वैदिक काल (UPPCS) (Part-2)

Total Questions: 55

21. ऋग्वेद में सर्वाधिक संख्या में मंत्र संबंधित हैं- [U.P.P.C.S. (Mains) 2010]

Correct Answer: (a) अग्नि से
Solution:ऋग्वेद में सर्वाधिक संख्या में मंत्र इंद्र को समर्पित हैं; किंतु वह इस प्रश्न के विकल्प में नहीं है। दूसरे स्थान पर अग्नि को 200 सूक्त समर्पित हैं। अतः सही उत्तर विकल्प (a) है।

22. ऋग्वेद के सर्वाधिक मंत्र किस वैदिक देवता को समर्पित हैं? [Uttarakhand P.C.S. (Pre) 2021]

Correct Answer: (b) इंद्र
Solution:ऋग्वेद में सर्वाधिक संख्या में मंत्र इंद्र को समर्पित हैं; किंतु वह इस प्रश्न के विकल्प में नहीं है। दूसरे स्थान पर अग्नि को 200 सूक्त समर्पित हैं। अतः सही उत्तर विकल्प (a) है।

23. वैदिक देवता इंद्र के विषय में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिए [U.P.P.C.S. (Mains) 2017]

तथा नीचे दिए गए कूट से सही उत्तर चुनिए-

1. झंझावत के देवता थे।

2. पापियों को दंड देते थे।

3. नैतिक व्यवस्था के संरक्षक थे।

4. वर्षा के देवता थे।

कूट :

Correct Answer: (d) 1 एवं 4 सही हैं।
Solution:ऋग्वेद में इंद्र का वर्णन सर्वाधिक प्रतापी देवता के रूप में किया जाता है, जिसे 250 सूक्त समर्पित है। यह ऋग्वैदिक काल में सर्वाधिक लोकप्रिय देवता थे। इंद्र को आर्यों का युद्ध नेता तथा वर्षा, आंधी, तूफान का देवता माना जाता है। इंद्र को वृत्तासुरहंता (वृत्तासुर नामक राक्षस का वध करने वाला), पुरभिद (किला को भेदने वाला), सोमापा (सोम का अत्यधिक पान करने वाला), शतक्रति (एक सौ शक्तियों का स्वामी) आदि नामों से जाना जाता है। नैतिक व्यवस्था का संरक्षक वरुण को कहा गया है। इसके अतिरिक्त कुछ मंत्रों में पापियों को दंड देने के लिए इंद्र और सोम से प्रार्थना की गई है। इससे स्पष्ट होता है कि इंद्र पापियों को दंड भी देते थे। प्रश्न विकल्प में कथन 1, 2, 4 न होने के कारण विकल्प (d) 1 एवं 4 ज्यादा उपयुक्त उत्तर है।

24. निम्नलिखित में से पूर्व वैदिक आर्यों का सर्वाधिक लोकप्रिय देवता कौन था? [U.P.P.C.S. (Mains) 2008]

Correct Answer: (d) इंद्र
Solution:ऋग्वेद में इंद्र का वर्णन सर्वाधिक प्रतापी देवता के रूप में किया जाता है, जिसे 250 सूक्त समर्पित है। यह ऋग्वैदिक काल में सर्वाधिक लोकप्रिय देवता थे। इंद्र को आर्यों का युद्ध नेता तथा वर्षा, आंधी, तूफान का देवता माना जाता है। इंद्र को वृत्तासुरहंता (वृत्तासुर नामक राक्षस का वध करने वाला), पुरभिद (किला को भेदने वाला), सोमापा (सोम का अत्यधिक पान करने वाला), शतक्रति (एक सौ शक्तियों का स्वामी) आदि नामों से जाना जाता है। नैतिक व्यवस्था का संरक्षक वरुण को कहा गया है। इसके अतिरिक्त कुछ मंत्रों में पापियों को दंड देने के लिए इंद्र और सोम से प्रार्थना की गई है। इससे स्पष्ट होता है कि इंद्र पापियों को दंड भी देते थे। प्रश्न विकल्प में कथन 1, 2, 4 न होने के कारण विकल्प (d) 1 एवं 4 ज्यादा उपयुक्त उत्तर है।

