गाँधी जी विश्वास करते थे कि भारत में उन सब लोगों के लिए पर्याप्त रोजगार है, जो अपने हाथ पैरों का उपयोग करते हैं और ईमानदारी से काम करते हैं। उनके अनुसार प्रत्येक व्यक्ति में काम करने की क्षमता है और वह अपने प्रतिदिन के भोजन से अधिक धनोपार्जन करता है, इस क्षमता का उपयोग करना निश्चित रूप में कार्य प्राप्त करना है। जो ईमानदारी से धनोपार्जन करना चाहता है, उसके लिए कोई काम तुच्छ नहीं होता है। सामान्यतः बेरोजगारी का अर्थ शिक्षित वर्ग की बेरोजगारी समझी जाती है। गाँधी जी ने इसको व्यापक महत्व प्रदान किया। शिक्षित वर्ग कारखानों, दफ्तरों तथा खेती तक सीमित है, जो रोजगार-प्राप्त व्यक्तियों का अल्पांश है। दयनीय स्थिति तो यह है कि तथाकथित शिक्षित वर्ग श्रम को महत्व नहीं देता और दस्तकारी से घृणा करता है। देश में व्याप्त निर्धनता और बेरोजगारी का यही कारण है। यदि ग्राम-उद्योगों को प्रोत्साहित किया जाएगा और उन्हें ईमानदारी से चलाया जाएगा, तो देश से अल्पकाल में बेरोजगारी दूर हो जाएगी।