जैन धर्म (UPPSC)

Total Questions: 58

41. किस जैन सभा में अंतिम रूप से श्वेतांबर आगम का संपादन हुआ? [U.P.P.C.S. (Mains) 2008]

Correct Answer: (d) पाटलिपुत्र में
Solution:चंद्रगुप्त मौर्य के शासनकाल में पाटलिपुत्र में प्रथम जैन संगीति आयोजित किया गया, जिसमें श्वेतांबर आगम का संपादन किया गया। चूंकि प्राचीन जैन शास्त्र नष्ट हो गए थे, अतः उन्हें पुनः एकत्र करने के लिए चतुर्थ शताब्दी ईसा पूर्व में इस प्रथम जैन महासभा का आयोजन किया गया था जिसमें भडबाइ के अनुयायियों ने भाग नहीं लिया था।

42. निम्नलिखित में से किस स्थान पर प्रथम 'जैन-परिषद' का आयोजन हुआ था? [Uttarakhand P.C.S. (Pre) 2021]

Correct Answer: (a) पाटलिपुत्र
Solution:चंद्रगुप्त मौर्य के शासनकाल में पाटलिपुत्र में प्रथम जैन संगीति आयोजित किया गया, जिसमें श्वेतांबर आगम का संपादन किया गया। चूंकि प्राचीन जैन शास्त्र नष्ट हो गए थे, अतः उन्हें पुनः एकत्र करने के लिए चतुर्थ शताब्दी ईसा पूर्व में इस प्रथम जैन महासभा का आयोजन किया गया था जिसमें भडबाइ के अनुयायियों ने भाग नहीं लिया था।

43. जैन साहित्य से संबंधित निम्नलिखित कथनों को पढ़िए तथा सटीक विकल्प को चुनिए- [Chhattisgarh P.C.S. (Pre) 2020]

कथन I : श्वेतांबर धर्मसूत्र में 12 अंग शामिल हैं।

कथन II : श्वेतांबर परंपरा के अनुसार, इन अंगों का संकलन वल्लभी में आयोजित एक धर्मसभा में किया गया था।

Correct Answer: (d) कथन I सही है, लेकिन कथन II गलत है।
Solution:श्वेतांबर मतानुयायियों ने प्रथम जैन संगीति, जो 310 ईसा पूर्व में पाटलिपुत्र में हुई थी, में 12 अंगों का संकलन किया। दिगंबरों का मानना था कि महावीर की शिक्षाएं या 12 अंगों का ज्ञान लुप्त हो चुका है, इन्होंने इस सभा में भाग नहीं लिया था। अतः कथन I सत्य तथा कथन II असत्य है।

44. निम्न कथनों पर विचार कीजिए- [I.A.S. (Pre) 2003]

1. वर्द्धमान महावीर की माता, लिच्छवी के मुख्य चेटक की पुत्री थीं।

2. गौतम बुद्ध की माता कोलिय राजवंश की राजकुमारी थीं।

3. 23वें तीर्थंकर पार्श्वनाथ बनारस से थे।

इन कथनों में कौन-सा/से सही है/हैं?

Correct Answer: (c) 2 तथा 3
Solution:वर्द्धमान महावीर की माता त्रिशला या विदेहदत्ता वैशाली के लिच्छवी कुल के प्रमुख चेटक की बहन थीं, न कि पुत्री। इसी कारण मातृपक्ष से वह मगध के हर्यंक शासक बिंबिसार तथा अजातशत्रु के निकट संबंधी थे। द्वितीय कथन सही है। 23 वें तीर्थंकर पार्श्वनाथ का जन्म वाराणसी (बनारस) में भगवान महावीर से लगभग 250 वर्ष पूर्व हुआ था। इस प्रकार विकल्प (c) सही उत्तर है।

45. प्राचीन जैन धर्म के संबंध में निम्नलिखित कथनों में से कौन-सा एक सही है? [I.A.S. (Pre) 2004]

