सामाजिक एवं धार्मिक सुधार आंदोलन (UPPCS)

Total Questions: 50

21. भारतीय ब्रह्म समाज के संस्थापक थे- [U.P. P.C.S. (Spl.) (Mains) 2008 U.P. U.D.A./L.D.A. (Spl.) (Pre) 2010 U.P. U.D.A./L.D.A. (Spl.) (Mains) 2010]

Correct Answer: (c) केशवचंद्र सेन
Solution:भारतीय ब्रह्म समाज के संस्थापक केशवचंद्र सेन थे। देवेंद्रनाथ ने - 1865 ई. में केशवचंद्र सेन से आचार्य की उपाधि छीन ली। फलस्वरूप केशवचंद्र सेन मौलिक ब्रह्म समाज से अलग हो गए और देवेंद्रनाथ टैगोर के तहत समाज की मूल शाखा ने स्वयं को 'आदि ब्रह्म समाज' के नाम से पुकारा। आचार्य केशवचंद्र सेन के नेतृत्व वाले गुट ने अपने को 'भारतीय ब्रह्म समाज' या 'नवीन ब्रह्म समाज' (नव विधान) का नाम दिया। 1878 ई. में 'नवीन ब्रह्म समाज' में पुनः फूट पड़ी, जब केशवचंद्र सेन द्वारा अपनी 14 वर्ष से कम आयु की पुत्री का विवाह कूच बिहार के राजा से किए जाने के विरोध में आनंद मोहन बोस एवं 5 शिवनाथ शास्त्री द्वारा 'साधारण ब्रह्म समाज' की स्थापना की गई। नोट: 20 अगस्त, 1828 को राजा राममोहन राय ने फेरंजी कमल बोस के मकान (जो इस हेतु किराए पर लिया गया था) में ब्रह्म समाज की स्थापना की थी। ताराचंद चक्रवर्ती इसके प्रथम सचिव थे। देवेंद्रनाथ टैगोर इस समाज में 1843 ई. में तथा केशवचंद्र सेन 1857 ई. में सम्मिलित हुए। देवेंद्रनाथ टैगोर एवं केशवचंद्र सेन के मध्य वैचारिक मतभेद होने पर जब 11 नवंबर, 1866 को केशवचंद्र सेन ने औपचारिक रूप से पृथक ब्रह्म समाज का गठन किया, तो इसका नामकरण 'भारतीय ब्रह्म समाज' (Brahmo Samaj of India) किया गया। जबकि पूर्व स्थापित ब्रह्म समाज को 'आदि ब्रह्म समाज' के नाम से जाना गया। ब्रह्म समाज की मूल वेबसाइट , गजेटियर ऑफ इंडिया (Vol-II : इतिहास एवं संस्कृति) एवं मैकमिलन प्रकाशित 'भारत का सामाजिक, सांस्कृतिक और आर्थिक इतिहास (लेखक-बी.एन. पुरी, एम.एन. दास, पी.एन. चोपड़ा) में ये तथ्य दर्शित हैं। बाद में इतिहास लेखन के दौरान प्रख्यात इतिहासविदों प्रो. बी.एल. ग्रोवर एवं प्रो. आर.एल. शुक्ल आदि ने आधुनिक भारतीय इतिहास की अपनी पुस्तकों में पता नहीं क्यों केशवचंद्र सेन के नवीन ब्रह्म समाज को 'आदि ब्रह्म समाज' बताया। प्रख्यात इतिहासकारों द्वारा यह प्रस्तुत किए जाने के कारण अन्य पुस्तकों में यही तथ्य अपनाए गए और प्रायः परीक्षा संस्थाओं ने भी अपने प्रश्नों में आदि ब्रह्म समाज के संस्थापक के रूप में केशवचंद्र सेन को उत्तर के रूप में माना, जबकि वास्तविक तथ्य इसके ठीक उलट है। अर्थात् केशवचंद्र सेन का नवीन ब्रह्म समाज, भारतीय ब्रह्म समाज है और देवेंद्रनाथ टैगोर के नेतृत्व वाला मूल ब्रह्म समाज, आदि ब्रह्म समाज है।

