दिल्ली अधीनस्थ सेवा चयन बोर्ड परीक्षा, 2023 घरेलू विज्ञान शिक्षक 6-07-2023 (Shift-II)

Total Questions: 100

91. 'सत्याग्रह' का सही संधि विच्छेद क्या है?

Correct Answer: (d) सत्य आग्रह
Solution:'सत्याग्रह' का सही संधि-विच्छेद 'सत्य + आग्रह' है, इसमे दीर्घ स्वर संधि है।

दीर्घ स्वर संधि - यदि अ, आ, इ, ई, उ, ऊ और ऋ के बाद वे ही ह्रस्व या दीर्घ स्वर आये, तो दोनों मिलकर क्रमशः आ, ई, ऊ और ऋ हो जाते हैं।

जैसे -

विद्या + आलय = विद्यालय

महा + आशय महाशय

92. महेंद्र भला करने पर भी दुष्टता करता है। वाक्य के रेखांकित अंश को किस लोकोक्ति से प्रतिस्थापित किया जा सकता है?

Correct Answer: (c) गोद में बैठकर आँख में उँगली
Solution:दिये गये वाक्य के रेखांकित अंश 'भला करने पर भी दुष्टता' को 'गोद में बैठकर आँख में उँगली' लोकोक्ति से प्रतिस्थापित किया जा सकता है।

93. 'परिष्कार' का सही संधि विच्छेद कौन सा है?

Correct Answer: (d) परिः + कार
Solution:'परिष्कार' का सही संधि-विच्छेद 'परि: कार' है। इसमें विसर्ग संधि है। विसर्ग के साथ स्वर या व्यंजन के मेल से जो विकार होता है, उसे विसर्ग संधि कहते हैं।

जैसे- निर्विकार निः+ विकार

94. कार्य की सफलता हेतु बहुत प्रयास करना पड़ा। वाक्य के रेखांकित अंश को प्रतिस्थापित करने के लिए उचित मुहावरा कौन सा है?

Correct Answer: (a) भागीरथ प्रयत्न
Solution:दिये गये वाक्य के रेखांकित अंश 'बहुत प्रयास' को प्रतिस्थपित करने के लिए उचित मुहावरा 'भागीरथ प्रयत्न' होगा। वाक्य प्रयोग भूवैज्ञानिकों एवं इंजीनियरों ने भागीरथ प्रयत्न करके टिहरी बाँध का निर्माण कार्य सफलता पूर्वक किया।

95. हमेशा लड़ने को तैयार होना अच्छी बात नहीं है। वाक्य के रेखांकित अंश को प्रतिस्थापित करने के लिए उचित मुहावरा कौन सा है?

Correct Answer: (b) लंगर-लंगोट कसना
Solution:दिये गये वाक्य के रेखांकित अंश 'लड़ने को तैयार होना' को प्रतिस्थापित करने के लिए उचित मुहावरा 'लंगर-लंगोट कसना' होगा।

96. 'शल्य चिकित्सा' का अर्थ है-

निर्देशः (96-100): उपरोक्त गद्यांश के आधार पर निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए-

ऋग्वैदिक काल में 'यक्ष्म' का उल्लेख सामान्य रूप से किसी भी व्याधि के लिए हुआ प्रतीत होता है। चिकित्सक का उल्लेख आदर के साथ किया गया है। अश्विनों को दिव्य चिकित्सक बताया गया है। उनके द्वारा विश्पला के कटे पैर के स्थान पर लोहे का पैर लगाए जाने की कथा के आधार पर यह अनुमान लगाया गया है कि ऋग्वैदिक काल में शल्य चिकित्सा अस्तित्व में आ गई थी। व्याधियों का उपचार पानी तथा मन्त्रोच्चार के साथ विभिन्न जड़ी बूटियों से भी किया जाता था। अथर्ववेद में 'तक्मन्' नामक ज्वर के लक्षणों की चर्चा है। अन्य व्याधियों में क्षय, अतिसार, मरोड़, व्रण, कण्ठमाला स्फीति, पीत रोग, जरा, हड्डी टूटना, सर्पदंश, कुष्टरोग, पागलपन उल्लिखित हैं। रक्त का प्रवाह रोकने के लिए बालू की पोटली का प्रयोग होता था। शांखायन ब्राह्मण के अनुसार ऋतुओं के परिवर्तन के अवसर पर व्याधियाँ अधिक होती हैं। उपनिषद् व सूत्र काल में बच्चों को होने वाली व्याधियों में कुमार (अपस्मार-मिरगी) तथा शंख का उल्लेख मिलता है। वैदिक काल में सफाई तथा स्वास्थ्य विज्ञान पर विशेष बल दिया गया है।

