उच्च न्यायालय एवं अधीनस्थ न्यायालय (भारतीय राजव्यवस्था एवं शासन)

Total Questions: 42

21. निम्न में से कौन-सी एक याचिका अधीनस्थ न्यायालयों की कार्यपद्धति का परीक्षण करती है? [U.P.P.C.S. (Mains) 2008]

Correct Answer: (c) उत्प्रेषण
Solution:उत्प्रेषण एवं प्रतिषेध याचिकाएं अधीनस्थ न्यायालयों की कार्यपद्धति का परीक्षण करती हैं। जब अधीनस्थ न्यायालय अपने अधिकार क्षेत्र से बाहर किसी विषय पर सुनवाई करता है, तो ऊपरी न्यायालय प्रतिषेध याचिका द्वारा मामले को अपने पास मंगा लेता है। जबकि यदि अधीनस्थ न्यायालय ने अपने अधिकार क्षेत्र से बाहर निर्णय दे दिया है, तो ऊपरी न्यायालय उत्प्रेषण याचिका के द्वारा उस निर्णय को रद्द कर मामले को अपने पास लेकर पुनः सुनवाई करता है।

22. निम्न में से कौन एक रिट न्यायालय में कार्यवाही लंबित होने की दशा में लागू की जाती है? [U.P.P.C.S. (Pre) 2010]

Correct Answer: (c) प्रतिषेध (प्रोहिबिशन)
Solution:प्रतिषेध (Prohibition) रिट न्यायालय में कार्यवाही लंबित रहने की दशा में लागू की जाती है। जब निचला न्यायालय अपने अधिकार क्षेत्र से बाहर किसी विषय पर सुनवाई करता है, तो ऊपरी न्यायालय प्रतिषेध रिट जारी करके मामले को अपने पास मंगा लेता है।

23. नीचे दो वक्तव्य दिए गए हैं। एक को कथन (A) तथा दूसरे को कारण (R) कहा गया है- [I.A.S. (Pre) 1997]

कथन (A): न्यायालय के आदेशों की जानबूझकर अवज्ञा करना या उनका पालन न करना तथा न्यायिक व्यवहार के बारे में अनादर सूचक भाषा का प्रयोग करना, न्यायालय की अवमानना की कोटि में आता है।

कारण (R): न्यायिक सक्रियता वाद न्यायपालिका को अवमाननापूर्ण व्यवहार को दंडित करने के दंडात्मक अधिकार दिए बिना कार्यान्वित नहीं किया जा सकता।

ऊपर के दोनों वक्तव्यों के संदर्भ में निम्नलिखित में से कौन-सा एक सही है?

Correct Answer: (b) (A) तथा (R) दोनों सही हैं तथा (R), (A) की सही व्याख्या नहीं है।
Solution:कथन और कारण दोनों स्वतंत्र कथन के रूप में सही हैं किंतु कारण, कथन की व्याख्या नहीं कर रहा है।

24. भारत के न्यायालयों द्वारा जारी रिटों के संदर्भ में, निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिए [I.A.S. (Pre) 2022]

1. किसी प्राइवेट संगठन के विरुद्ध, जब तक कि उसको कोई सार्वजनिक कार्य नहीं सौंपा गया हो, परमादेश (मैंडेमस) नहीं होगा।

2. किसी कंपनी के विरुद्ध, भले ही वह कोई सरकारी कंपनी हो, परमादेश (मैंडेमस) नहीं होगा।

3. कोई भी लोक-प्रवण व्यक्ति (पब्लिक माइंडेड परसन) अधिकार- पृच्छा (क्वो वारंटो) रिट प्राप्त करने हेतु न्यायालय में समावेदन करने के लिए याची (पिटीशनर) हो सकता है।

उपर्युक्त कथनों में कौन-से सही हैं?

