संसद-III. कार्य संचालन एवं विधायी प्रक्रिया

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21. सर्वप्रथम एक सांसद/विधायक को इस आधार पर सदस्यता से अयोग्य घोषित किया गया कि वह सदन की अनुमति के बिना उसकी साठ लगातार बैठकों में अनुपस्थित रहा : [U.P. P.C.S. (Mains) 2004]

Correct Answer: (a) राज्य सभा का
Note:

सर्वप्रथम दिसंबर, 2000 में पंजाब से निर्दलीय राज्य सभा सांसद बरजिंदर सिंह हमदर्द को इस आधार पर सदस्यता से अयोग्य घोषित किया गया था, कि वह सदन की अनुमति के बिना उसकी लगातार 60 बैठकों में अनुपस्थित रहे थे।

 

22. यदि कोई सांसद किसी राज्य के विधानमंडल के लिए निर्वाचित होता है, तो उसे कितने दिनों के अंदर राज्य के विधानमंडल से इस्तीफा देना होगा, अन्यथा उसकी संसद सदस्यता अमान्य हो जाएगी? [Chhattisgarh P.C.S. (Pre) 2022]

Correct Answer: (b) 14 दिन
Note:

संविधान के अनुच्छेद 101 के खंड (2) और अनुच्छेद 190 के खंड (2) द्वारा प्रदत्त शक्तियों का उपयोग करते हुए राष्ट्रपति द्वारा बनाए गए 'समसामयिक सदस्यता प्रतिषेध नियम (Prohibition of Simulta- neous Membership Rules), 1950' के प्रावधानों के अनुसार, यदि कोई सांसद किसी राज्य के विधानमंडल के लिए निर्वाचित होता है, तो उसे 14 दिनों के अंदर राज्य के विधानमंडल से इस्तीफा देना होगा, अन्यथा उसकी संसद सदस्यता अमान्य हो जाएगी।

 

23. किसी मंत्री के विरुद्ध विशेषाधिकार प्रस्ताव उठाया जा सकता है, जब वह- [Chhattisgarh P.C.S. (Pre) 2011]

Correct Answer: (c) किसी मामले के तथ्यों को रोकता है या तथ्यों का बिगड़ा हुआ वर्णन देता है।
Note:

संसदीय नियमों एवं प्रक्रिया के तहत किसी मंत्री के विरुद्ध विशेषाधिकार प्रस्ताव उठाया जा सकता है, यदि वह किसी मामले के तथ्यों को रोकता है अथवा तथ्यों का बिगड़ा हुआ वर्णन देता है।

 

24. निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिए- [I.A.S. (Pre) 2019]

1. संसद (निरर्हता निवारण) अधिनियम, 1959 कई पदों को 'लाभ का पद' के आधार पर निरर्हता से छूट देता है।

2. उपर्युक्त अधिनियम पांच बार संशोधित किया गया था।

3. शब्द 'लाभ का पद' भारत के संविधान में भली-भांति परिभाषित किया गया है।

उपर्युक्त में से कौन-सा/से कथन सही है / हैं?

 

Correct Answer: (a) केवल 1 और 2
Note:

संसद (निरर्हता निवारण) अधिनियम, 1959 के तहत अनेक पदों को 'लाभ के पद' के आधार पर संसद की सदस्यता के लिए निरर्हता से छूट प्रदान की गई है। इस अधिनियम में अब तक कुल पांच बार वर्ष 1993, 1999, 2000, 2006 तथा 2013 में संशोधन कर विभिन्न अन्य पदों को इस अधिनियम में शामिल करते हुए 'लाभ के पद' के आधार पर निरर्हता के दायरे से बाहर किया गया है। भारत के संविधान में 'लाभ का पद' शब्द को परिभाषित नहीं किया गया है, हालांकि इस शब्द का उल्लेख विभिन्न अनुच्छेदों में हुआ है। इस प्रकार प्रश्नगत कथनों में केवल कथन 1 और 2 ही सही हैं।

 

25. लाभ के पद का निर्णय (Decision) कौन करेगा? [U.P.P.C.S. (Pre) 2006 U.P.P.C.S. (Pre) 2000]

Correct Answer: (e) (a) & (b)
Note:

विश्लेषण - 1

कोई पद संसद अथवा विधानमंडलों में सदस्यता की निरर्हता हेतु लाभ का पद है अथवा नहीं इसका निर्णय अनुच्छेद 102(1) (क) के अंतर्गत केंद्र में 'संसद' तथा अनुच्छेद 191 (1) (क) के अंतर्गत राज्यों में 'राज्य विधानमंडल' करेंगे।

विश्लेषण - 2

कोई व्यक्ति जो संसद अथवा विधानमंडलों की सदस्यता से लाभ के पद के आधार पर निरर्ह घोषित किया गया है, वह अपने लाभ के पद के कारण निरर्ह है अथवा नहीं, इसका निर्णय-

केंद्र में अनुच्छेद 103 (1) एवं (2) के अनुसार, निर्वाचन आयोग की सलाह पर 'राष्ट्रपति' करेगा तथा राज्यों में अनुच्छेद 192 (1) एवं (2) के अनुसार, निर्वाचन आयोग की सलाह पर राज्यपाल करेगा। अतः विश्लेषण-1 के अनुसार, सही उत्तर विकल्प (b) होगा तथा विश्लेषण-2 के अनुसार, सही उत्तर विकल्प (a) माना जा सकता है

 

26. निम्नलिखित में से कौन-सा एक प्रावधान भारतीय संविधान के अंतर्गत संसद के सदस्यों के विशेषाधिकारों तथा उन्मुक्तियों को निर्धारित करता है? [Chhattisgarh P.C.S. (Pre) 2011]

