यदि केशिकत्व की परिघटना नहीं होती, तो-
1. किरोसिन दीप का उपयोग मुश्किल हो जाता।
2. कोई मृदु पेय का उपभोग करने के लिए स्ट्रॉ का प्रयोग नहीं कर पाता।
3. स्याही-सोख पत्र काम करने में विफल हो जाता।
4. बड़े पेड़, जिन्हें हम अपने चारों ओर देखते हैं, पृथ्वी पर नहीं उगते ।
उपर्युक्त में से कौन-से कथन सही हैं-
Correct Answer: (b) केवल 1,3 और 4
Solution:बहुत कम भीतरी व्यास वाली कांच की नली को केशिका नली कहते हैं। जब हम केशिका नली को किसी द्रव में इस प्रकार सीधा खड़ा रखते हैं कि इसका एक सिरा द्रव की सतह के नीचे रहे और दूसरा ऊपर, तो प्रायः द्रव इस नली में कुछ ऊंचाई तक चढ़ जाता है। यदि नली कम लंबाई की होगी, तो द्रव अधिक-से-अधिक इसके ऊपरी सिरे तक चढ़ता है, किंतु बाहर निकल कर गिरता नहीं। द्रवों का केशिका नली में इस प्रकार चढ़ना या नीचे गिरना 'केशिकत्व' कहलाता है। यह घटना द्रव्य एवं नली के कणों के बीच परस्पर आसंजन बल के कारण होती है। प्रकृति केशिका क्रिया का बहुत बढ़िया उपयोग करती है। पेड़-पौधों की जड़ों की बारीक शाखाएं केशिका नलियों की भांति कार्य करके धरती से पानी एवं उसमें घुले पोषक तत्वों को ग्रहण करती हैं। केशिका क्रिया के फलस्वरूप ही लालटेन की बत्ती तेल को ऊपर पहुंचाती है, ब्लाटिंग पेपर स्याही सोखता है और तौलिया हमारे शरीर का पानी। केशिका क्रिया में द्रव बिना किसी बाह्य बल की मदद के गुरुत्वाकर्षण से विपरीत दिशा में संकीर्ण नली में चढ़ता है, जबकि स्ट्रों द्वारा मृदु पैय का उपभोग करने में मुख द्वारा सहायक बाहा बल आरोपित किया जाता है। अतः प्रश्नगत कथन (2) सही नहीं है, जबकि अन्य कथन सही हैं।