25. वैदिक देवमंडल में निम्न में से कौन देवता युद्ध का देवता माना जाता है? [Uttarakhand P.C.S. (Pre) 2016]

Correct Answer: (b) इंद्र
Solution:ऋग्वैदिक आर्यों के सबसे महत्वपूर्ण एवं प्रतापी देवता इंद्र थे। इन्हें ऋग्वेद में विभिन्न नामों से पुकारा गया है। इन्हें पुरंदर; अर्थात किलों को तोड़ने वाला कहा गया है। यह युद्ध के नेता के रूप में चित्रित हैं। इंद्र को वृत्तासुर हंता (वृत्तासुर नामक राक्षस का वध करने वाला), पुरभिद (दुर्ग या किला को भेदने वाला), सोमापा (सोम का अत्यधिक पान करने वाला), शतक्रति (एक सौ शक्तियों का स्वामी), आदि नामों से जाना जाता है।

26. 800 से 600 ईसा पूर्व का काल किस युग से जुड़ा है? [U.P.P.C.S. (Pre) 2002]

Correct Answer: (a) ब्राह्मण युग
Solution:800 से 600 ईसा पूर्व का काल ब्राह्मण ग्रंथों के प्रणयन युग से जुड़ा है। प्रायः सातवीं या छठी शताब्दी ई. पू. से लेकर तीसरी शताब्दी ई. पू. तक का समय सूत्र काल कहा जाता है।

27. गायत्री मंत्र किस पुस्तक में मिलता है? [39th B.P.S.C. (Pre) 1994]

Correct Answer: (c) ऋग्वेद
Solution:'गायत्री मंत्र' ऋग्वेद में उल्लिखित है। इसके रचनाकार विश्वामित्र हैं। यह सवितृ (सूर्य देवता) को समर्पित है। यह मंत्र ऋग्वेद के तृतीय मंडल में वर्णित है।

28. गायत्री मंत्र के नाम से प्रसिद्ध मंत्र सर्वप्रथम किस ग्रंथ में मिलता है? [U.P. P.C.S. (Pre) 2013]

Correct Answer: (c) ऋग्वेद
Solution:'गायत्री मंत्र' ऋग्वेद में उल्लिखित है। इसके रचनाकार विश्वामित्र हैं। यह सवितृ (सूर्य देवता) को समर्पित है। यह मंत्र ऋग्वेद के तृतीय मंडल में वर्णित है।

29. गायत्री मंत्र की रचना किसने की थी? [Uttarakhand P.C.S. (Pre) 2006]

Correct Answer: (b) विश्वामित्र
Solution:'गायत्री मंत्र' ऋग्वेद में उल्लिखित है। इसके रचनाकार विश्वामित्र हैं। यह सवितृ (सूर्य देवता) को समर्पित है। यह मंत्र ऋग्वेद के तृतीय मंडल में वर्णित है।

30. सर्ग, प्रतिसर्ग, वंश, मन्वन्तर और वंशानुचरित संकेतक हैं- [U.P. P.C.S. (Pre) (Re-Exam) 2015]

Correct Answer: (b) पुराणों के
Solution:पुराणों में पांच प्रकार के विषयों का वर्णन सिद्धांततः इस प्रकार है - सर्ग, प्रतिसर्ग, वंश, मन्वन्तर तथा वंशानुचरित। सर्ग बीज या आदि सृष्टि का पुराण है। प्रतिसर्ग प्रलय के बाद की पुनसृष्टि को कहते हैं। वंश में देवताओं या ऋषियों के वंश वृक्षों का वर्णन है। मन्वन्तर में कल्प के महायुगों का वर्णन है और वंशानुचरित पुराणों के वे अंग हैं, जिनमें राजवंशों की तालिकाएं दी हुई हैं और राजनीतिक अवस्थाओं, कक्षाओं तथा घटनाओं के वर्णन हैं।