22. आदि ब्रह्म समाज की स्थापना किसने की ? [M.P.P.C.S. (Pre) 2020]

Correct Answer: (a) देवेंद्रनाथ टैगोर
Solution:भारतीय ब्रह्म समाज के संस्थापक केशवचंद्र सेन थे। देवेंद्रनाथ ने - 1865 ई. में केशवचंद्र सेन से आचार्य की उपाधि छीन ली। फलस्वरूप केशवचंद्र सेन मौलिक ब्रह्म समाज से अलग हो गए और देवेंद्रनाथ टैगोर के तहत समाज की मूल शाखा ने स्वयं को 'आदि ब्रह्म समाज' के नाम से पुकारा। आचार्य केशवचंद्र सेन के नेतृत्व वाले गुट ने अपने को 'भारतीय ब्रह्म समाज' या 'नवीन ब्रह्म समाज' (नव विधान) का नाम दिया। 1878 ई. में 'नवीन ब्रह्म समाज' में पुनः फूट पड़ी, जब केशवचंद्र सेन द्वारा अपनी 14 वर्ष से कम आयु की पुत्री का विवाह कूच बिहार के राजा से किए जाने के विरोध में आनंद मोहन बोस एवं 5 शिवनाथ शास्त्री द्वारा 'साधारण ब्रह्म समाज' की स्थापना की गई। नोट: 20 अगस्त, 1828 को राजा राममोहन राय ने फेरंजी कमल बोस के मकान (जो इस हेतु किराए पर लिया गया था) में ब्रह्म समाज की स्थापना की थी। ताराचंद चक्रवर्ती इसके प्रथम सचिव थे। देवेंद्रनाथ टैगोर इस समाज में 1843 ई. में तथा केशवचंद्र सेन 1857 ई. में सम्मिलित हुए। देवेंद्रनाथ टैगोर एवं केशवचंद्र सेन के मध्य वैचारिक मतभेद होने पर जब 11 नवंबर, 1866 को केशवचंद्र सेन ने औपचारिक रूप से पृथक ब्रह्म समाज का गठन किया, तो इसका नामकरण 'भारतीय ब्रह्म समाज' (Brahmo Samaj of India) किया गया। जबकि पूर्व स्थापित ब्रह्म समाज को 'आदि ब्रह्म समाज' के नाम से जाना गया। ब्रह्म समाज की मूल वेबसाइट , गजेटियर ऑफ इंडिया (Vol-II : इतिहास एवं संस्कृति) एवं मैकमिलन प्रकाशित 'भारत का सामाजिक, सांस्कृतिक और आर्थिक इतिहास (लेखक-बी.एन. पुरी, एम.एन. दास, पी.एन. चोपड़ा) में ये तथ्य दर्शित हैं। बाद में इतिहास लेखन के दौरान प्रख्यात इतिहासविदों प्रो. बी.एल. ग्रोवर एवं प्रो. आर.एल. शुक्ल आदि ने आधुनिक भारतीय इतिहास की अपनी पुस्तकों में पता नहीं क्यों केशवचंद्र सेन के नवीन ब्रह्म समाज को 'आदि ब्रह्म समाज' बताया। प्रख्यात इतिहासकारों द्वारा यह प्रस्तुत किए जाने के कारण अन्य पुस्तकों में यही तथ्य अपनाए गए और प्रायः परीक्षा संस्थाओं ने भी अपने प्रश्नों में आदि ब्रह्म समाज के संस्थापक के रूप में केशवचंद्र सेन को उत्तर के रूप में माना, जबकि वास्तविक तथ्य इसके ठीक उलट है। अर्थात् केशवचंद्र सेन का नवीन ब्रह्म समाज, भारतीय ब्रह्म समाज है और देवेंद्रनाथ टैगोर के नेतृत्व वाला मूल ब्रह्म समाज, आदि ब्रह्म समाज है।

23. ब्रह्म समाज का सिद्धांत आधारित है- [U.P. P.C.S. (Pre) 1999 U.P. P.C.S. (Pre) 2005]

