गरीबी

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21. भारत में ग्रामीण क्षेत्र में प्रति व्यक्ति प्रतिदिन 32 रु. उपभोग व्यय तथा शहरी क्षेत्र में 47 रु. प्रतिदिन प्रति व्यक्ति उपभोग व्यय, 'गरीबी रेखा' का निर्धारण किसने किया है? [Chhattisgarh P.C.S. (Pre) 2016]

Correct Answer: (b) प्रो.सी. रंगराजन समिति ने
Solution:रंगराजन समिति द्वारा ग्रामीण एवं शहरी क्षेत्रों के लिए गरीबी रेखा के निर्धारण में अलग-अलग उपभोग व्यय लिया गया है। समिति के अनुसार, भारत में ग्रामीण क्षेत्रों में प्रति व्यक्ति प्रतिदिन 32 रुपये (972 रु. मासिक) उपभोग व्यय तथा शहरी क्षेत्रों में 47 रुपये (1407 रु. मासिक) प्रतिदिन प्रति व्यक्ति उपभोग व्यय, गरीबी रेखा को निर्धारित करता है।

रंगराजन समिति द्वारा दी गई परिभाषा के अनुसार, वर्ष 2011-12 में भारत की 29.5 फीसदी जनसंख्या गरीबी रेखा से नीचे जीवन-यापन करती थी, जबकि वर्ष 2011-12 के लिए तेंदुलकर समिति का अनुमान 21.9 प्रतिशत गरीबी का थी।

22. निम्नलिखित में कौन लॉरेंज वक्र द्वारा मापा जाता है? [U.P.P.C.S. (Pre) 2018]

Correct Answer: (d) आय की विषमता
Solution:लॉरेंज वक्र (Lorenz Curve) का प्रतिपादन डॉ. मैक्स ओ' लॉरेंज (Dr. Max O' Lorenz) ने धन और आय की विषमता का अध्ययन करने के लिए किया था। उनके नाम पर ही इसे 'लॉरेंज वक्र' कहते हैं। इस वक्र का प्रयोग आय, धन, मजदूरी, लाभ, पूंजी तथा उत्पादन आदि के वितरण का अध्ययन करने के लिए भी किया जाता है।

'लॉरेंज वक्र' समान वितरण रेखा से वास्तविक वितरण के विचलन का बिंदु रेखीय माप है। यह समान वितरण रेखा (Line of Equal distribution) के जितना पास होगा, उस श्रेणी में अपकिरण की मात्रा (या आय की विषमता) उतनी ही कम होगी अर्थात वितरण में उतनी ही कम असमानताएं पाई जाएंगी। इसके विपरीत लॉरेंज वक्र समान वितरण रेखा से जितना दूर होगा, श्रेणी में अपकिरण की मात्रा उतनी ही अधिक होगी। यदि लॉरेंज वक्र समान वितरण रेखा पर पड़ता है, तो श्रेणी में अपकिरण बिल्कुल नहीं माना जाएगा।

23. आय का वितरण मापा जाता है- [Chhattisgarh P.C.S. (Pre) 2018]

Correct Answer: (b) लॉरेंज वक्र से
Solution:लॉरेंज वक्र (Lorenz Curve) का प्रतिपादन डॉ. मैक्स ओ' लॉरेंज (Dr. Max O' Lorenz) ने धन और आय की विषमता का अध्ययन करने के लिए किया था। उनके नाम पर ही इसे 'लॉरेंज वक्र' कहते हैं। इस वक्र का प्रयोग आय, धन, मजदूरी, लाभ, पूंजी तथा उत्पादन आदि के वितरण का अध्ययन करने के लिए भी किया जाता है।

'लॉरेंज वक्र' समान वितरण रेखा से वास्तविक वितरण के विचलन का बिंदु रेखीय माप है। यह समान वितरण रेखा (Line of Equal distribution) के जितना पास होगा, उस श्रेणी में अपकिरण की मात्रा (या आय की विषमता) उतनी ही कम होगी अर्थात वितरण में उतनी ही कम असमानताएं पाई जाएंगी। इसके विपरीत लॉरेंज वक्र समान वितरण रेखा से जितना दूर होगा, श्रेणी में अपकिरण की मात्रा उतनी ही अधिक होगी। यदि लॉरेंज वक्र समान वितरण रेखा पर पड़ता है, तो श्रेणी में अपकिरण बिल्कुल नहीं माना जाएगा।

24. गिनी गुणांक के संदर्भ में निम्नलिखित में से कौन-सा/से कथन सही है। हैं? [Jharkhand P.C.S. (Pre) 2023]

I. यह समाज में आय के असमानता के स्तर को मापता है।

II. गिनी गुणांक जितना अधिक होगा, असमानता उतनी कम होगी।

III. यह लॉरेंज वक्र के प्रयोग से व्युत्पन्न किया जाता है।

नीचे दिए गए विकल्पों में से सही उत्तर का चयन कीजिएः

Correct Answer: (b) केवल I एवं III
Solution:गिनी गुणांक का प्रतिपादन वर्ष 1912 में कोरेडो गिनी ने किया था। यह समाज में आय के असमानता के स्तर का मापन करता है। यह राष्ट्रीय आय के वितरण की गणितीय माप प्रस्तुत करता है। इसे निरपेक्ष समता रेखा के नीचे के संपूर्ण क्षेत्रफल का लॉरेंज वक्र एवं पूर्ण क्षमता रेखा के मध्य क्षेत्रफल में भाग देकर प्राप्त किया जाता है। अतः यह लॉरेंज वक्र के प्रयोग से व्युत्पन्न किया जाता है। अतः कथन I एवं III सत्य हैं।

