Solution:शेरशाह सूरी का मध्ययुगीन भारत में एक महत्वपूर्ण स्थान है। साम्राज्य निर्माता एवं प्रशासक के रूप में उसे अकबर का पूर्वगामी माना जाता है।1. राजस्व सुधार-शेरशाह का विश्वास था कि साम्राज्य को स्थायित्व प्रदान करने के लिए कृषकों का सुखी एवं संतुष्ट होना आवश्यक है। उसकी यह भी धारणा थी कि भू-राजस्व के रूप में कृषकों पर भारी धनराशि बकाया रह जाती है, जिससे राजकोष को काफी हानि उठानी पड़ती है। अतः भू-राजस्व की धनराशि बकाया नहीं रहनी चाहिए। इस उद्देश्य से शेरशाह ने भूमि व्यवस्था में अनेक सुधार किए। उसकी लगान व्यवस्था मुख्य रूप से रैयतवाड़ी थी, जिसमें किसानों से प्रत्यक्ष संपर्क स्थापित किया गया था।
2. प्रशासनिक सुधार-शेरशाह ने सर्वप्रथम अपने पिता की जागीर के प्रबंधक के रूप में प्रशासन की जानकारी प्राप्त की थी। मुगल सेवा में रहने के कारण उसे मुगलों के प्रशासन, सैनिक संगठन एवं वित्तीय व्यवस्था का पूर्ण ज्ञान था। यही कारण है कि शेरशाह ने अपने पांच वर्षों के अल्प शासनकाल में जो प्रशासन कार्य दिखाया उसके कारण उसकी गणना दिल्ली के सर्वश्रेष्ठ सुल्तानों में की जाती है। शेरशाह का प्रशासन अत्यंत केंद्रीकृत था। शासक स्वयं शासन का प्रधान होता था और संपूर्ण शक्तियां उसी में केंद्रित थीं। शेरशाह ने अपने बंगाल विजय के पूर्व साम्राज्य को 47 सरकारों में विभाजित किया था। शेरशाह ने बंगाल सूबे के लिए एक अलग प्रकार की व्यवस्था की, संपूर्ण सूबे को उसने 19 सरकारों में बांट दिया था तथा प्रत्येक सरकार को एक सैनिक अधिकारी (शिकदार) के नियंत्रण में छोड़ दिया था। उसकी सहायता के लिए एक असैनिक अधिकारी अमीर-ए-बंगाल की नियुक्ति होती थी। यह प्रबंध विद्रोह की आशंका को समाप्त करने के लिए किया गया था।
3. सैनिक सुधार-अपने साम्राज्य को सुदृढ़ करने के लिए शेरशाह ने सैनिक संगठन के क्षेत्र में अनेक सुधार किए। वह सुल्तान अलाउद्दीन खिलजी के सुधारों से बहुत प्रभावित था। बेईमानी को रोकने के लिए उसने घोड़ों को दागने की प्रथा तथा सैनिकों का हुलिया लिखने की प्रथा को लागू किया था।
4. करेंसी प्रणाली में सुधार- शेरशाह का शासनकाल भारतीय मुद्राओं के इतिहास में एक परीक्षण का काल था। उसके मुद्रा सुधार के बारे में वी.ए. स्मिथ ने लिखा था कि "यह रुपया वर्तमान ब्रिटिश मुद्रा प्रणाली का आधार है।" शेरशाह ने पुराने घिसे-पिटे सिक्कों के स्थान पर शुद्ध सोने, चांदी एवं तांबे के सिक्कों का प्रचलन किया। उसने शुद्ध चांदी का रुपया (178 ग्रेन) तथा तांबे का दाम (380 ग्रेन) चलाया। अतः शेरशाह सूरी को उपर्युक्त सभी सुधारों का श्रेय प्राप्त है।