दिल्ली सल्तनत : गुलाम वंश (UPPCS)

Total Questions: 37

1. गुलाम वंश का संस्थापक कौन था? [U.P. P.C.S. (Pre) 1990]

Correct Answer: (d) कुतुबुद्दीन ऐबक
Note:

1206 से 1290 ई. तक दिल्ली सल्तनत के सुल्तान गुलाम वंश के सुल्तानों के नाम से विख्यात हुए, जिसका संस्थापक कुतुबुद्दीन ऐबक था। यद्यपि वे एक वंश के नहीं थे, वे सभी तुर्क थे तथा उनके वंश पृथक-पृथक थे। साथ ही, वे स्वतंत्र माता-पिता की संतान थे। अतः इन सुल्तानों को गुलाम वंश के सुल्तान कहने के स्थान पर प्रारंभिक तुर्क सुल्तान या दिल्ली के 'ममलूक सुल्तान' कहना अधिक उपयुक्त है।

 

2. गुलाम वंश का प्रथम शासक कौन था? [47th B.P.S.C. (Pre) 2005 53rd to 55th B.P.S.C. (Pre) 2011]

Correct Answer: (b) कुतुबुद्दीन ऐबक
Note:

1206 से 1290 ई. तक दिल्ली सल्तनत के सुल्तान गुलाम वंश के सुल्तानों के नाम से विख्यात हुए, जिसका संस्थापक कुतुबुद्दीन ऐबक था। यद्यपि वे एक वंश के नहीं थे, वे सभी तुर्क थे तथा उनके वंश पृथक-पृथक थे। साथ ही, वे स्वतंत्र माता-पिता की संतान थे। अतः इन सुल्तानों को गुलाम वंश के सुल्तान कहने के स्थान पर प्रारंभिक तुर्क सुल्तान या दिल्ली के 'ममलूक सुल्तान' कहना अधिक उपयुक्त है।

3. दिल्ली सल्तनत का कौन-सा सुल्तान 'लाख बख्श' के नाम से जाना जाता है? [Jharkhand P.C.S. (Pre) 2003]

Correct Answer: (d) कुतुबुद्दीन ऐबक
Note:

अपनी उदारता के कारण कुतुबुद्दीन ऐबक इतना अधिक दान करता था कि उसे 'लाख बख्श' (लाखों का दान देने वाला) के नाम से पुकारा गया। फरिश्ता ने लिखा है कि 'यदि व्यक्ति किसी की दानशीलता की प्रशंसा करते थे, तो उसे अपने युग का ऐबक पुकारते थे।' इसकी एक उपाधि 'कुरान ख्वां' भी थी। ऐबक को साहित्य से अनुराग था और स्थापत्य कला में रुचि थी। तत्कालीन विद्वान हसन निजामी और फक्र-ए-मुदब्बिर को उसका संरक्षण प्राप्त था। उन्होंने ऐबक को अपने ग्रंथ समर्पित किए थे। ऐबक ने दिल्ली में 'कुव्वत-उल-इस्लाम' और अजमेर में 'अढ़ाई दिन का झोपड़ा' नामक मस्जिदों का निर्माण कराया था। उसने दिल्ली में स्थित 'कुतुबमीनार' का निर्माण कार्य प्रारंभ किया जिसे इल्तुतमिश ने पूरा करवाया। ज्ञातव्य है कि ऐबक ने सुल्तान की उपाधि नहीं ली थी; किंतु प्रश्नानुसार विकल्प (d) सही उत्तर है।

 

4. 'ढाई दिन का झोपड़ा' क्या है? [56th to 59th B.P.S.C. (Pre) 2015]

Correct Answer: (a) मस्जिद
Note:

अपनी उदारता के कारण कुतुबुद्दीन ऐबक इतना अधिक दान करता था कि उसे 'लाख बख्श' (लाखों का दान देने वाला) के नाम से पुकारा गया। फरिश्ता ने लिखा है कि 'यदि व्यक्ति किसी की दानशीलता की प्रशंसा करते थे, तो उसे अपने युग का ऐबक पुकारते थे।' इसकी एक उपाधि 'कुरान ख्वां' भी थी। ऐबक को साहित्य से अनुराग था और स्थापत्य कला में रुचि थी। तत्कालीन विद्वान हसन निजामी और फक्र-ए-मुदब्बिर को उसका संरक्षण प्राप्त था। उन्होंने ऐबक को अपने ग्रंथ समर्पित किए थे। ऐबक ने दिल्ली में 'कुव्वत-उल-इस्लाम' और अजमेर में 'अढ़ाई दिन का झोपड़ा' नामक मस्जिदों का निर्माण कराया था। उसने दिल्ली में स्थित 'कुतुबमीनार' का निर्माण कार्य प्रारंभ किया जिसे इल्तुतमिश ने पूरा करवाया। ज्ञातव्य है कि ऐबक ने सुल्तान की उपाधि नहीं ली थी; किंतु प्रश्नानुसार विकल्प (d) सही उत्तर है।

 

5. कुव्वत-उल-इस्लाम मस्जिद तथा अढ़ाई दिन का झोपड़ा क्रमशः स्थित हैं- [Jharkhand P.C.S. (Pre) 2021]

Correct Answer: (d) दिल्ली एवं अजमेर में
Note:

अपनी उदारता के कारण कुतुबुद्दीन ऐबक इतना अधिक दान करता था कि उसे 'लाख बख्श' (लाखों का दान देने वाला) के नाम से पुकारा गया। फरिश्ता ने लिखा है कि 'यदि व्यक्ति किसी की दानशीलता की प्रशंसा करते थे, तो उसे अपने युग का ऐबक पुकारते थे।' इसकी एक उपाधि 'कुरान ख्वां' भी थी। ऐबक को साहित्य से अनुराग था और स्थापत्य कला में रुचि थी। तत्कालीन विद्वान हसन निजामी और फक्र-ए-मुदब्बिर को उसका संरक्षण प्राप्त था। उन्होंने ऐबक को अपने ग्रंथ समर्पित किए थे। ऐबक ने दिल्ली में 'कुव्वत-उल-इस्लाम' और अजमेर में 'अढ़ाई दिन का झोपड़ा' नामक मस्जिदों का निर्माण कराया था। उसने दिल्ली में स्थित 'कुतुबमीनार' का निर्माण कार्य प्रारंभ किया जिसे इल्तुतमिश ने पूरा करवाया। ज्ञातव्य है कि ऐबक ने सुल्तान की उपाधि नहीं ली थी; किंतु प्रश्नानुसार विकल्प (d) सही उत्तर है।

6. निम्नलिखित में से किसने प्रसिद्ध कुतुबमीनार के निर्माण में योगदान नहीं दिया? [U.P.P.C.S. (Mains) 2013]

Correct Answer: (c) ग्यासुद्दीन तुगलक
Note:

कुतुबमीनार का निर्माण कुतुबुद्दीन ऐबक ने आरंभ किया और इसका निर्माण कार्य इल्तुतमिश के काल में पूरा हुआ। फिरोज शाह तुगलक के शासनकाल में इसकी चौथी मंजिल को काफी हानि पहुंची थी, जिस पर फिरोज ने चौथी मंजिल के पुनर्निर्माण के साथ-साथ पांचवीं मंजिल का भी निर्माण करवाया। ग्यासुद्दीन तुगलक ने इसके निर्माण में कोई योगदान नहीं दिया था।

7. कुतुबमीनार किसके द्वारा पूरा किया गया था? [67th B.P.S.C. (Pre) 2022]

Correct Answer: (a) इल्तुतमिश
Note:

कुतुबमीनार का निर्माण कुतुबुद्दीन ऐबक ने आरंभ किया और इसका निर्माण कार्य इल्तुतमिश के काल में पूरा हुआ। फिरोज शाह तुगलक के शासनकाल में इसकी चौथी मंजिल को काफी हानि पहुंची थी, जिस पर फिरोज ने चौथी मंजिल के पुनर्निर्माण के साथ-साथ पांचवीं मंजिल का भी निर्माण करवाया। ग्यासुद्दीन तुगलक ने इसके निर्माण में कोई योगदान नहीं दिया था।

8. कुतुबुद्दीन ऐबक की राजधानी थी- [41 B.P.S.C. (Pre) 1996 U.P. P.C.S. (Pre) 1990]

Correct Answer: (a) लाहौर
Note:

मुहम्मद गोरी की मृत्यु (1206) के बाद लाहौर के विशिष्ट जनों एवं अमीरों ने कुतुबुद्दीन ऐबक को सार्वभौम शक्तियां ग्रहण करने के लिए आमंत्रित किया। अतः उसने लाहौर जाकर सत्ता ग्रहण की तथा 1206 ई. में औपचारिक रूप से सिंहासनारूढ़ हुआ। ऐबक की राजधानी लाहौर थी। गद्दी पर बैठने के बाद ऐबक के सामने सबसे बड़ी कठिनाई गोरी के दास और उसके राज्य के उत्तराधिकारी ताजुद्दीन यल्दौज और नासिरुद्दीन कुबाचा की तरफ से थी। ऐबक ने अपनी बहन की शादी कुबाचा से कर उसे अपने पक्ष में कर लिया; किंतु यल्दौज की तरफ से खतरा बना रहा। यही कारण था कि ऐबक सदा लाहौर में ही रहा। उसे दिल्ली आने का कभी अवसर नहीं मिला।

 

9. सुल्तान कुतुबुद्दीन ऐबक की मृत्यु कैसे हुई? [I.A.S. (Pre) 2003]

Correct Answer: (d) चौगान की क्रीड़ा के दौरान अश्व से गिरने के पश्चात उनकी मृत्यु हो गई
Note:

कुतुबुद्दीन ऐबक की मृत्यु चौगान के खेल (आधुनिक पोलो की भांति का एक खेल) में घोड़े से गिरने के दौरान 1210 ई. में हुई थी। उसे लाहौर में दफनाया गया। उसे गुलाम वंश का संस्थापक माना जाता है।

10. निम्नलिखित में से किसने दिल्ली को सल्तनत की राजधानी के रूप में स्थापित किया था? [U. P. P. C. S. (Spl.) (Mains) 2004 U. P. P. C. S. (Mains) 2012]

Correct Answer: (b) इल्तुतमिश
Note:

इल्तुतमिश (1211-1236 ई.) ने दिल्ली को सल्तनत की राजधानी के रूप में स्थापित किया था। इससे पूर्व ऐबक ने लाहौर से ही शासन किया था। इल्तुतमिश ने ही भारत में सल्तनत काल में सर्वप्रथम शुद्ध अरबी सिक्के चलाए थे। सल्तनत युग के दो महत्वपूर्ण सिक्के चांदी का टंका (175 ग्रेन) और तांबे का जीतल उसी ने आरंभ किए तथा सिक्कों पर टकसाल का नाम लिखवाने की परंपरा शुरू की।