Correct Answer: (c) प्रथम शतक ई.पू. में जैन धर्म को कलिंग के राजा खारवेल का समर्थन मिला।
Solution:उपर्युक्त कथनों में केवल विकल्प (c) सत्य है। दक्षिण भारत में जैन धर्म का प्रचार आचार्य भद्रबाहु एवं उनके शिष्यों द्वारा हुआ था। भद्रबाहु के समर्थक दिगंबर कहलाए, इन्होंने पाटलिपुत्र में आयोजित जैन धर्म की प्रथम महासभा में भाग नहीं लिया था। जबकि कलिंग का चेदि वंशीय शासक खारवेल जैन धर्म का अनुयायी था, उसने जैन साधुओं को संरक्षण प्रदान किया और उनके निर्वाह के लिए प्रभूत दान दिए तथा उनके रहने के लिए आरामदायक निवास स्थान बनवाए। उसने भुवनेश्वर के पास उदयगिरि तथा खंडगिरि पहाड़ियों को कटवाकर जैन भिक्षुओं के निवास के लिए गुहा विहार बनवाए थे। जैन धर्म की प्रारंभिक अवस्था में चित्र पूजा या मूर्ति पूजा प्रचलित नहीं थी।

46. निम्नलिखित में से कौन-सा/से कथन जैन सिद्धांत के अनुरूप है/हैं? [I.A.S. (Pre) 2013]

1. कर्म को विनष्ट करने का सुनिश्चित मार्ग तपश्चर्या है।

2. प्रत्येक वस्तु में, चाहे वह सूक्ष्मतम कण हो, आत्मा होती है।

3. कर्म आत्मा का विनाशक है और अवश्य इसका अंत करना चाहिए।

नीचे दिए गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिए।

Correct Answer: (d) 1, 2 और 3
Solution:जैन सिद्धांत के अनुसार, सृष्टि के कण-कण में जीवों का वास है। इस सिद्धांत में कर्म को बंधन का कारण तथा 'सूक्ष्मतत्व भूततत्व' माना गया है, जो जीव में प्रवेश कर उसे नीचे संसार की ओर खींच लाता है। जब कर्म का जीव की ओर प्रवाह रुक जाता है, तो उस अवस्था को 'संवर' कहते हैं तथा जब जीव में पूर्व मौजूद कर्मों का विनाश होने लगता है, तो उस अवस्था को 'निर्जरा' कहते हैं। जैनियों का विश्वास है कि प्रत्येक जीव अपने पूर्व संचित कर्मों के अनुसार ही शरीर धारण करता है, जब जीव से कर्म का अवशेष बिल्कुल समाप्त हो जाता है, तो उस स्थिति को जैन धर्म में 'मोक्ष' कहते हैं। जैन धर्म में मोक्ष के लिए तीन आवश्यक साधन बताए गए हैं, जिन्हें त्रिरत्न (सम्यक् दर्शन, सम्यक् ज्ञान एवं सम्यक् चरित्र) कहा जाता है। महावीर ने मोक्ष के लिए कठोर तपश्चर्या एवं कायाक्लेश पर भी बल दिया है। मोक्ष के पश्चात जीव आवागमन के चक्र से छुटकारा पा जाता है तथा वह 'अनंत चतुष्ट्य' (अनंत ज्ञान, अनंत दर्शन, अनंत वीर्य तथा अनंत सुख) की प्राप्ति कर लेता है।

47. "समाधि मरण" किस दर्शन से संबंधित है? [Chhattisgarh P.C.S. (Pre) 2015]

Correct Answer: (b) जैन दर्शन
Solution:सल्लेखना (समाधि मरण या संथारा) जीवन के अंतिम समय में मृत्यु निकट जानकर स्वेच्छा से अपनाई जाने वाली एक जैन प्रथा है। व्यक्ति को यह लगने लगता है कि वह मृत्यु के करीब है, तो वह खुद खाना-पीना त्याग देता है। इसे दिगंबर जैन शास्त्र के अनुसार समाधि मरण या सल्लेखना कहा जाता है। श्वेतांबर साधना पद्धति में इसे 'संथारा' कहा जाता है।

48. निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिए - [I.A.S. (Pre) 2006]

1. दक्षिण भारत के इक्ष्वाकु शासक बौद्धमत के विरोधात्मक थे।

2. पूर्वी भारत के पाल शासक बौद्धमत के समर्थक थे।

उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?

