1. न्यायाधीश (जांच) अधिनियम, 1968 के अनुसार, भारत के उच्चतम न्यायालय के किसी न्यायाधीश पर महाभियोग चलाने के प्रस्ताव को लोक सभा के अध्यक्ष द्वारा अस्वीकार नहीं किया जा सकता।
2. भारत का संविधान यह परिभाषित करता है और ब्यौरे देता है कि क्या-क्या भारत के उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीशों की 'अक्षमता और सिद्ध कदाचार' को गठित करते हैं।
3. भारत के उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीशों के महाभियोग की प्रक्रिया के ब्यौरे न्यायाधीश (जांच) अधिनियम, 1968 में दिए गए हैं।
4. यदि किसी न्यायाधीश के महाभियोग के प्रस्ताव को मतदान हेतु लिया जाता है, तो विधि द्वारा अपेक्षित है कि यह प्रस्ताव संसद के प्रत्येक सदन द्वारा समर्थित हो और उस सदन की कुल सदस्य संख्या के बहुमत द्वारा तथा संसद के उस सदन के कुल उपस्थित और मत देने वाले सदस्यों के कम-से-कम दो-तिहाई द्वारा समर्थित हो।
उपर्युक्त में से कौन-सा/से कथन सही है/हैं?
Correct Answer: (c) केवल 3 और 4
Solution:न्यायाधीश (जांच) अधिनियम, 1968 की धारा 3 के खंड 1(b) के अनुसार, उच्चतम या उच्च न्यायालयों के किसी न्यायाधीश पर महाभियोग चलाने के प्रस्ताव को लोक सभा अध्यक्ष अथवा राज्य सभा का सभापति स्वीकार या अस्वीकार कर सकता है। अतः कथन 1 असत्य है।संविधान के अनुच्छेद 124 (4) में उच्चतम न्यायालय के किसी न्यायाधीश को पदमुक्त करने का आधार (अक्षमता और सिद्ध कदाचार) और प्रक्रिया विहित है, किंतु अक्षमता और कदाचार को परिभाषित नहीं किया गया है। अतः कथन 2 भी गलत है।
न्यायाधीश (जांच) अधिनियम, 1968 में कुल 7 धाराएं हैं, जिसमें उच्चतम एवं उच्च न्यायालयों के न्यायाधीशों के महाभियोग (संसद में ऐसे समावेदन के रखे जाने तथा न्यायाधीश के कदाचार या असमर्थता की जांच और उसे सिद्ध करने) की प्रक्रिया और ब्यौरों का वर्णन है। अतः कथन 3 सत्य है।
भारतीय संविधान के अनुच्छेद 124 (4) में विहित प्रक्रिया के अनुसार, किसी न्यायाधीश के महाभियोग का प्रस्ताव संसद के प्रत्येक सदन में उस सदन की कुल सदस्य संख्या के बहुमत द्वारा तथा उपस्थित एवं मत देने वाले सदस्यों के दो-तिहाई बहुमत द्वारा पारित होना चाहिए तथा इस प्रकार पारित प्रस्ताव पर राष्ट्रपति की अनुमति प्राप्त होने के पश्चात वह न्यायाधीश पदमुक्त हो जाएगा। अतः कथन 4 सत्य है।