सर्वोच्च न्यायालय (भारतीय राजव्यवस्था एवं शासन)

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11. उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश किस प्रकार हटाए जा सकते हैं? [M.P.P.C.S. (Pre) 1993]

Correct Answer: (d) राष्ट्रपति के द्वारा संसद की सिफारिश पर
Solution:उच्चतम न्यायालय के किसी न्यायाधीश को राष्ट्रपति द्वारा साबित कदाचार या असमर्थता के आधार पर संसद की सिफारिश पर हटाया जा सकता है। उच्चतम न्यायालय के किसी न्यायाधीश को साबित कदाचार या असमर्थता के आधार पर हटाए जाने के लिए संसद के प्रत्येक सदन द्वारा अपनी कुल सदस्य संख्या के बहुमत द्वारा तथा उपस्थित और मत देने वाले सदस्यों के कम-से-कम दो-तिहाई बहुमत द्वारा समर्थित समावेदन (Address) को राष्ट्रपति के समक्ष भेजना होता है तथा ऐसे समावेदन के राष्ट्रपति के समक्ष उसी सत्र में रखे जाने पर राष्ट्रपति के आदेश से उस न्यायाधीश को पद से हटाया जा सकता है [अनुच्छेद 124 (4)]। उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश को हटाने (Remove) तथा तत्संबंधी जांच की प्रक्रिया का संसदीय विधि द्वारा विनियमन अनुच्छेद 124 (5) में प्रावधानित है। उच्च न्यायालय के न्यायाधीश को हटाने की प्रक्रिया भी यही है। नोट : महाभियोग (Impeachment) शब्द का प्रयोग संविधान में केवल राष्ट्रपति को हटाने के लिए किया गया है। उच्च न्यायालय या उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश को हटाने के लिए महाभियोग शब्द का प्रयोग नहीं किया गया है। इनके लिए संविधान के अनुसार हटाना (Remove) शब्द है।

12. निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिए- [I.A.S. (Pre) 2019]

1. न्यायाधीश (जांच) अधिनियम, 1968 के अनुसार, भारत के उच्चतम न्यायालय के किसी न्यायाधीश पर महाभियोग चलाने के प्रस्ताव को लोक सभा के अध्यक्ष द्वारा अस्वीकार नहीं किया जा सकता।

2. भारत का संविधान यह परिभाषित करता है और ब्यौरे देता है कि क्या-क्या भारत के उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीशों की 'अक्षमता और सिद्ध कदाचार' को गठित करते हैं।

3. भारत के उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीशों के महाभियोग की प्रक्रिया के ब्यौरे न्यायाधीश (जांच) अधिनियम, 1968 में दिए गए हैं।

4. यदि किसी न्यायाधीश के महाभियोग के प्रस्ताव को मतदान हेतु लिया जाता है, तो विधि द्वारा अपेक्षित है कि यह प्रस्ताव संसद के प्रत्येक सदन द्वारा समर्थित हो और उस सदन की कुल सदस्य संख्या के बहुमत द्वारा तथा संसद के उस सदन के कुल उपस्थित और मत देने वाले सदस्यों के कम-से-कम दो-तिहाई द्वारा समर्थित हो।

उपर्युक्त में से कौन-सा/से कथन सही है/हैं?

Correct Answer: (c) केवल 3 और 4
Solution:न्यायाधीश (जांच) अधिनियम, 1968 की धारा 3 के खंड 1(b) के अनुसार, उच्चतम या उच्च न्यायालयों के किसी न्यायाधीश पर महाभियोग चलाने के प्रस्ताव को लोक सभा अध्यक्ष अथवा राज्य सभा का सभापति स्वीकार या अस्वीकार कर सकता है। अतः कथन 1 असत्य है।

संविधान के अनुच्छेद 124 (4) में उच्चतम न्यायालय के किसी न्यायाधीश को पदमुक्त करने का आधार (अक्षमता और सिद्ध कदाचार) और प्रक्रिया विहित है, किंतु अक्षमता और कदाचार को परिभाषित नहीं किया गया है। अतः कथन 2 भी गलत है।

न्यायाधीश (जांच) अधिनियम, 1968 में कुल 7 धाराएं हैं, जिसमें उच्चतम एवं उच्च न्यायालयों के न्यायाधीशों के महाभियोग (संसद में ऐसे समावेदन के रखे जाने तथा न्यायाधीश के कदाचार या असमर्थता की जांच और उसे सिद्ध करने) की प्रक्रिया और ब्यौरों का वर्णन है। अतः कथन 3 सत्य है।