Correct Answer: (c) केवल 1 और 3
Solution:भारत के संविधान में अनुच्छेद 32 तथा 226 के तहत क्रमशः उच्चतम न्यायालय और उच्च न्यायालयों को कुल 5 प्रकार की रिट जारी करने की शक्ति दी गई है, जिसमें बंदी प्रत्यक्षीकरण, परमादेश, प्रतिषेध, उत्प्रेषण तथा अधिकार-पृच्छा रिटें शामिल हैं।

परमादेश का अर्थ है- हम आदेश देते हैं। इसके द्वारा न्यायालय किसी व्यक्ति, लोक प्राधिकारी, अधीनस्थ न्यायालय, सरकार या निगम को उनके विधिक, सांविधिक या लोक कर्तव्यों को करने या अवैध रूप से न करने का आदेश देता है।

किसी प्राइवेट व्यक्ति या संगठन के विरुद्ध परमादेश (Mandamus) रिट तभी जारी की जाएगी, जबकि उसको कोई सार्वजनिक कार्य सौंपा गया है। अतः कथन 1 सत्य है। किसी कंपनी के विरुद्ध, यदि वह कोई सरकारी कंपनी हो, परमादेश हो सकता है। अतः कथन 2 असत्य है। अधिकार-पृच्छा (Quo Warranto) रिट हेतु याची कोई भी लोक-प्रवण व्यक्ति (Public-minded person) हो सकता है, उसका उस पद से हितबद्ध होना या उसका दावेदार होना आवश्यक नहीं है। अतः कथन 3 भी सत्य है।

25. उच्च न्यायालय की परमादेश जारी करने की शक्ति के अंतर्गत आते हैं- [U.P.P.C.S. (Pre) 1997]

Correct Answer: (d) उपरोक्त सभी अधिकार
Solution:उच्चतम न्यायालय को अनुच्छेद 32 के तहत तथा उच्च न्यायालय को अनुच्छेद 226 के तहत मूल अधिकारों की रक्षा के लिए बंदी प्रत्यक्षीकरण, परमादेश, प्रतिषेध, उत्प्रेषण एवं अधिकार पृच्छा संबंधी रिटें निकालने का अधिकार है, किंतु जहां उच्चतम न्यायालय केवल मूल अधिकारों की रक्षा के लिए इन्हें निकाल सकता है, वहीं उच्च न्यायालय मूल अधिकारों सहित अन्य विधिक अधिकारों को प्रवृत्त कराने के लिए भी रिटों को निकाल सकता है।

26. निम्न कथनों पर विचार कीजिए और दिए गए कूटों से सही उत्तर का चयन कीजिए : [U.P. P.C.S. (Mains) 2004]

कथन (A): भारतीय नागरिकों के अधिकारों को संरक्षित करने में उच्च न्यायालय सर्वोच्च न्यायालय की अपेक्षा बढ़िया स्थिति में हैं।

कारण (R): सर्वोच्च न्यायालय केवल मौलिक अधिकारों के संरक्षण के लिए ही परमादेश जारी कर सकता है।

Correct Answer: (a) (A) और (R) दोनों सत्य हैं और (R), (A) का सही स्पष्टीकरण है।
Solution:संविधान के अनु. 32 के तहत सर्वोच्च न्यायालय मौलिक अधिकारों के संरक्षण के लिए ही परमादेश जारी कर सकता है, जबकि अनु. 226 के तहत उच्च न्यायालय मौलिक अधिकारों को प्रवर्तित कराने के साथ- साथ अन्य किसी प्रयोजन से भी रिट जारी कर सकता है। साथ ही उच्च न्यायालय अधीनस्थ न्यायालयों के पर्यवेक्षण के द्वारा भी भारतीय नागरिकों के अधिकारों का संरक्षण करने में समर्थ है। इस प्रकार कथन और कारण दोनों सही हैं एवं कारण, कथन की सही व्याख्या है।

27. निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिए : [I.A.S. (Pre) 2007]

1. भारत में उच्च न्यायालय के न्यायाधीश को हटाने के लिए रीति, उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश को हटाने की रीति के समान है।

2. उच्च न्यायालय का कोई स्थायी न्यायाधीश अपने पद से सेवा- निवृत्ति के पश्चात भारत में किसी भी न्यायालय या किसी प्राधिकारी के समक्ष अभिवचन नहीं कर सकता।

उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?

