1. कर्म को विनष्ट करने का सुनिश्चित मार्ग तपश्चर्या है।
2. प्रत्येक वस्तु में, चाहे वह सूक्ष्मतम कण हो, आत्मा होती है।
3. कर्म आत्मा का विनाशक है और अवश्य इसका अंत करना चाहिए।
नीचे दिए गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिए।
Correct Answer: (d) 1, 2 और 3
Solution:जैन सिद्धांत के अनुसार, सृष्टि के कण-कण में जीवों का वास है। इस सिद्धांत में कर्म को बंधन का कारण तथा 'सूक्ष्मतत्व भूततत्व' माना गया है, जो जीव में प्रवेश कर उसे नीचे संसार की ओर खींच लाता है। जब कर्म का जीव की ओर प्रवाह रुक जाता है, तो उस अवस्था को 'संवर' कहते हैं तथा जब जीव में पूर्व मौजूद कर्मों का विनाश होने लगता है, तो उस अवस्था को 'निर्जरा' कहते हैं। जैनियों का विश्वास है कि प्रत्येक जीव अपने पूर्व संचित कर्मों के अनुसार ही शरीर धारण करता है, जब जीव से कर्म का अवशेष बिल्कुल समाप्त हो जाता है, तो उस स्थिति को जैन धर्म में 'मोक्ष' कहते हैं। जैन धर्म में मोक्ष के लिए तीन आवश्यक साधन बताए गए हैं, जिन्हें त्रिरत्न (सम्यक् दर्शन, सम्यक् ज्ञान एवं सम्यक् चरित्र) कहा जाता है। महावीर ने मोक्ष के लिए कठोर तपश्चर्या एवं कायाक्लेश पर भी बल दिया है। मोक्ष के पश्चात जीव आवागमन के चक्र से छुटकारा पा जाता है तथा वह 'अनंत चतुष्ट्य' (अनंत ज्ञान, अनंत दर्शन, अनंत वीर्य तथा अनंत सुख) की प्राप्ति कर लेता है।