भारतीय संविधान के अनुच्छेद 124 (4) में विहित प्रक्रिया के अनुसार, किसी न्यायाधीश के महाभियोग का प्रस्ताव संसद के प्रत्येक सदन में उस सदन की कुल सदस्य संख्या के बहुमत द्वारा तथा उपस्थित एवं मत देने वाले सदस्यों के दो-तिहाई बहुमत द्वारा पारित होना चाहिए तथा इस प्रकार पारित प्रस्ताव पर राष्ट्रपति की अनुमति प्राप्त होने के पश्चात वह न्यायाधीश पदमुक्त हो जाएगा। अतः कथन 4 सत्य है।

13. सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश. के बाद भारत के राष्ट्रपति द्वारा हटाए जा सकते हैं। [Chhattisgarh P.C.S. (Pre) 2003]

Correct Answer: (d) संसद में महाभियोग प्रस्ताव पारित होने
Solution:न्यायाधीश (जांच) अधिनियम, 1968 की धारा 3 के खंड 1(b) के अनुसार, उच्चतम या उच्च न्यायालयों के किसी न्यायाधीश पर महाभियोग चलाने के प्रस्ताव को लोक सभा अध्यक्ष अथवा राज्य सभा का सभापति स्वीकार या अस्वीकार कर सकता है। अतः कथन 1 असत्य है।

संविधान के अनुच्छेद 124 (4) में उच्चतम न्यायालय के किसी न्यायाधीश को पदमुक्त करने का आधार (अक्षमता और सिद्ध कदाचार) और प्रक्रिया विहित है, किंतु अक्षमता और कदाचार को परिभाषित नहीं किया गया है। अतः कथन 2 भी गलत है।

न्यायाधीश (जांच) अधिनियम, 1968 में कुल 7 धाराएं हैं, जिसमें उच्चतम एवं उच्च न्यायालयों के न्यायाधीशों के महाभियोग (संसद में ऐसे समावेदन के रखे जाने तथा न्यायाधीश के कदाचार या असमर्थता की जांच और उसे सिद्ध करने) की प्रक्रिया और ब्यौरों का वर्णन है। अतः कथन 3 सत्य है।

भारतीय संविधान के अनुच्छेद 124 (4) में विहित प्रक्रिया के अनुसार, किसी न्यायाधीश के महाभियोग का प्रस्ताव संसद के प्रत्येक सदन में उस सदन की कुल सदस्य संख्या के बहुमत द्वारा तथा उपस्थित एवं मत देने वाले सदस्यों के दो-तिहाई बहुमत द्वारा पारित होना चाहिए तथा इस प्रकार पारित प्रस्ताव पर राष्ट्रपति की अनुमति प्राप्त होने के पश्चात वह न्यायाधीश पदमुक्त हो जाएगा। अतः कथन 4 सत्य है।

14. सर्वोच्च न्यायालय में सेवानिवृत्ति की आयु है [U.P.P.C.S. (Pre) 1990]

Correct Answer: (d) 65 वर्ष
Solution:सर्वोच्च न्यायालय में न्यायाधीशों के लिए सेवानिवृत्ति की आयु 65 वर्ष है, जबकि उच्च न्यायालयों में यह 62 वर्ष है।

15. सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीशों की सेवा निवृत्ति की उम्र क्या है? [63rd B.P.S.C. (Pre) 2017]

Correct Answer: (c) 65 वर्ष
Solution:सर्वोच्च न्यायालय में न्यायाधीशों के लिए सेवानिवृत्ति की आयु 65 वर्ष है, जबकि उच्च न्यायालयों में यह 62 वर्ष है।

16. उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीशों का वेतन निर्धारण किया जाता है? [U.P. P.C.S. (Mains) 2008]

Correct Answer: (c) संसद द्वारा
Solution:संविधान के अनु. 125 (1) के तहत उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीशों के वेतन का निर्धारण संसद द्वारा बनाई गई विधि के तहत किया जाता है।

17. भारत के उच्चतम न्यायालय की स्वायत्तता की रक्षा हेतु क्या प्रावधान हैं? [I.A.S. (Pre) 2012]

1. उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीशों की नियुक्ति करते समय भारत के राष्ट्रपति को भारत के मुख्य न्यायाधीश से विचार- विमर्श करना पड़ता है।

2. उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीशों को केवल भारत के मुख्य न्यायाधीश द्वारा हटाया जा सकता है।

3. न्यायाधीशों का वेतन भारत की संचित निधि पर आरोपित होता है, जिस पर विधानमंडल को अपना मत नहीं देना होता है।

4. भारत के उच्चतम न्यायालय के अफसरों और कर्मचारियों की सभी नियुक्तियां सरकार द्वारा भारत के मुख्य न्यायाधीश से विचार-विमर्श के पश्चात ही की जाती हैं।

उपर्युक्त में से कौन-सा/से कथन हैं।

Correct Answer: (a) केवल 1 और 3
Solution:उच्चतम न्यायालय को देश के संविधान का प्रहरी माना जाता है, अतः उसकी स्वायत्तता को बनाए रखने के लिए संविधान में कई उपबंध मौजूद हैं। उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश की नियुक्ति करते समय राष्ट्रपति को उच्चतम न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश से परामर्श करना आवश्यक होगा। न्यायाधीशों को राजनीति के प्रभाव से दूर रखने के लिए उनका वेतन भारत की संचित निधि पर भारित होता है, जिसके लिए संसद में मतदान नहीं होता है। इस प्रकार कथन 1 और 3 सही हैं, जबकि कथन 2 और 4 सही नहीं हैं।

18. निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिए- [I.A.S. (Pre) 2005]

1. संसद भारत के उच्चतम न्यायालय की अधिकारिता को विस्तारित नहीं कर सकती, क्योंकि उसकी अधिकारिता वही है, जो संविधान ने प्रदान की है।

2. उच्चतम न्यायालय और उच्च न्यायालयों के अधिकारी और सेवक संबद्ध मुख्य न्यायमूर्ति द्वारा नियुक्त किए जाते हैं और न्यायालयों का प्रशासनिक व्यय भारत की संचित निधि पर भारित होता है।

उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?

Correct Answer: (d) न ही 1 और न ही 2
Solution:संविधान के अनु. 138 के तहत संसद विधि बनाकर उच्चतम न्यायालय की संघ सूची के संबंध में अतिरिक्त अधिकारिता को विस्तारित कर सकती है। अतः कथन-1 गलत है। उच्चतम न्यायालय के अधिकारी और सेवक अनुच्छेद 146(1) के तहत तथा उच्च न्यायालयों के अधिकारी और सेवक अनुच्छेद 229(1) के तहत संबद्ध मुख्य न्यायमूर्ति द्वारा या उसके द्वारा निर्दिष्ट न्यायाधीश या अधिकारी द्वारा नियुक्त किए जाते हैं, तथापि अनुच्छेद 146(5) के तहत जहां उच्चतम न्यायालय का प्रशासनिक व्यय भारत की संचित निधि पर भारित होता है, वहीं अनुच्छेद 229(3) के तहत उच्च न्यायालय का प्रशासनिक व्यय राज्य की संचित निधि पर भारित होता है। इस प्रकार कथन 2 भी गलत है।

19. सेवानिवृत्त होने के पश्चात सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश वकालत कर सकते हैं- [U.P.P.C.S. (Pre) 1997]

Correct Answer: (d) किसी भी न्यायालय में नहीं
Solution:संविधान के अनुच्छेद 124(7) के अनुसार, सेवानिवृत्त होने के पश्चात सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश किसी भी न्यायालय में वकालत नहीं कर सकते, जबकि अनु. 220 के अनुसार, उच्च न्यायालय के न्यायाधीश सेवानिवृत्त होने के बाद उच्चतम न्यायालय में एवं अन्य उच्च न्यायालयों (जिस उच्च न्यायालय में स्थायी न्यायाधीश रहे हों, उसमें नहीं) में वकालत कर सकते हैं।

20. भारत के सर्वोच्च न्यायालय के कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश की नियुक्ति करता है- [U.P.U.D.A./L.D.A. (Pre) 2001]

Correct Answer: (c) राष्ट्रपति
Solution:अनुच्छेद 126 के अनुसार, सर्वोच्च न्यायालय के कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश की नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा की जाती है। ऐसा तब किया जाता है, जब मुख्य न्यायाधीश का पद रिक्त हो अथवा वह अपने कर्तव्यों का निर्वहन करने में असमर्थ हो।