Correct Answer: (b) चीर-फाड़ से इलाज
Solution:उपर्युक्त गद्यांश के अनुसार शल्य चिकित्सा का अर्थ 'चीर-फाड़ से इलाज' है। ऋग्वैदिक काल में अश्विनों द्वारा विश्पला के कटे पैर के स्थान पर लोहे का पैर लगाए जाने की कथा के आधार पर यह अनुमान लगया गया है कि ऋग्वैदिक काल में शल्य चिकित्सा अस्तित्व में आ गई थी।

97. गद्यांश के संदर्भ में कौन सा कथन गलत है?

निर्देशः (96-100): उपरोक्त गद्यांश के आधार पर निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए-

ऋग्वैदिक काल में 'यक्ष्म' का उल्लेख सामान्य रूप से किसी भी व्याधि के लिए हुआ प्रतीत होता है। चिकित्सक का उल्लेख आदर के साथ किया गया है। अश्विनों को दिव्य चिकित्सक बताया गया है। उनके द्वारा विश्पला के कटे पैर के स्थान पर लोहे का पैर लगाए जाने की कथा के आधार पर यह अनुमान लगाया गया है कि ऋग्वैदिक काल में शल्य चिकित्सा अस्तित्व में आ गई थी। व्याधियों का उपचार पानी तथा मन्त्रोच्चार के साथ विभिन्न जड़ी बूटियों से भी किया जाता था। अथर्ववेद में 'तक्मन्' नामक ज्वर के लक्षणों की चर्चा है। अन्य व्याधियों में क्षय, अतिसार, मरोड़, व्रण, कण्ठमाला स्फीति, पीत रोग, जरा, हड्डी टूटना, सर्पदंश, कुष्टरोग, पागलपन उल्लिखित हैं। रक्त का प्रवाह रोकने के लिए बालू की पोटली का प्रयोग होता था। शांखायन ब्राह्मण के अनुसार ऋतुओं के परिवर्तन के अवसर पर व्याधियाँ अधिक होती हैं। उपनिषद् व सूत्र काल में बच्चों को होने वाली व्याधियों में कुमार (अपस्मार-मिरगी) तथा शंख का उल्लेख मिलता है। वैदिक काल में सफाई तथा स्वास्थ्य विज्ञान पर विशेष बल दिया गया है।

Correct Answer: (c) मौसम बदलने पर बीमारियाँ कम होती थीं।
Solution:उपर्युक्त गद्यांश में उल्लिखित शांखायन ब्राह्मण के अनुसार ऋतुओं के परिवर्तन के अवसर पर व्याधियाँ होती है। चिकित्सक का उल्लेख आदर के साथ किया गया है तथा वैदिक काल मे सफाई पर विशेष बल दिया गया था। अतः विकल्प (c) असत्य है।

98. गद्यांश का सर्वाधिक उपयुक्त शीर्षक कौन सा है?

निर्देशः (96-100): उपरोक्त गद्यांश के आधार पर निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए-

ऋग्वैदिक काल में 'यक्ष्म' का उल्लेख सामान्य रूप से किसी भी व्याधि के लिए हुआ प्रतीत होता है। चिकित्सक का उल्लेख आदर के साथ किया गया है। अश्विनों को दिव्य चिकित्सक बताया गया है। उनके द्वारा विश्पला के कटे पैर के स्थान पर लोहे का पैर लगाए जाने की कथा के आधार पर यह अनुमान लगाया गया है कि ऋग्वैदिक काल में शल्य चिकित्सा अस्तित्व में आ गई थी। व्याधियों का उपचार पानी तथा मन्त्रोच्चार के साथ विभिन्न जड़ी बूटियों से भी किया जाता था। अथर्ववेद में 'तक्मन्' नामक ज्वर के लक्षणों की चर्चा है। अन्य व्याधियों में क्षय, अतिसार, मरोड़, व्रण, कण्ठमाला स्फीति, पीत रोग, जरा, हड्डी टूटना, सर्पदंश, कुष्टरोग, पागलपन उल्लिखित हैं। रक्त का प्रवाह रोकने के लिए बालू की पोटली का प्रयोग होता था। शांखायन ब्राह्मण के अनुसार ऋतुओं के परिवर्तन के अवसर पर व्याधियाँ अधिक होती हैं। उपनिषद् व सूत्र काल में बच्चों को होने वाली व्याधियों में कुमार (अपस्मार-मिरगी) तथा शंख का उल्लेख मिलता है। वैदिक काल में सफाई तथा स्वास्थ्य विज्ञान पर विशेष बल दिया गया है।

Correct Answer: (c) वैदिककालीन स्वास्थ्य
Solution:उपर्युक्त गद्यांश के अनुसार सर्वाधिक उपयुक्त शीर्षक 'वैदिककालीन स्वास्थ्य' है।

99. 'अथर्ववेद' में किस ज्वर के लक्षणों का जिक्र है?

