Solution:प्रथम आंग्ल-मराठा युद्ध (1775-82) - प्रथम आंग्ल-मराठा युद्ध का कारण मराठों के आपसी झगड़े तथा अंग्रेजों की महत्वाकांक्षाएं थीं। जिस प्रकार क्लाइव ने बंगाल, बिहार तथा उड़ीसा में द्वैध शासन प्रणाली स्थापित की थी, उसी प्रकार की द्वैध शासन प्रणाली कंपनी महाराष्ट्र में भी स्थापित करना चाहती थी। 1782 ई. में सालबाई की संधि (अंग्रेज तथा महादजी सिंधिया के बीच) से प्रथम आंग्ल-मराठा युद्ध समाप्त हो गया तथा एक-दूसरे के विजित क्षेत्र लौटा दिए गए। अगले लगभग दो दशक तक शांति बनी रही।तृतीय आंग्ल-मैसूर युद्ध (1790-92) - यह युद्ध अंग्रेजों तथा टीपू सुल्तान के मध्य हुआ। अंग्रेजों ने मरारों तथा निजाम के सहयोग से श्रीरंगपट्टनम पर आक्रमण किया। मिडोज के नेतृत्व में टीपू पराजित हुआ। मार्च,
1792 ई. में अंग्रेजों और टीपू के बीच श्रीरंगपट्टनम की संधि हुई। संधि की शर्तों के अनुसार, टीपू को अपने राज्य का आधा हिस्सा अंग्रेजों तथा उसके सहयोगियों को देना था, साथ ही युद्ध के हर्जाने के रूप में टीपू को तीन करोड़ रुपये अंग्रेजों को देना था।
प्रथम आंग्ल-बर्मा युद्ध (1824-26) - प्रथम आंग्ल-बर्मा युद्ध लॉर्ड एमहर्स्ट के काल (1823-28 ई.) में लड़ा गया। यह युद्ध ब्रिटिश औपनिवेशिक स्वार्थ के कारण लड़ा गया। 1825 ई. में ब्रिटिश सेना के सैनिक कमांडर ने बर्मा सेना को परास्त कर 1826 ई. में यांडबू की संधि की। इस संधि के बाद अंग्रेजी अधिकार वाले क्षेत्र का विस्तार हो गया तथा इनके प्रभाव में भी वृद्धि हुई।
द्वितीय आंग्ल-सिख युद्ध (1848-49) - इस युद्ध का तात्कालिक कारण मुल्तान के सूबेदार मूलराज का विद्रोह था। मूलराज, शेरसिंह और छत्तर सिंह ने पंजाब को ब्रिटिश प्रभाव से मुक्त कराने के लिए विद्रोह किया। द्वितीय आंग्ल-सिख युद्ध के समय भारत का गवर्नर जनरल लॉर्ड डलहौजी था। 1845-46 ई. में प्रथम आंग्ल-सिख युद्ध हुआ था।
इस प्रकार, 2 और 3 के युग्म सही सुमेलित हैं।