे 'स्याद्वाद' कहा गया। स्याद्वाद को 'सप्तभंगीनय' भी कहा जाता है। यह ज्ञान की सापेक्षता का सिद्धांत है। स्याद्वाद, जैन दर्शन के प्रमाण शास्त्र से संबंधित अवधारणा है। अनेकांतवाद, जैन दर्शन के तत्वशास्त्र से संबंधित अवधारणा है। 'शून्यवाद' तथा सर्वास्तिवाद' बौद्ध धर्म से संबंधित हैं। अतः विकल्प (a) सही उत्तर है।

27. जैन दर्शन के अनुसार, सृष्टि की रचना एवं पालन-पोषण - [I.A.S. (Pre) 2011]

Correct Answer: (a) सार्वभौमिक विधान से हुआ है।
Solution:जैन दर्शन के अनुसार, समस्त विश्व जीव तथा अजीव नामक दो नित्य एवं स्वतंत्र तत्वों से मिलकर बना है। जीव चेतन तत्व है, जबकि अजीव अचेतन जड़ तत्व है। यहां जीव से तात्पर्य उपनिषदों की सार्वभौमिक आत्मा से न होकर व्यक्तिगत आत्मा से है। जैन मतानुसार, आत्माएं अनेक होती हैं तथा सृष्टि के कण-कण में जीवों का वास है। अतः विकल्प (a) सही उत्तर है, जिसमें उल्लिखित है कि जैन दर्शन के अनुसार, सृष्टि की रचना एवं पालन-पोषण सार्वभौमिक विधान से हुआ है। इसका कोई संचालक या नियंत्रणकर्ता नहीं है।

28. अनेकांतवाद निम्नलिखित में से किसका क्रोड सिद्धांत एवं दर्शन है? [I.A.S. (Pre) 2009 & Jharkhand P.C.S. (Pre) 2011]

Correct Answer: (b) जैन मत
Solution:अनेकांतवाद जैन धर्म का क्रोड सिद्धांत एवं दर्शन है। यह जैन दर्शन के तत्वशास्त्र से संबंधित धारणा है।

29. जैन दर्शन के संबंध में निम्नलिखित कथनों पर विचार करें- [Chhattisgarh P.C.S. (Pre) 2023]

1. जैन-दर्शन दो मुख्य सिद्धांतों के इर्द-गिर्द घूमता है। अर्थात अनेकांतवाद और स्यादवाद।

2. अनेकांतवाद के अनुसार, प्रत्येक प्राणी में कई गुण होते हैं। वह स्थायी गुण जो किसी वस्तु की प्रकृति का निर्माण करता है, गुण कहलाता है।

उपर्युक्त में से कौन-सा कथन सही है?

 

Correct Answer: (c) 1 और 2 दोनों
Solution:जैन दर्शन के दो मुख्य सिद्धांत हैं-अनेकांतवाद तथा स्यादवाद। अनेकांतवाद जैन दर्शन के तत्वशास्त्र से संबंधित है, जबकि स्यादवाद जैन दर्शन के प्रमाणशास्त्र से जुड़ा है। सत्ता की दृष्टि से जैन-दर्शन जिसे अनेकांतवाद की संज्ञा प्रदान करता है, उसे ही ज्ञान की दृष्टि से स्यादवाद की संज्ञा देता है। अनेकांतवाद के अनुसार, प्रत्येक वस्तु या प्राणी के दो पक्ष होते हैं- नित्यता और अनित्यता। इसके अनुसार वस्तुओं/प्राणियों के अनंत गुण हैं। इनमें कुछ गुण अनित्य अर्थात अस्थायी हैं तथा कुछ गुण नित्य अर्थात स्थायी हैं। नित्य गुण वे हैं जो वस्तुओं में निरंतर विद्यमान रहते हैं। इसके विपरीत अनित्य गुण वे हैं जो निरंतर परिवर्तित होते रहते हैं। अतः नित्य गुण वस्तु/प्राणी के स्वरूप या प्रकृति को निर्धारित करते हैं, इसलिए उन्हें आवश्यक गुण भी कहते हैं। जैन आवश्यक गुण को जो वस्तु के स्वरूप को निर्धारित करते हैं, गुण (Attribute) कहते हैं तथा अनावश्यक गुण को पर्याय (Modes) कहते हैं। गुण अपरिवर्तनशील होते हैं, जबकि पर्याय परिवर्तनशील होते हैं।

30. निम्नलिखित में से कौन-सा धर्म 'विश्व विनाशकारी प्रलय' की अवधारणा में विश्वास नहीं करता? [U.P.P.C.S. (Mains) 2014]

Correct Answer: (b) जैन धर्म
Solution:जैन धर्म में ईश्वर की कल्पना नहीं की गई है। इस धर्म के अनुसार, जगत की सृष्टि नहीं की गई है, यह संसार नित्य और शाश्वत है, इसमें किसी समय प्रलय नहीं होता है।