1. भारत के संविधान के अनुसार, केंद्र सरकार का यह एक दायित्व है कि वह राज्यों को आंतरिक विक्षोभों से बचाए।
2. भारत का संविधान राज्यों को, निवारक निरोध में रखे जा रहे किसी व्यक्ति को विधिक काउंसेल उपलब्ध कराने से छूट प्रदान करता है।
3. आतंकवाद निवारण अधिनियम, 2002 के अनुसार, पुलिस के समक्ष अभियुक्त की संस्वीकृति को साक्ष्य के रूप में प्रयुक्त नहीं किया जा सकता।
उपर्युक्त में से कितने कथन सही हैं?
Correct Answer: (a) केवल एक
Solution:भारतीय संविधान के अनुच्छेद 355 के अनुसार संघ का यह कर्तव्य है कि वह बाह्य आक्रमण और आंतरिक अशांति से प्रत्येक राज्य की संरक्षा करे और प्रत्येक राज्य की सरकार का इस संविधान के उपबंधों के अनुसार चलाया जाना सुनिश्चित करे। अतः कथन 1 सत्य है। संविधान के अनुच्छेद 22 (1) के अनुसार किसी व्यक्ति को जो गिरफ्तार किया गया है, ऐसी गिरफ्तारी के कारणों से यथाशीघ्र अवगत कराए बिना अभिरक्षा में निरुद्ध नहीं रखा जाएगा या अपनी रुचि के विधि व्यवसायी से परामर्श करने और प्रतिरक्षा कराने के अधिकार से वंचित नहीं रखा जाएगा। हालांकि अनुच्छेद 22 (3) (b) के तहत उपर्युक्त बात निवारक निरोध का उपबंध करने वाली विधि के अधीन गिरफ्तार या निरुद्ध व्यक्ति पर लागू नहीं होती तथापि, अनुच्छेद 22(5) के अनुसार निवारक निरोध का उपबंध करने वाली किसी विधि के अधीन किए गए आदेश के अनुसरण में जब किसी व्यक्ति को निरुद्ध किया जाता है, तब आदेश करने वाला प्राधिकारी यथाशीघ्र उस व्यक्ति को यह संसूचित करेगा कि वह आदेश किन आधारों पर किया गया है और उस आदेश के विरुद्ध अभ्यावेदन करने के लिए उसे शीघ्रातिशीघ्र अवसर देगा। आतंकवाद निवारण अधिनियम, 2002 की धारा 52(2) के तहत भी गिरफ्तार व्यक्ति को पुलिस स्टेशन लाए जाने पर यथाशीघ्र एक विधि व्यवसायी से परामर्श करने के अधिकार को संसूचित किए जाने का उपबंध किया गया था। अतः कथन 2 असत्य है। आतंकवाद निवारण अधिनियम, 2002 की धारा 32 के अनुसार पुलिस अधिकारी (पुलिस अधीक्षक की रैंक या ऊपर) के समक्ष अभियुक्त की संस्वीकृति को साक्ष्य के रूप में प्रयुक्त किया जा सकता था। अतः कथन 3 असत्य है।