Solution:बहिर्गमन अथवा निकासी की राष्ट्रवादी परिभाषा का तात्पर्य भारत से धन-संपत्ति एवं माल का इंग्लैंड में हस्तांतरण था, जिसके बदले में भारत को इसके समतुल्य कोई भी आर्थिक, वाणिज्यिक या प्रतिलाभ नहीं होता था। ब्रिटिश काल में सामान्यतः भारत का व्यापार संतुलन अनुकूल था; क्योंकि इस दौरान आयात की तुलना में अधिक निर्यात होता था। ईस्ट इंडिया कंपनी के धन निष्कासन के स्रोत थे- व्यापारिक एकाधिकार से प्राप्त लाभ, कंपनी के कर्मचारियों के वेतन एवं पेंशन, कंपनी के निवेशकों को दिया जाने वाला लाभांश आदि। कंपनी द्वारा जो पैसा इंग्लैंड भेजा जाता था वही पैसा पुनः भारत में विदेशी ऋण तथा पूंजी निवेश के रूप में प्राप्त होता था। परंतु इस पूंजी निवेश का उद्देश्य देश का विकास नहीं बल्कि भारतीय साधनों का अधिकाधिक शोषण था। 1813 ई. के पश्चात इस आर्थिक निकास ने 'अप्रतिफल' निर्यात का रूप धारण कर लिया। वर्ष 1914 के पहले भारत में अंग्रेजी पूंजी निवेश केवल उन आर्थिक उपरिसाधनों में लगाए गए; जैसे- रेलवे, सड़क, व्यापारिक जहाज तथा खनिज उद्योग (कोयला एवं सोना) एवं वित्तीय संस्थाओं (बैंक, बीमा एवं वित्तीय निगम) में जो अंग्रेजी उद्योग के अनुपूरक थे और इनमें भारतीय औद्योगिक विकास के लिए कोई स्थान नहीं था। दादाभाई नौरोजी ने धन के निकास को 'अनिष्टों का अनिष्ट' (evil of all evils) की संज्ञा दी और इसे भारत की निर्धनता का मुख्य कारण बताया। अतः स्पष्ट है कि (A) तथा (R) दोनों सही हैं। तथा (R), (A) की सही व्याख्या है।