Correct Answer: (a) केवल 1
Solution:अनु. 217(1) (ख) के अनुसार, उच्च न्यायालय के किसी न्यायाधीश को उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश को हटाने के लिए अनु. 124 के खंड (4) में उपबंधित रीति से उसके पद से राष्ट्रपति द्वारा हटाया जा सकेगा। इन्हें संविधान के अनु. 124(4) में विहित प्रक्रिया से साबित कदाचार या असमर्थता के आधार पर संसद द्वारा अधिनियमित न्यायाधीश (जांच) अधिनियम, 1968 के तहत संसद के प्रत्येक सदन में विशेष बहुमत से हटाने संबंधी प्रस्ताव पारित करके राष्ट्रपति के आदेश द्वारा हटाया जा सकता है। अतः कथन 1 सत्य है।

अनु. 220 के अनुसार, उच्च न्यायालय का स्थायी न्यायाधीश सेवानिवृत्ति के पश्चात जिस उच्च न्यायालय में वह स्थायी न्यायाधीश रहा हो, उससे भिन्न उच्च न्यायालयों और उच्चतम न्यायालय में अभिवचन कार्य कर सकता है, जबकि उच्चतम न्यायालय का सेवानिवृत्ति न्यायाधीश भारत के किसी न्यायालय या प्राधिकारी के समक्ष अभिवचन का कार्य नहीं कर सकता है [अनु. 124(7)]। अतः कथन 2 गलत है।

28. एक उच्च न्यायालय का न्यायाधीश अपना त्याग-पत्र संबोधित करता है- [48th to 52nd B.P.S.C. (Pre) 2008]

Correct Answer: (a) राष्ट्रपति
Solution:उच्च न्यायालय का न्यायाधीश अपने पद की शपथ लेने के बाद 62 वर्ष की आयु तक अपने पद पर कार्यरत रहता है। इससे पूर्व वह राष्ट्रपति को संबोधित अपने हस्ताक्षरयुक्त पत्र द्वारा अपना पद त्याग सकता है [अनु. 217(1) (क)]। साथ ही उसे सिद्ध कदाचार या असमर्थता के आधार पर संसद के दोनों सदनों द्वारा अलग-अलग अपने कुल बहुमत तथा उपस्थित एवं मतदान करने वाले सदस्यों के दो-तिहाई बहुमत द्वारा पारित प्रस्ताव से राष्ट्रपति द्वारा पद-मुक्त किया जा सकता है।

29. किस न्यायमूर्ति के खिलाफ 2011 में राज्य सभा ने महाभियोग का प्रस्ताव पास किया, किंतु अपने बचाव के लिए उसने लोक सभा द्वारा उसी प्रस्ताव के पास होने के पूर्व त्याग-पत्र दिया? [R.A.S./R.T.S. (Pre) 2012]

Correct Answer: (c) न्यायमूर्ति सौमित्र सेन
Solution:कोलकाता उच्च न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश न्यायमूर्ति सौमित्र सेन पर लोक निधियों का दुरुपयोग करने के कारण वर्ष 2011 में राज्य सभा ने महाभियोग प्रस्ताव पारित किया। स्वतंत्र भारत में किसी न्यायमूर्ति के खिलाफ ऐसा प्रस्ताव पारित होने का यह पहला मामला था। यह प्रस्ताव लोक सभा में प्रस्तुत किए जाने से पूर्व 1 सितंबर, 2011 को उन्होंने अपने पद से इस्तीफा दे दिया। स्वतंत्र भारत में पहली बार न्यायमूर्ति वी. रामास्वामी के विरुद्ध 1993 में संसद में महाभियोग प्रस्ताव लाया गया था।

30. बाबरी मस्जिद/राम जन्मभूमि का विवाद जो इलाहाबाद उच्च न्यायालय (लखनऊ न्यायापीठ) के समक्ष है, का प्रकार है - [45th B.P.S.C. (Pre) 2001]

Correct Answer: (b) स्वत्वाधिकार मुकदमा (Title Suit)
Solution:बाबरी मस्जिद राम जन्मभूमि का विवाद इलाहाबाद उच्च न्यायालय के समक्ष स्वत्वाधिकार मुकदमे (Title Suit) के रूप में प्रस्तुत किया गया था, जिसमें दो समुदायों ने बाबरी मस्जिद / राम जन्मभूमि की जमीन एवं संपत्ति पर अपने-अपने दावे पेश किए थे। नवंबर, 2019 में सर्वोच्च न्यायालय द्वारा इस मुकदमे का अंतिम रूप से निस्तारण कर दिया गया है।