निर्देशः (96-100): उपरोक्त गद्यांश के आधार पर निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए-

ऋग्वैदिक काल में 'यक्ष्म' का उल्लेख सामान्य रूप से किसी भी व्याधि के लिए हुआ प्रतीत होता है। चिकित्सक का उल्लेख आदर के साथ किया गया है। अश्विनों को दिव्य चिकित्सक बताया गया है। उनके द्वारा विश्पला के कटे पैर के स्थान पर लोहे का पैर लगाए जाने की कथा के आधार पर यह अनुमान लगाया गया है कि ऋग्वैदिक काल में शल्य चिकित्सा अस्तित्व में आ गई थी। व्याधियों का उपचार पानी तथा मन्त्रोच्चार के साथ विभिन्न जड़ी बूटियों से भी किया जाता था। अथर्ववेद में 'तक्मन्' नामक ज्वर के लक्षणों की चर्चा है। अन्य व्याधियों में क्षय, अतिसार, मरोड़, व्रण, कण्ठमाला स्फीति, पीत रोग, जरा, हड्डी टूटना, सर्पदंश, कुष्टरोग, पागलपन उल्लिखित हैं। रक्त का प्रवाह रोकने के लिए बालू की पोटली का प्रयोग होता था। शांखायन ब्राह्मण के अनुसार ऋतुओं के परिवर्तन के अवसर पर व्याधियाँ अधिक होती हैं। उपनिषद् व सूत्र काल में बच्चों को होने वाली व्याधियों में कुमार (अपस्मार-मिरगी) तथा शंख का उल्लेख मिलता है। वैदिक काल में सफाई तथा स्वास्थ्य विज्ञान पर विशेष बल दिया गया है।

Correct Answer: (a) तक्मन्
Solution:उपर्युक्त गद्यांश के अनुसार अथर्ववेद में 'तक्मन्' नामक ज्वर के लक्षणों की चर्चा है। उपनिषद व सूत्रकाल में बच्चों को होने वाली व्याधियों में कुमार (अपस्मार-मिरगी) तथा शंख का उल्लेख मिलता है।

100. 'व्याधि' का आशय है-

निर्देशः (96-100): उपरोक्त गद्यांश के आधार पर निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए-

ऋग्वैदिक काल में 'यक्ष्म' का उल्लेख सामान्य रूप से किसी भी व्याधि के लिए हुआ प्रतीत होता है। चिकित्सक का उल्लेख आदर के साथ किया गया है। अश्विनों को दिव्य चिकित्सक बताया गया है। उनके द्वारा विश्पला के कटे पैर के स्थान पर लोहे का पैर लगाए जाने की कथा के आधार पर यह अनुमान लगाया गया है कि ऋग्वैदिक काल में शल्य चिकित्सा अस्तित्व में आ गई थी। व्याधियों का उपचार पानी तथा मन्त्रोच्चार के साथ विभिन्न जड़ी बूटियों से भी किया जाता था। अथर्ववेद में 'तक्मन्' नामक ज्वर के लक्षणों की चर्चा है। अन्य व्याधियों में क्षय, अतिसार, मरोड़, व्रण, कण्ठमाला स्फीति, पीत रोग, जरा, हड्डी टूटना, सर्पदंश, कुष्टरोग, पागलपन उल्लिखित हैं। रक्त का प्रवाह रोकने के लिए बालू की पोटली का प्रयोग होता था। शांखायन ब्राह्मण के अनुसार ऋतुओं के परिवर्तन के अवसर पर व्याधियाँ अधिक होती हैं। उपनिषद् व सूत्र काल में बच्चों को होने वाली व्याधियों में कुमार (अपस्मार-मिरगी) तथा शंख का उल्लेख मिलता है। वैदिक काल में सफाई तथा स्वास्थ्य विज्ञान पर विशेष बल दिया गया है।

Correct Answer: (b) रोग
Solution:'व्याधि' का आशय 'रोग' होता है। 'व्याधि' के अन्य अर्थ है- बीमारी, अस्वस्थता, रूग्णता आदि।