Correct Answer: (c) एकदेववाद पर
Solution:1828 ई. में राजा राममोहन राय ने ब्रह्म समाज की नींव डाली। ब्रह्म समाज की स्थापना का उद्देश्य था- एकेश्वरवाद की उपासना, मूर्ति पूजा का विरोध तथा अवतारवाद का खंडन। ब्रह्म समाज ने सार्वभौम ईश्वर की उपासना पर बल दिया।

24. राजा राममोहन राय ने निम्न में किसका विरोध नहीं किया था? [U.P. P.C.S. (Pre) 1992]

Correct Answer: (c) पाश्चात्य शिक्षा
Solution:शिक्षा के क्षेत्र में राजा राममोहन राय अंग्रेजी शिक्षा के पक्षधर थे। उनके अनुसार, एक उदारवादी पाश्चात्य शिक्षा ही अज्ञान के अंधकार से हमें निकाल सकती है और भारतीयों को देश के प्रशासन में भाग दिला सकती है।

25. निम्न में से किसे राममोहन राय के धार्मिक/सामाजिक विचारों के विरोध में प्रारंभ किया गया? [U.P. P.C.S. (Mains) 2017]

Correct Answer: (b) समाचार चन्द्रिका
Solution:राममोहन राय के धार्मिक/सामाजिक विचारों के विरोध में भवानीचरण बंधोपाध्याय ने 1822 ई. में समाचार चन्द्रिका (पत्रिका) का प्रकाशन शुरू किया। इससे पूर्व वे संवाद् कौमुदी के संपादक थे।

26. ब्रह्म समाज के बारे में निम्नलिखित में से कौन-सा/से कथन सही है/हैं? [I.A.S. (Pre) 2012]

1. इसने मूर्ति पूजा का विरोध किया।

2. धार्मिक ग्रंथों की व्याख्या के लिए इसने पुरोहित वर्ग को अस्वीकारा।

3. इसने इस सिद्धांत का प्रचार किया कि वेद त्रुटिहीन हैं।

निम्नलिखित कूटों के आधार पर सही उत्तर चुनिए-

Correct Answer: (b) केवल 1 और 2
Solution:ब्रह्म समाज की स्थापना राजा राममोहन राय द्वारा 1828 ई. में की गई। इसके प्रमुख सिद्धांत निम्न थे-

(i) एकेश्वरवाद पर विश्वास एवं हिंदू धर्म को कुरीतियों से मुक्त कराना।

(ii) मूर्ति पूजा का विरोध तथा पुरोहितों के वर्चस्व पर कुठाराघात ।

(iii) स्त्रियों की स्थिति को सुधारना।

वेदों को त्रुटिहीन मानने वाले स्वामी दयानंद सरस्वती थे। इस प्रकार कथन 1 और 2 ब्रह्म समाज के संदर्भ में सही हैं, जबकि कथन 3 सही नहीं है।

27. नीचे दो कथन दिए गए हैं, जिसमें से एक को अभिकथन (A) और दूसरे को कारण (R) कहा गया है : [U.P. R.O./A.R.O. (Pre) 2023]

अभिकथन (A): 'संवाद कौमुदी', एक बंगाली साप्ताहिक के संपादक राजा राम मोहन राय थे।

कारण (R) : विधवा जलाने की प्रथा की निंदा करते हुए उनके लेख इसमें प्रकाशित हुए थे।

नीचे दिए गए कूट से सही उत्तर का चुनाव कीजिए -

कूट :

Correct Answer: (c) (A) और (R) दोनों सत्य हैं, किंतु (R), (A) की सही व्याख्या नहीं करता है।
Solution:4 दिसंबर, 1821 में राजा राममोहन राय ने 'संवाद कौमुदी' नामक बांग्ला साप्ताहिक समाचार-पत्र प्रारंभ किया। दिलचस्प बात यह है कि इस अखबार के क्रेडिट में राजा राममोहन राय का नाम नहीं था। इसके बजाए, अखबार को आधिकारिक तौर पर भवानीचरण बंदोपाध्याय द्वारा संपादित किया गया था। जिसमें दीवान ताराचंद दत्त उनके सहायक के रूप में कार्यरत थे। यह अखबार न केवल सती-दाह (विधवा जलाने की प्रथा) को खत्म करने के आंदोलन में सबसे आगे था, बल्कि इसने कई अन्य प्रगतिशील मूल्यों जैसे- महिला शिक्षा, जाति आधारित उत्पीडन, सामाजिक सुधारों आदि का समर्थन किया। सती-दाह की निंदा करते हुए राजा राममोहन राय के कई लेख इसमें प्रकाशित हुए थे।