Correct Answer: (b) अनुच्छेद 105
Note:

भारतीय संविधान का अनुच्छेद 105 संसद के सदनों की तथा उनके सदस्यों और समितियों की शक्तियों, विशेषाधिकार तथा उन्मुक्तियों को निर्धारित करता है।

 

27. निम्नलिखित में से कौन संसद सदस्यों का सामूहिक विशेषाधिकार नहीं है? [U.P.P.C.S. (Pre) 2017]

Correct Answer: (c) साक्षी के रूप में उपस्थिति से स्वतंत्रता
Note:

संसदीय विशेषाधिकार संसद के दोनों सदनों, उसकी समितियों तथा सदस्यों को प्राप्त विशिष्ट अधिकार, उन्मुक्तियां व छूट होते हैं। इन विशेषाधिकारों को दो वर्गों में बांटा जा सकता है-

(1) वे, जो संसद के प्रत्येक सदन द्वारा सामूहिक रूप में प्रयोग किए जाते हैं; (2) वे, जो व्यक्तिगत रूप से संसद सदस्यों द्वारा उपभोग्य होते हैं। संसद के प्रत्येक सदन द्वारा सामूहिक रूप से प्रयोग किए जाने वाले विशेषाधिकार निम्न हैं-

(i) अपनी बहस और कार्यवाही के प्रकाशन को रोकने का विशेषाधिकार;

(ii) सदन से अपरिचितों को बाहर रखने का तथा विशिष्ट विषयों पर चर्चा हेतु गुप्त बैठक करने का विशेषाधिकार;

(iii) अपनी स्वयं की प्रक्रिया व आंतरिक विषयों-व्यवसाय के संचालन तथा उन्हें विनियमित करने का विशेषाधिकार;

(iv) सदन के सदस्य और साथ ही साथ बाहरी व्यक्तियों को भी, भर्त्सना चेतावनी या निलंबन (सदस्यों हेतु) या निश्चित अवधि हेतु कारावास से सदन की अवमानना हेतु दंडित करने का विशेषाधिकार;

(v) किसी सदस्य की गिरफ्तारी, निरोध, सजा, कारावास या रिहाई की तत्काल सूचना प्राप्त करने का विशेषाधिकार; (vi) संसदीय समितियों द्वारा जांच के प्रयोजन के लिए प्रासंगिक व्यक्तियों, पत्रों व अभिलेखों को बुलाने-मंगाने का विशेषाधिकार;

(vii) संसद की कार्यवाही की जांच करने हेतु अदालतों पर रोक लगाने का विशेषाधिकार;

(viii) सदन के परिसर में किसी (सदस्य या अन्य) व्यक्ति की गिरफ्तारी और कानूनी प्रक्रिया किए जाने से पूर्व पीठासीन अधिकारी की अनुमति लिए जाने का विशेषाधिकार।

विकल्प (c) में दिया गया विशेषाधिकार संसद सदस्यों द्वारा व्यक्तिगत रूप में प्रयुक्त किया जाने वाला विशेषाधिकार है।

 

28. संविधान के किस अनुच्छेद के अंतर्गत न्यायालयों द्वारा संसद की कार्यवाहियों की जांच करना प्रतिबंधित किया गया है? [U.P.U.D.A./L.D.A. (Spl.) (Mains) 2010]

Correct Answer: (b) अनुच्छेद 122
Note:

संविधान के अनुच्छेद 122 में न्यायालयों द्वारा संसद की कार्यवाहियों की जांच न किए जाने का प्रावधान किया गया है।

 

29. निम्नलिखित में से किनको लोक सभा और राज्य सभा दोनों के निर्वाचनों में मतदान का अधिकार है? [I.A.S. (Pre) 1995]

Correct Answer: (d) राज्य विधानमंडल के निम्न सदन के निर्वाचित सदस्यों को
Note:

राज्य विधानमंडल के निम्न सदन (विधानसभा) के निर्वाचित सदस्यों को लोक सभा (एक नागरिक के अधिकार से) और राज्य सभा (अनुच्छेद 80 के खंड 4 में वर्णित) दोनों के निर्वाचनों में मतदान का अधिकार है।

 

30. निम्नलिखित में से कौन-सा कथन सही है? [I.A.S. (Pre) 1994]

Correct Answer: (c) लोक सभा और राज्य सभा में एक बात में अंतर है कि लोक सभा का निर्वाचन तो कोई प्रत्याशी भारत के किसी भी राज्य से लड़ सकता है, पर राज्य सभा का प्रत्याशी सामान्यतः वहीं का होना चाहिए, जहां से वह प्रत्याशी बन रहा है।
Note:

तत्कालीन प्रावधानों के अनुसार, कतिपय अपवादों (यथा- असम के स्वायत्तशासी जिलों एवं लक्षद्वीप के अनुसूचित जनजाति क्षेत्र और सिक्किम) के अतिरिक्त लोक सभा का निर्वाचन कोई प्रत्याशी भारत के किसी भी राज्य से लड़ सकता है, पर राज्य सभा का प्रत्याशी सामान्यतः वहीं का होना चाहिए था, जहां से वह प्रत्याशी बन रहा है। नोट : वर्ष 2003 में लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 में किए गए संशोधन के तहत अब कोई भी व्यक्ति राज्य सभा के लिए कहीं से भी चुनाव लड़ सकता है, यदि वह किसी भी संसदीय क्षेत्र का पंजीकृत मतदाता (निर्वाचक) हो।