Solution:रति भाव से 'श्रृंगार रस' की निष्पत्ति होती है।श्रृंगार रस-श्रृंगार रस को रसराज कहा जाता है। श्रृंगार रस का स्थायी भाव 'रति' है। इसके दो भेद होते हैं।
1. संयोग श्रृंगार- जहाँ नायक और नायिकाओं के मिलन, दर्शन का वर्णन हो।
जैसे - बतरस लालच लाल की मुरली धरी लुकाए।
साँह करे भौंहनि हँसे, देन कहे नटि जाय।।
2. वियोग श्रृंगार- जहाँ नायक और नायिकाओं के विरह या बिछुड़न का वर्णन हो।
जैसे - हे खग मृग, हे मधुकर श्रेणी!
तुम देखी सीता मृग नैनी ।।