Correct Answer: (b) केवल 2
Solution:दक्षिण में तृतीय और चतुर्थ शताब्दी ई. के दौरान आंध्र में इक्ष्वाकु वंश का शासन था। इस वंश के सभी शासकों की लगभग सभी रानियां बौद्ध मतावलंबी थीं। इन्होंने नागार्जुनकोंडा में बौद्ध स्मारकों के निर्माण में अपना योगदान दिया था। यद्यपि इक्ष्वाकुओं ने वैदिक धर्म का पालन किया; किंतु इन्होंने साथ ही बौद्ध धर्म का समर्थन भी किया। बंगाल में पाल शासन के दौरान बंगाल महत्वपूर्ण बौद्ध केंद्र के रूप में उभरा। ऐसा पाल वंश द्वारा बौद्ध मत के समर्थन के कारण संभव हुआ।

स्पष्ट है कि कथन (1) गलत है और कथन (2) सही है।

49. 'आजीवक' संप्रदाय के संस्थापक थे- [39th B.P.S.C. (Pre) 1994 & U.P.P.C.S. (Pre) 1996]

Correct Answer: (c) मक्खलिगोसाल
Solution:मक्खलिगोसाल प्रारंभ में महावीर के शिष्य थे, किंतु बाद में मतभेद के चलते इन्होंने महावीर की शिष्यता त्याग दी। विभिन्न स्रोत नंदवच्छ एवं किससंकिच्च नामक आजीवक आचार्यों का उल्लख करते हैं, जो मक्खलिपुत्त गोसाल से पूर्व भी कार्यरत थे। इसका अभिप्राय है। कि गोसाल से पहले भी आजीवक संप्रदाय उपस्थित था। संभवतः इसे सर्वप्रथम लोकप्रियता गोसाल द्वारा दिलाई गई। अतः इन्हें ही परंपरानुसार आजीवक संप्रदाय का प्रवर्तक माना गया। इनका मत 'नियतिवाद' या भाग्यवाद कहा जाता है, जिसके अनुसार संसार की प्रत्येक वस्तु भाग्य द्वारा पूर्व नियंत्रित एवं संचालित होती है।

50. निम्नलिखित में से किसने प्रतिपादित किया कि भाग्य ही सब कुछ निर्धारित करता है, मनुष्य असमर्थ होता है? [U.P.P.C.S. (Pre) 2006]

Correct Answer: (c) आजीवकों ने
Solution:मक्खलिगोसाल प्रारंभ में महावीर के शिष्य थे, किंतु बाद में मतभेद के चलते इन्होंने महावीर की शिष्यता त्याग दी। विभिन्न स्रोत नंदवच्छ एवं किससंकिच्च नामक आजीवक आचार्यों का उल्लख करते हैं, जो मक्खलिपुत्त गोसाल से पूर्व भी कार्यरत थे। इसका अभिप्राय है। कि गोसाल से पहले भी आजीवक संप्रदाय उपस्थित था। संभवतः इसे सर्वप्रथम लोकप्रियता गोसाल द्वारा दिलाई गई। अतः इन्हें ही परंपरानुसार आजीवक संप्रदाय का प्रवर्तक माना गया। इनका मत 'नियतिवाद' या भाग्यवाद कहा जाता है, जिसके अनुसार संसार की प्रत्येक वस्तु भाग्य द्वारा पूर्व नियंत्रित एवं संचालित होती है।