दक्षिण भारत (चोल, चालुक्य, पल्लव एवं संगम युग) (UPPCS)

Total Questions: 50

1. नवीं शताब्दी ई. में निम्नलिखित में से किसके द्वारा चोल साम्राज्य की नींव डाली गई? [R.A.S./R.T.S (Pre) 2016]

Correct Answer: (c) विजयालय
Solution:चोल साम्राज्य की स्थापना विजयालय ने की, जो आरंभ में पल्लवों का एक सामंती सरदार था। उसने 850 ई. के लगभग में तंजौर (वर्तमान तंजावुर) को अपने अधिकार में कर लिया। इस समय पल्लवों एवं पाण्ड्यों में निरंतर संघर्ष चल रहा था। पाण्ड्यों की निर्बल स्थिति का लाभ उठाकर विजयालय ने तंजौर (वर्तमान तंजावुर) पर अधिकार जमा लिया तथा वहां उसने दुर्गा देवी का एक मंदिर बनवाया।

2. चोल वंश का संस्थापक कौन था? [67th B.P.S.C. (Pre) 2022]

Correct Answer: (a) विजयालय
Solution:चोल साम्राज्य की स्थापना विजयालय ने की, जो आरंभ में पल्लवों का एक सामंती सरदार था। उसने 850 ई. के लगभग में तंजौर (वर्तमान तंजावुर) को अपने अधिकार में कर लिया। इस समय पल्लवों एवं पाण्ड्यों में निरंतर संघर्ष चल रहा था। पाण्ड्यों की निर्बल स्थिति का लाभ उठाकर विजयालय ने तंजौर (वर्तमान तंजावुर) पर अधिकार जमा लिया तथा वहां उसने दुर्गा देवी का एक मंदिर बनवाया।

3. निम्नलिखित में से किस मंदिर परिसर में एक भारी-भरकम नंदी की मूर्ति है, जिसे भारत की विशालतम नंदी मूर्ति माना जाता है? [U.P.P.C.S. (Pre) 1999]

Correct Answer: (a) वृहदीश्वर मंदिर
Solution:चोल स्थापत्य के उत्कृष्ट नमूने तंजौर (वर्तमान तंजावुर) के शैव मंदिर, जो राजराजेश्वर या वृहदीश्वर नाम से प्रसिद्ध हैं, का निर्माण राजराज प्रथम के काल में हुआ था। भारत के मंदिरों में सबसे बड़ा तथा लंबा यह मंदिर द्रविड़ शैली का सर्वोत्तम नमूना माना जा सकता है। इसका विशाल प्रांगण 500' × 250' के आकार का है। मंदिर के प्रवेश द्वार पर दोनों ओर दो द्वारपालों की मूर्तियां बनी हैं। इस मंदिर के बहिर्भाग में नंदी की एकाश्मक विशाल मूर्ति बनी है, जिसे भारत की विशालतम नंदी मूर्ति माना जाता है।

4. तंजौर का वृहदीश्वर मंदिर निर्मित हुआ था, शासनकाल में चोल सम्राट- [U.P.P.C.S. (Mains) 2008]

Correct Answer: (b) राजराज प्रथम के
Solution:चोल स्थापत्य के उत्कृष्ट नमूने तंजौर (वर्तमान तंजावुर) के शैव मंदिर, जो राजराजेश्वर या वृहदीश्वर नाम से प्रसिद्ध हैं, का निर्माण राजराज प्रथम के काल में हुआ था। भारत के मंदिरों में सबसे बड़ा तथा लंबा यह मंदिर द्रविड़ शैली का सर्वोत्तम नमूना माना जा सकता है। इसका विशाल प्रांगण 500' × 250' के आकार का है। मंदिर के प्रवेश द्वार पर दोनों ओर दो द्वारपालों की मूर्तियां बनी हैं। इस मंदिर के बहिर्भाग में नंदी की एकाश्मक विशाल मूर्ति बनी है, जिसे भारत की विशालतम नंदी मूर्ति माना जाता है।

5. चोलों का राज्य किस क्षेत्र में फैला था? [U.P.P.C.S. (Pre) 1991]

Correct Answer: (d) कोरोमंडल तट, दक्कन के कुछ भाग
Solution:कृष्णा तथा तुंगभद्रा नदियों से लेकर कुमारी अंतरीप तक का विस्तृत भू-भाग प्राचीन काल में तमिल प्रदेश का निर्माण करता था। इसमें कोरोमंडल तट तथा दक्कन के कुछ भाग यथा-उरैयूर, कावेरीपट्टनम्, तंजावुर आदि चोलों के अधिकार में थे।

6. चोलों की राजधानी थी- [U.P. Lower Sub. (Pre) 2009]

Correct Answer: (d) तंजौर
Solution:प्रश्नगत विकल्पों में चोलों की राजधानी तंजौर (वर्तमान तंजावुर) थी। इसके अतिरिक्त गंगैकोंडचोलपुरम् भी चोलों की राजधानी बनी थी। संगम काल में चोलों की राजधानी उरैयूर थी।

7. निम्नलिखित में कौन चोल प्रशासन की विशेषता थी? [U.P.P.C.S. (Pre) 1995]

Correct Answer: (b) ग्राम प्रशासन की स्वायत्तता
Solution:चोल शासन की सबसे उल्लेखनीय विशेषता वह असाधारण शक्ति तथा क्षमता है, जो स्वायत्तशासी ग्रामीण संस्थाओं के संचालन में परिलक्षित होती है। वस्तुतः इस काल में स्वायत्त शासन पूर्णतया ग्रामों में ही क्रियान्वित किया गया।

8. चोल काल किसके लिए प्रसिद्ध था? [63rd B.P.S.C. (Pre) 2017]

Correct Answer: (a) ग्राम पंचायत (Village Assembly)
Solution:चोल शासन की सबसे उल्लेखनीय विशेषता वह असाधारण शक्ति तथा क्षमता है, जो स्वायत्तशासी ग्रामीण संस्थाओं के संचालन में परिलक्षित होती है। वस्तुतः इस काल में स्वायत्त शासन पूर्णतया ग्रामों में ही क्रियान्वित किया गया।

9. चोल युग प्रसिद्ध था, निम्न के लिए- [R.A.S./R.T.S. (Pre) 1993]

Correct Answer: (b) ग्रामीण सभाएं
Solution:चोल शासन की सबसे उल्लेखनीय विशेषता वह असाधारण शक्ति तथा क्षमता है, जो स्वायत्तशासी ग्रामीण संस्थाओं के संचालन में परिलक्षित होती है। वस्तुतः इस काल में स्वायत्त शासन पूर्णतया ग्रामों में ही क्रियान्वित किया गया।

10. किस दक्षिण भारतीय राज्य में उत्तम ग्राम प्रशासन था? [U.P.P.C.S. (Pre) 1991]

Correct Answer: (c) चोल
Solution:चोल शासन की सबसे उल्लेखनीय विशेषता वह असाधारण शक्ति तथा क्षमता है, जो स्वायत्तशासी ग्रामीण संस्थाओं के संचालन में परिलक्षित होती है। वस्तुतः इस काल में स्वायत्त शासन पूर्णतया ग्रामों में ही क्रियान्वित किया गया।