28. उन्नीसवीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध में 'नव हिंदूवाद' (Neo- Hinduism) के सर्वश्रेष्ठ प्रतिनिधि थे- [41st B.P.S.C. (Pre) 1996]

Correct Answer: (b) स्वामी विवेकानंद
Solution:रामकृष्ण परमहंस की शिक्षाओं की व्याख्या को साकार करने का श्रेय स्वामी विवेकानंद (1863-1902 ई.) को है। उन्होंने इस शिक्षा का साधारण भाषा में वर्णन किया। स्वामी विवेकानंद इस नवीन हिंदू धर्म (Neo-Hinduism) के प्रचारक के रूप में उभरे। 1893 ई. में वे शिकागो गए जहां उन्होंने 'वर्ल्ड पार्लियामेंट ऑफ द वर्ल्ड रिलीजन्स' (विश्व धर्म संसद) में अपना सुप्रसिद्ध भाषण दिया। इस भाषण से उन्होंने पश्चिमी संसार के सामने पहली बार भारत की संस्कृति की महत्ता को प्रभावकारी तरीके से प्रस्तुत किया। उन्नीसवीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध में स्वामी विवेकानंद नव हिंदूवाद के सर्वश्रेष्ठ प्रतिनिधि थे।

29. विवेकानंद ने शिकागो में आयोजित 'पार्लियामेंट ऑफ वर्ड्स रिलीजन्स' में भाग लिया था- [U.P. P.C.S. (Pre) 2015]

Correct Answer: (c) 1893 में
Solution:रामकृष्ण परमहंस की शिक्षाओं की व्याख्या को साकार करने का श्रेय स्वामी विवेकानंद (1863-1902 ई.) को है। उन्होंने इस शिक्षा का साधारण भाषा में वर्णन किया। स्वामी विवेकानंद इस नवीन हिंदू धर्म (Neo-Hinduism) के प्रचारक के रूप में उभरे। 1893 ई. में वे शिकागो गए जहां उन्होंने 'वर्ल्ड पार्लियामेंट ऑफ द वर्ल्ड रिलीजन्स' (विश्व धर्म संसद) में अपना सुप्रसिद्ध भाषण दिया। इस भाषण से उन्होंने पश्चिमी संसार के सामने पहली बार भारत की संस्कृति की महत्ता को प्रभावकारी तरीके से प्रस्तुत किया। उन्नीसवीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध में स्वामी विवेकानंद नव हिंदूवाद के सर्वश्रेष्ठ प्रतिनिधि थे।

30. स्वामी विवेकानंद ने शिकागो में आयोजित 'विश्व धर्म सम्मेलन' में अपना भाषण कब दिया था? [M.P.P.C.S. (Pre) 2013]

Correct Answer: (d) 1893
Solution:रामकृष्ण परमहंस की शिक्षाओं की व्याख्या को साकार करने का श्रेय स्वामी विवेकानंद (1863-1902 ई.) को है। उन्होंने इस शिक्षा का साधारण भाषा में वर्णन किया। स्वामी विवेकानंद इस नवीन हिंदू धर्म (Neo-Hinduism) के प्रचारक के रूप में उभरे। 1893 ई. में वे शिकागो गए जहां उन्होंने 'वर्ल्ड पार्लियामेंट ऑफ द वर्ल्ड रिलीजन्स' (विश्व धर्म संसद) में अपना सुप्रसिद्ध भाषण दिया। इस भाषण से उन्होंने पश्चिमी संसार के सामने पहली बार भारत की संस्कृति की महत्ता को प्रभावकारी तरीके से प्रस्तुत किया। उन्नीसवीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध में स्वामी विवेकानंद नव हिंदूवाद के सर्वश्रेष्ठ प्रतिनिधि थे।