निर्देशः (96-100): उपरोक्त गद्यांश के आधार पर निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए-
ऋग्वैदिक काल में 'यक्ष्म' का उल्लेख सामान्य रूप से किसी भी व्याधि के लिए हुआ प्रतीत होता है। चिकित्सक का उल्लेख आदर के साथ किया गया है। अश्विनों को दिव्य चिकित्सक बताया गया है। उनके द्वारा विश्पला के कटे पैर के स्थान पर लोहे का पैर लगाए जाने की कथा के आधार पर यह अनुमान लगाया गया है कि ऋग्वैदिक काल में शल्य चिकित्सा अस्तित्व में आ गई थी। व्याधियों का उपचार पानी तथा मन्त्रोच्चार के साथ विभिन्न जड़ी बूटियों से भी किया जाता था। अथर्ववेद में 'तक्मन्' नामक ज्वर के लक्षणों की चर्चा है। अन्य व्याधियों में क्षय, अतिसार, मरोड़, व्रण, कण्ठमाला स्फीति, पीत रोग, जरा, हड्डी टूटना, सर्पदंश, कुष्टरोग, पागलपन उल्लिखित हैं। रक्त का प्रवाह रोकने के लिए बालू की पोटली का प्रयोग होता था। शांखायन ब्राह्मण के अनुसार ऋतुओं के परिवर्तन के अवसर पर व्याधियाँ अधिक होती हैं। उपनिषद् व सूत्र काल में बच्चों को होने वाली व्याधियों में कुमार (अपस्मार-मिरगी) तथा शंख का उल्लेख मिलता है। वैदिक काल में सफाई तथा स्वास्थ्य विज्ञान पर विशेष बल दिया गया है।
Correct Answer: (b) चीर-फाड़ से इलाज
Solution:उपर्युक्त गद्यांश के अनुसार शल्य चिकित्सा का अर्थ 'चीर-फाड़ से इलाज' है। ऋग्वैदिक काल में अश्विनों द्वारा विश्पला के कटे पैर के स्थान पर लोहे का पैर लगाए जाने की कथा के आधार पर यह अनुमान लगया गया है कि ऋग्वैदिक काल में शल्य चिकित्सा अस्तित्व में आ गई थी।