Solution:1857 का विद्रोह बहुत बड़े क्षेत्र में फैला हुआ था और इसे जनता का व्यापक समर्थन प्राप्त था। फिर भी पूरे देश को या भारतीय समाज के सभी अंगों तथा वर्गों को यह अपनी लपेट में नहीं ले सका। यह दक्षिणी भारत तथा पूर्वी और पश्चिमी भारत के अधिकांश भागों में नहीं फैल सका। भारतीय रजवाड़ों के अधिकांश शासक तथा बड़े जमींदार पक्के स्वार्थी तथा अंग्रेजों की शक्ति से भयभीत थे और वे विद्रोह में शामिल नहीं हुए। ग्वालियर के सिंधिया, इंदौर के होल्कर, हैदराबाद के निजाम, जोधपुर के राजा, भोपाल के नवाब, पटियाला, नाभा और जींद के सिख शासक एवं पंजाब के दूसरे सिख सरदार, कश्मीर के महाराजा तथा दूसरे अनेक सरदारों और बड़े जमींदारों ने विद्रोह को कुचलने में अंग्रेजों की सक्रिय सहायता की। गवर्नर जनरल कैनिंग ने बाद में टिप्पणी की कि इन शासकों तथा सरदारों ने "तूफान के आगे बांध (तरंगरोधक) की तरह काम किया, वर्ना यह तूफान एक ही लहर में हमें बहा ले जाता।"उच्च तथा मध्य वर्गों के अधिकांश लोग विद्रोहियों के आलोचक थे। विद्रोह में शामिल अवध के बहुत से तालुकदारों (बड़े जमींदारों) ने, अंग्रेजों से यह आश्वासन पाकर कि उनकी जागीरें वापस दे दी जाएंगी, विद्रोह से किनारा कर लिया।
ग्रामीण जनता के हमलों का निशाना सूदखोर और साहूकार थे, इसलिए वे स्वाभाविक तौर पर विद्रोह के शत्रु हो गए थे। आधुनिक शिक्षा प्राप्त भारतीयों ने भी विद्रोह का साथ नहीं दिया। शिक्षित भारतीय, देश का पिछड़ापन समाप्त करना चाहते थे। उनके मन में यह गलत विश्वास भरा था कि अंग्रेज आधुनिकीकरण के ये काम पूरा करने में उनकी सहायता करेंगे।