दिए गए गद्यांश को पढ़े और दिए गए प्रश्न के उत्तर दें।
द्विवेदी-युगीन गद्य का पोषण अधिकतर पत्रकारिता और निबंध-कला से हुआ है। इस युग में आकर निबंध केवल साहित्यिक शैली का निदर्शन न होकर गंभीर चिंतन का स्वतंत्र कला-माध्यम बना। उत्तरोत्तर प्रखर होती राजनैतिक चेतना जहाँ तक सीधे रूप में नियम-कानून के भीतर व्यक्त की जा सकती थी, वहाँ तक तो पत्रकारिता में उसका समावेश होता था। उससे आगे गहरे व्यंग्य और निर्भीक कटाक्ष के रूप में वह निबंध-कला में अभिव्यक्ति पाती थीं। बालमुकुंद गुप्त, माधवप्रसाद मिश्र, चंद्रधर शर्मा गुलेरी, गुलाबराय, श्यामसुंदरदास इस युग के प्रमुख निबंधकार हैं। श्यामसुंदरदास की ख्याति खड़ीबोली हिंदी के आदि व्यवस्थापक के रूप में हैं।
महावीरप्रसाद द्विवेदी यदि 'सरस्वती' पत्रिका और नये लेखन के संरक्षण-संशोधन के लिए जाने जाते हैं, तो श्यामसुंदरदास विश्वविद्यालयों में हिंदी शिक्षण व्यवस्था और काशी की संस्था नागरी प्रचारिणी सभा करती थी। नागरी प्रचारिणी सभा की स्थापना 1893 में काशी में हुई संस्थापक थे श्यामसुंदरदास, रामनारायण मिश्र और ठाकुर शिवकुमार सिंह। सभा के विविध कार्यकलाप में से तीन आयोजन विशिष्ट महत्व और दूरगामी प्रभाव के सिद्ध हुए। हिंदी शब्द सागर, जिसकी प्रस्तावना रूप में हिंदी साहित्य का इतिहास संक्षिप्त रूप में लिखा गया और हिंदी भाषा का व्याकरण। इन योजनाओं के पीछे श्यामसुंदरदास का हाथ कहा जा सकता है। कोश, इतिहास और व्याकरण लेखन ने हिंदी को उसके स्वरूप का अभिज्ञात दिया, जिस प्रक्रिया में तीन अपने ढंग के विशिष्ट व्यक्त्विों का उदय हुआ कोशकार रामचंद्र वर्मा, इतिहासदास रामचंद्र शुक्ल और वैयाकरण कामताप्रसाद गुरू इनके वैदुषिक कार्यकलाप के पीछे श्यामसुंदरदास की प्रेरणा वैसे ही थी जैसे मैथिलीशरण गुप्त, प्रेमचंद और निराला की रचनात्मकता के पीछे महावीरप्रसाद द्विवेदी की।
Correct Answer: (b) श्यामसुंदरदास को
Solution:गद्यांश के अनुसार खड़ी बोली हिंदी के आदि व्यवस्थापक के रूप में श्यामसुंदरदास जी को मान्यता दी गयी है। शेष विकल्प असंगत हैं।