गिनी गुणांक शून्य एवं 1 के मध्य होता है। जब इसका मान शून्य होता है, तो इसका अर्थ राष्ट्रीय आय की पूर्ण समानता से है। अर्थात प्रत्येक व्यक्ति समान आय प्राप्त कर रहा है। जब इसका मान 1 होता है तो इसका तात्पर्य राष्ट्रीय आय के पूर्ण असमान वितरण से है। अर्थात एक ही व्यक्ति संपूर्ण आय प्राप्त कर रहा है, शेष को कुछ भी प्राप्त नहीं हो रहा है। अतः कथन II असत्य है।

25. 'गरीबी की संस्कृति' का विचार प्रस्तुत किया गया- [U.P.P.C.S. (Pre) 2020]

Correct Answer: (a) ऑस्कर लुईस द्वारा
Solution:निर्धनता की संस्कृति' (Culture of Poverty) की अवधारणा को अमेरिकी नृविज्ञानी ऑस्कर लुईस (Oscar Lewis) द्वारा प्रस्तुत किया गया था। इस अवधारणा के अनुसार, "आर्थिक परिवर्तनों के बावजूद निर्धन लोग अपनी संस्कृति के प्रभाव के कारण ही निर्धन बने रहते है। उठने हेतु प्रोत्साहित नहीं करती है।"

26. 'निर्धनता का दुश्चक्र' की अवधारणा संबंधित है- [U.P.P.C.S. (Pre) 2014]

Correct Answer: (b) नर्क्स से
Solution:अर्थशास्त्री रैग्नर नर्क्स ने वर्ष 1953 में प्रकाशित अपनी पुस्तक 'प्रॉब्लम्स ऑफ कैपिटल फॉर्मेशन इन अंडरडेवलप्ड कंट्रीज' में 'निर्धनता के दुश्चक्र' (Vicious Circle of Poverty) की अवधारणा का विवेचन करते हुए यह मत व्यक्त किया था कि गरीब देश निर्धनता के दुश्चक्र के कारण गरीब बने रहते हैं। इनका तर्क है कि कम आय से कम बचत होती है, जो निवेश सामर्थ्य को हतोत्साहित करती है। कम निवेश से उसकी उत्पादकता तथा आय भी कम बनी रहती है और वे गरीब ही बने रहते हैं।

27. चक्रीय निर्धन वे हैं- [Jharkhand P.C.S. (Pre) 2016]

Correct Answer: (b) जो निरंतर निर्धन और गैर-निर्धन होते रहते हैं।
Solution:चक्रीय निर्धनता से तात्पर्य जनसंख्या के निर्धनता और गैर-निर्धनता में चक्रण से है। यह कृषि एवं उद्योग दोनों में पाया जाता है। वर्ष के कुछ महीनों में कृषि क्षेत्र में रोजगार के सृजन से जहां कृषि श्रमिकों की आय बढ़ जाती है तथा वे गैर-निर्धन की श्रेणी में आ जाते हैं, वहीं फसल कटाई के बाद पुनः रोजगार के विकल्पों में कमी आने पर वे निर्धनता की स्थिति में आ जाते हैं। इसी तरह से व्यापारिक उच्चावचनों से भी चक्रीय निर्धनता की स्थिति उत्पन्न होती है।

28. निम्नांकित में कौन भारत में गरीबी रेखा का निर्धारण करता है? [U.P.P.C.S. (Pre) 2018]

Correct Answer: (d) योजना आयोग (अब नीति आयोग)
Solution:भारत में तत्कालीन योजना आयोग राष्ट्रीय एवं राज्य स्तर पर निर्धनता रेखा के निर्धारण हेतु नोडल एजेंसी थी। लेकिन वर्तमान में (1 जनवरी, 2015 से) योजना आयोग का स्थान नीति आयोग ने ले लिया है।

29. निम्न में से कौन भारत में राष्ट्रीय एवं राज्य स्तर पर निर्धनता के अनुमानों के लिए केंद्रक अभिकरण (नोडल एजेंसी) है? [U.P.P.C.S. (Pre) 2014]

Correct Answer: (d) योजना आयोग
Solution:प्रश्नकाल हेतु विकल्प (d) सही उत्तर है। प्रश्नकाल में तत्कालीन योजना आयोग राष्ट्रीय एवं राज्य स्तर पर निर्धनता के अनुमानों के लिए नोडल एजेंसी थी। वर्तमान में नीति आयोग ने योजना आयोग को प्रतिस्थापित कर दिया है।

30. लकड़ावाला समिति (1993) संबंधित है- [Jharkhand P.C.S. (Pre) 2023]

Correct Answer: (b) गरीबी आकलन से
Solution:'गरीबी अनुपात एवं संख्या का अनुमान' (Estimation of Proportion and Number of Poor) लगाने हेतु वर्ष 1989 में डी.टी. लकड़ावाला की अध्यक्षता में एक विशेषज्ञ समूह का गठन किया गया था, गरीबी के आकलन की पद्धति पर गौर किया जा सके और यदि आवश्यक हो तो गरीबी रेखा को पुनः परिभाषित किया जा सके। इस विशेषज्ञ समूह ने अपनी रिपोर्ट जुलाई, 1993 में प्रस्तुत की।