प्रेस का कारण बहुत कुछ अनिर्दिष्ट और अज्ञात होता है; पर श्रद्धा का कारण निर्दिष्ट और ज्ञात होता है। कभी-कभी केवल एक साथ रहते-रहते दो प्राणियों में यह भाव उत्पन्न हो जाता है कि वे बराबर साथ रहे हैं; उनका साथ कभी ना छूटे। प्रेमी प्रिय के संपूर्ण जीवन-क्रम के सतत साक्षात्कार का अभिलाषी होता है। वह उसका उठना, बैठना, चलना-फिरना, सोना, खाना-पीना सब कुछ देखना चाहता है। संसार में बहुत से लोग उठते-बैठते, चलते फिरते हैं, पर सबका उठना-बैठना, चलना-फिरना उसको वैसा अच्छा नहीं लगता। प्रेमी प्रिय के जीवन को अपने जीवन से मिलाकर एक निराला मिश्रण तैयार करना चाहता है। यह दो से एक करना चाहता है। सारांश यह है कि श्रद्धा में दृष्टि पहले कर्मों पर से होती हुई श्रद्धेय तक पहुँचती है और प्रीत में प्रिय पर से होती हुई उसके कर्मों आदि पर जाती है। एक में व्यक्ति को कर्मों द्वारा मनोहरता प्राप्त होती है; दूसरे में कर्मों को व्यक्ति-द्वारा। एक में कर्म प्रधान है, दूसरे में व्यक्ति।
Correct Answer: (a) सतत साक्षात्कार का अभिलाषी
Solution:उपर्युक्त गद्यांश के अनुसार, प्रेमी प्रिय के संपूर्ण जीवन- क्रम के 'सतत् साक्षात्कार का अभिलाषी' होता है। वह उसका उठना, बैठना, चलना-फिरना, सोना, खाना-पीना सब कुछ देखना चाहता है।