निर्देश:
दिए गए गद्यांश को ध्यान से पढ़ें और प्रश्न के उत्तर दें।
मनुष्य उत्पन्न प्रिय होते हैं। उसका एकमात्र उद्देश्य आनंद प्राप्ति है। यह तो सभी जानते हैं कि मनुष्य अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए प्रयत्न करता रहता है। आवश्यकताओं की पूर्ति होने पर सभी को सुख होता है। वह सुख और आनंद का इस आनंद से बड़ा अंतर है। आवश्यकता आपूर्ति करने पर उससे यह प्रकट होता है कि हमें किसी बात की कमी थी। मनुष्य-जीवन ही ऐसा है कि वह किसी भी अवस्था में यह अनुभव नहीं करता कि अब उसे किसी और कोई आवश्यकता नहीं रह गई है। एक के बाद दूसरी वस्तु की चिंता उसे सताती ही रहती है। इसलिए किसी एक आवश्यकता की पूर्ति से जो सुख होता है, वह अंततः बंधन ही होता है। क्योंकि दूसरी आवश्यकता उत्पन्न हो जाती है। उससे बड़ा किसी बात की आवश्यकता का अनुभव नहीं करता यह आनंद जीवन का आनंद है, बंधन नहीं। उन दिनों में जब कोई भी आवश्यकता की पूर्ति का विचार गौरव और सम्मान की बात मानी जाती है, उन दिनों में उच्छृंखलता आ जाती है, स्वच्छंदता आ जाती है। उन रोज़ हमारी दिनचर्या बिल्कुल एक प्रकार की हो जाती है। हम खाने, पीने, सोने, पहनने की चिंता से मुक्त होकर अनुभव करते हैं कि हम स्वच्छा आनंद पा रहे हैं।
Correct Answer: (b) उत्सव का महत्व
Solution:उपर्युक्त गद्यांश का उचित शीर्षक 'उत्सव का महत्व' होगा।
शेष विकल्प असंगत हैं।